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नई दिल्ली।। प्लैनिंग कमिशन के डेप्युटी चेयरमैन मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को माना कि हाल में जारी गरीबी के आंकड़े गलत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें संशोधन करने की जरूरत है।
कमिशन ने पिछले हफ्ते कहा था कि देश में केवल 21.9 फीसदी लोग गरीब हैं। यह अनुमान शहरों में 33.33 रुपए और ग्रामीण इलाकों में 27.20 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के खर्च के आधार पर लगाया गया था। खर्च का यह अनुमान काफी कम होने की वजह से इसकी बहुत आलोचना हुई थी।
अहलूवालिया ने कहा, 'देश के अमीर होने और प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ने के साथ गरीबी रेखा की परिभाषा दोबारा तय करने की जरूरत है। तेंडुलकर कमिटी की रिपोर्ट पर आधारित प्लैनिंग कमिशन के ताजा आंकड़े पूरी तरह से लो लेवल पर हैं। हम उन गरीबों की संख्या देते हैं जो सच में सबसे कमजोर वर्ग के हैं और यही सरकार की प्रायॉरिटी होनी चाहिए।'
इस मानक के आधार पर देश में 2011-12 में 26.93 करोड़ लोग गरीब थे, जबकि 2004-05 में यह आंकड़ा 40.71 करोड़ था। अगर गरीबी का मानक संशोधित किया जाता है, तो गरीब लोगों की संख्या फिर बढ़ सकती है।
अहलूवालिया का कहना था कि यूपीए के शासन में गरीबी कम हुई है। नैशनल सैंपल सर्वे के आधार पर गरीबी के पिछले अनुमान 2004-05 और 2009-10 में आए थे। हालांकि, सरकार ने 2009-10 के आंकड़े को नहीं माना था। सरकार का कहना था कि वह सूखे का साल था। इस वजह से एनएसएसओ ने दोबारा सर्वे किया। इसके आधार पर प्लैनिंग कमिशन ने 2011-12 के लिए गरीबी के अनुमान जारी किए थे, जो 11वीं योजना की अवधि का आखिरी साल था।
प्लैनिंग कमिशन के ताजा अनुमानों के मुताबिक, 2011-12 में प्रोवर्टी रेशियो या देश में गरीबों की जनसंख्या प्रति व्यक्ति खपत बढ़ने से गिरकर 21.9 फीसदी रही। यह 2004-05 में 37.2 फीसदी थी। प्लैनिंग कमिशन का कहना है कि यह 2004-05 से हर साल 2.2 फीसदी और पिछले सरकार के कार्यकाल के मुकाबले 0.74 फीसदी की गिरावट है। इसके साथ ही यूपीए सरकार के सात सालों के कार्यकाल में करीब 13 करोड़ लोग गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं।
प्लैनिंग कमिशन ने इसके लिए सुरेश तेंडुलकर कमिटी के तरीके का इस्तेमाल किया है, जिसमें शहरों और गांवों में गरीबी रेखा के अनुमान के लिए हेल्थ और एजुकेशन पर खर्च के साथ कैलरी इनटेक को देखा जाता है। इसके मुताबिक, शहरों में गुड्स और सर्विसेज पर 33.33 रुपए और गांवों में 27.20 रुपए खर्च करने वाले लोग गरीब नहीं हैं। इसे लेकर सरकार को विपक्ष और अपनी पार्टी की ओर से काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।
नई दिल्ली।। प्लैनिंग कमिशन के डेप्युटी चेयरमैन मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को माना कि हाल में जारी गरीबी के आंकड़े गलत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें संशोधन करने की जरूरत है।
कमिशन ने पिछले हफ्ते कहा था कि देश में केवल 21.9 फीसदी लोग गरीब हैं। यह अनुमान शहरों में 33.33 रुपए और ग्रामीण इलाकों में 27.20 रुपए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के खर्च के आधार पर लगाया गया था। खर्च का यह अनुमान काफी कम होने की वजह से इसकी बहुत आलोचना हुई थी।
अहलूवालिया ने कहा, 'देश के अमीर होने और प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ने के साथ गरीबी रेखा की परिभाषा दोबारा तय करने की जरूरत है। तेंडुलकर कमिटी की रिपोर्ट पर आधारित प्लैनिंग कमिशन के ताजा आंकड़े पूरी तरह से लो लेवल पर हैं। हम उन गरीबों की संख्या देते हैं जो सच में सबसे कमजोर वर्ग के हैं और यही सरकार की प्रायॉरिटी होनी चाहिए।'
इस मानक के आधार पर देश में 2011-12 में 26.93 करोड़ लोग गरीब थे, जबकि 2004-05 में यह आंकड़ा 40.71 करोड़ था। अगर गरीबी का मानक संशोधित किया जाता है, तो गरीब लोगों की संख्या फिर बढ़ सकती है।
अहलूवालिया का कहना था कि यूपीए के शासन में गरीबी कम हुई है। नैशनल सैंपल सर्वे के आधार पर गरीबी के पिछले अनुमान 2004-05 और 2009-10 में आए थे। हालांकि, सरकार ने 2009-10 के आंकड़े को नहीं माना था। सरकार का कहना था कि वह सूखे का साल था। इस वजह से एनएसएसओ ने दोबारा सर्वे किया। इसके आधार पर प्लैनिंग कमिशन ने 2011-12 के लिए गरीबी के अनुमान जारी किए थे, जो 11वीं योजना की अवधि का आखिरी साल था।
प्लैनिंग कमिशन के ताजा अनुमानों के मुताबिक, 2011-12 में प्रोवर्टी रेशियो या देश में गरीबों की जनसंख्या प्रति व्यक्ति खपत बढ़ने से गिरकर 21.9 फीसदी रही। यह 2004-05 में 37.2 फीसदी थी। प्लैनिंग कमिशन का कहना है कि यह 2004-05 से हर साल 2.2 फीसदी और पिछले सरकार के कार्यकाल के मुकाबले 0.74 फीसदी की गिरावट है। इसके साथ ही यूपीए सरकार के सात सालों के कार्यकाल में करीब 13 करोड़ लोग गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं।
प्लैनिंग कमिशन ने इसके लिए सुरेश तेंडुलकर कमिटी के तरीके का इस्तेमाल किया है, जिसमें शहरों और गांवों में गरीबी रेखा के अनुमान के लिए हेल्थ और एजुकेशन पर खर्च के साथ कैलरी इनटेक को देखा जाता है। इसके मुताबिक, शहरों में गुड्स और सर्विसेज पर 33.33 रुपए और गांवों में 27.20 रुपए खर्च करने वाले लोग गरीब नहीं हैं। इसे लेकर सरकार को विपक्ष और अपनी पार्टी की ओर से काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है।
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