प्रतिनिधि // शेख अज्जू (नरसिंहपुर// टाइम्स ऑफ क्राइम)
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नरसिंहपुर। शासकीय योजनाओं में आंकड़ों के बल पर कैसे अपनी उपलब्धि बनाई जाती है इससे शासकीय कामकाज मं दखलअंदाजी रखने वाला कोई भी व्यक्ति आसानी से समझ सकता है किंतु आंकड़ों की बाजीगिरी में अगर सरकार की योजनाओं की हकीकत सामने आ जाये तो लगता है कि सारी की सारी दाल ही काली है।
आखिर कहां मछली मारते हैं हजारों मछुआरे
कुछ इसी प्रकार की हकीकत नरङ्क्षसहपुर में सामने आई है जिले में वितरित किये गये मछुआ क्रेडिट कार्ड के हितग्राहियों की संख्या से सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मछुआ क्रेडिट कार्ड वितरण में नरङ्क्षसहपुर जिले को मध्यप्रदेश मेें प्रथम स्थान मिला है जिसके अनुसार जिले में मछुआरों के करीब 1900 क्रेडिट कार्ड शासन द्वारा बनाये गये हैं और शासन की घोषणानुसार लगभग 1250 मछुआरों को जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर सहकारी बैंक के माध्यम से करीब 55 लाख रूपये का ऋण भी वितरित किया गया है। इसके अतिरिक्त मत्स्य विभाग द्वारा विभागीय स्तर पर भी मछुआरों को प्रशिक्षण आदि देकर उन्हें मत्स्याखेट से संबंधित सामग्री वितरित की जा चुकी है।मामले का सबसे बड़ा पेंच जो है वह यह कि जिले में प्रमुख रूप से नर्मदा, शेर, शक्कर व सीतारेवा ही प्रमुख नदिंया है जिनमें साल भर पर्याप्त मात्रा में जल रहता है औश्र प्रमुख रूप से साल भर नर्मदा नदी ही एक ऐसी नदी है जिस पर मछुआरों द्वारा मत्स्याखेट कर मछली मारी जाती है अन्य नदियों में पानी की उपलब्धता बरसात के समय के अलावा इतनी नहीं रहती कि उनमें से मछली मारकर मछुआरों द्वारा अपना व अपने परिवार का जीवन यापन किया जा सके वहीं विभागीय स्तर पर नरङ्क्षसहपुर जिले के 6 विकासखंडो में ग्रामों व पंचायतों के अंतर्गत जो तालाब है उनके अंदर जल की उपलब्धता को लेकर मत्स्य विभाग द्वारा जो उपलब्ध जलक्षेत्र की मात्रा दर्शाई गई है उसमें व तालाब के मौका मुआयना करने पर जो स्थिति सामने आती है उससे सारी की सारी कहानी ही उलट जाती है
विकासखंड नरङ्क्षसहपुर के अंतर्गत ग्रामीण तालाबों की जो जानकारी प्राप्त हुई उसके अनुसार कुल 14 तालाब मत्स्य पालन हेतु घोषित किये है जिनमें सबसे महत्वपूर्ण व दिलचस्प अगर कोई बात है तो वह यह कि नरङ्क्षसहपुर के नरङ्क्षसह तालाब को मत्स्य पालन हेतु उचित बताते हुये उसमें पानी की अधिकतम मात्रा 5.97 हेक्टेयर व औसत जलक्षेत्र 2.985 हेक्टेयर बताया गया है। मछुआरों की सहकारी समिति को आबंटित किया गया यह तालाब की असल हकीकत यह है कि विगत 10-15 वर्षो से इस तालाब में बच्चे क्रिकेट खेलते रहते हैं वहीं सरकार इस तालाब में पानी लाने के नाम पर लाखों रूपये खर्च कर दिये गये। और तो और हद जब हो गई जबकि नगर पालिका परिषद नरङ्क्षसहपुर द्वारा रानी अवंतीबाई सागर नहर परियोजना की सुरगी माइनर से पाइप लाइन डालकर इस तालाब में नर्मदा जल लाने की योजना पर लगभग 15 लाख रूपये वर्तमान नगर परिषद ने खर्च कर दिये और शुभारंभ के ही दिन यह पाइप लाइन कई जगह से लीकेज होकर तब से अभी तक बंद पड़ी है।
विकासखंड चीचली में 9 तालाबों को मछली पालन के योग्य मानकर इसमें भी मत्स्याखेट की जानकारी इन 9 तालाबों में उपलब्ध जलक्षेत्र के आधार पर दर्शाई गई है किंतु इस विकासखंड के इन गांवों में तालाबों मेें कितनी मछली का उत्पादन और कौन मछली मार रहा है यह ग्रामीणों को भी नहीं पता है। विकासखंड चांवरपाठा मेे कुल 20 तालाबों को मत्स्य पालन के लिए उपयुक्त माना गया है लेकिन मांझी व मछुआरा समाज के लोग ही इन तालाबों की हकीकत बयां करते हैं तो लगता है कि आखिर आयोजित की गई मछुआ पंचायत की भागीदारी नरङ्क्षसहपुर जिले के किन मछुआरों ने की होगी जो प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह को पंचायत के दौरान भी जिले के तालाबो की असलियत नहीं बता पाये। विकासखंड करेली के कहानी तो और भी विचित्र है विकासखंड के 7 तालाबों को मत्स्यपालन के योग्य मानकर सभी तालाबों में मत्स्य पालन के लिए पर्याप्त जल की उपलब्ध बताई जाती है। विकासखंड गोटेगांव मे जिले मेें सबसे अधिक 22 तालाबो को मत्स्यापालन के योग्य माना गया है किंतु हर मामले में चर्चित गोटेगांव तालाबों के मामले में भी अलग नहीं है।
गोटेगांव के तालाबों को मत्स्यपालन हेतु जिन्हें पट्टा आबंटित किया गया है उनमें परंपरागत व वंशानुगत मछुआरों की तो अनदेखी की ही दबंग व रसूखदारों नेतो इन तालाबों को पंचायतों से लेकर औने पौने दामों पर लेकर तालाबों मेें ही अच्छी कमाई कर डाली।
विकासखंड सांईखेड़ा के अंतर्गत भी 13 तालाबों को चिन्हित कर मत्स्यपालन की सूची में शामिल किया गया किंतु इन तालाबों से कितनी मछली का उ:त्पादन हो रहा है यह बात मत्स्य विभाग भी नहीं बता पा रहा है। इसके अलावा जिले में जल संसाधन विभाग के अंतर्गत कुछ बड़े जलाशय है जिनमें मत्स्य पालन हेतु सहकारी समितियों को मत्स्य पालन व मत्स्याखेट की अनुमति दी जाती है।
सरकारी आंकड़ों में 1900 के करीब मछुआ क्रेडिट कार्ड की संख्या बताई गई है और जिले के तालाबों में जल की पर्याप्त उपलब्धता ही नहीं है और शासन स्तर पर महत्वपूर्ण व दिलचस्प बात यह है कि जब 15 जून से 15 अगस्त तक मत्स्याखेट पर पूर्णत: प्रतिबंध है तो फिर जिले के करीब 1900 मछुआरे व उनके परिवार इन दो माह में अपना व अपने परिवार का जीवन यापन कैसे करेगें और महत्वपूर्ण बात यह है कि जब करीब 55 लाख रूपये जीरो ब्याज दर पर उन्हें ऋण दिया गया है कि तो उसकी भरपाई वो आखिर कहां से करेगें और इससे भी महत्वपूर्ण बात जो यह कि अगर 1900 के करीब मछुआरे जिले में विभिन्न तालाबों और नदियों में मत्स्याखेट कर रहे हैं तो जिले में सिवनी जिले से मछली लाकर क्यों बेची जाती है और आखिर 1900 मछुआरे आखिर करते क्या हें। सवाल यह उठता है कि आखिर 1900 मछुआरों को जिन्हें मछुआ केे्रडिट कार्ड के माध्यम से जीरो ब्याजदर पर ऋण उपलब्ध कराया गया है तो आखिर उन्हें शासन द्वारा मछुआरा क्यों घोषित किया गया जबकि जिले में मत्स्यपालन की मात्रा काफी कम है और असलियत में परंपरागत और वंशानुगत मछुआरों के पास मत्स्यापालन व मत्स्याखेट के साधन ही उपलब्ध नहीं है।
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