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नीमच - 12 नवंबर 2015 को नीमच (मध्यप्रदेश) के दो पत्रकार लोकेन्द्र फतनानी व नरेंद्र गहलोत द्वारा पुलिस अधीक्षक नीमच को 11 नवंबर को दर्ज किए फर्जी प्रकरण के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही करने हेतु आवेदन दिया था, जिसमे उन्होंने उल्लेख किया था कि उनके अन्य दो पत्रकार साथी पर व उन पर भरभड़िया के दबंग पूर्व सरपंच व उसके समर्थको ने जान लेवा हमला किया था इसी हमले के दौरान हम दोनों मौके से भाग खड़े हुए व उनके अन्य दो साथियो व उन पर नीमच केंट थाने पर फर्जी प्रकरण दर्ज करवाया जा चूका है। उक्त आवेदन पर पुलिस द्वारा आज दिनांक तक 71-72 दिन व्यतीत होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इससे तो साफ़ प्रतीत होता है की इसमे पुलिस द्वारा बालाराम व उनके समर्थको को संरक्षण दिया जा रहा है। जब पत्रकारो द्वारा दिनांक 11/12/2015 को सांय 7 बजे ही नीमच जिला कलेक्टर व पुलिस को उक्त घटना के सम्बन्ध में अवगत करा दिया गया था तो फिर चारो पत्रकारो को ही क्यों मुल्जिम बनाकर सलाखों के पीछे पहुचाया गया ? यदि इसी प्रकार पुलिस पत्रकारो को झुठे प्रकरण में फंसाती रहेगी तो जिस प्रकार आमजन को पुलिस पर से विश्वास उठ चूका है उसी प्रकार पत्रकारो को भी पुलिस पर से विश्वास उठ जाएगा। नीमच केंट पुलिस द्वारा मात्र 22 मिनिट में दिनांक 11/12/2015 को सच्चे व ईमानदार पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लिया गया था। पुलिस को सूचना पत्रकारो द्वारा दी गई, पुलिस द्वारा ही मौके पर से पत्रकारो को लाया गया जंहा की अवेध बोरवेल उत्खनन हो रहा था। पुलिस यदि चाहती तो उस समय अवेध बोरवेल उत्खनन को रुकवा सकती थी। पुलिस ने पहुंचकर ही पत्रकारो को बालाराम व उसके समर्थको से छुडवाया किन्तु जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था वह आज भी खुल्ले में बेख़ौफ़ घूम रहे है। क्या पुलिस पत्रकारो को अपना दुश्मन समझती है जो नियम के विरुद्ध बिना जांच करे पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लेती है। पूर्व में 24/10/2015 को भी उसी जगह अवैध खनन् को उक्त पत्रकारो ने रुकवाकर मशीन जप्त करवाई थी व प्रकरण दर्ज करवाया था। यह प्रकरण नीमच न्यायालय में अभी चल रहा है। और सबसे बड़ी बात तो यह है की न्यायालय ने उक्त जगह उत्खनन पर प्रतिबन्ध लगाया था। किन्तु फिर भी उसी जगह उत्खनन की जानकारी जब मिडियाकर्मी को लगी तो वे कवरेज करने ग्राम भरभड़िया पहुचे। यह न्यायालय के आदेशो की अवहेलना है जिस पर की पुलिस को तत्काल कार्यवाही करना चाहिए थी। गत 15/02/2016 को पुनः उसी जगह बोर को और गहरा करने का काम रात्रि में शुरू हुआ। जेसे ही यह शुरू हुआ उसकी सुचना भी व्हाट्सऐप पर अधिकारियो तक पहुच गई किन्तु फिर भी किसी अधिकारी ने कार्यवाही नहीं की। पुलिस प्रशासन को यह समझना अति आवश्यक है की समाज को आइना दिखाने का काम पत्रकारो का होता है और पत्रकार आमजन की तरह भीड़ का हिस्सा नहीं है। क्या यह खबर देखने के बाद नीमच पुलिस प्रशासन पुनः चारो पत्रकारो पर कार्यवाही करेगा या फिर उन लोगो पर जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था ?
नीमच - 12 नवंबर 2015 को नीमच (मध्यप्रदेश) के दो पत्रकार लोकेन्द्र फतनानी व नरेंद्र गहलोत द्वारा पुलिस अधीक्षक नीमच को 11 नवंबर को दर्ज किए फर्जी प्रकरण के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही करने हेतु आवेदन दिया था, जिसमे उन्होंने उल्लेख किया था कि उनके अन्य दो पत्रकार साथी पर व उन पर भरभड़िया के दबंग पूर्व सरपंच व उसके समर्थको ने जान लेवा हमला किया था इसी हमले के दौरान हम दोनों मौके से भाग खड़े हुए व उनके अन्य दो साथियो व उन पर नीमच केंट थाने पर फर्जी प्रकरण दर्ज करवाया जा चूका है। उक्त आवेदन पर पुलिस द्वारा आज दिनांक तक 71-72 दिन व्यतीत होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इससे तो साफ़ प्रतीत होता है की इसमे पुलिस द्वारा बालाराम व उनके समर्थको को संरक्षण दिया जा रहा है। जब पत्रकारो द्वारा दिनांक 11/12/2015 को सांय 7 बजे ही नीमच जिला कलेक्टर व पुलिस को उक्त घटना के सम्बन्ध में अवगत करा दिया गया था तो फिर चारो पत्रकारो को ही क्यों मुल्जिम बनाकर सलाखों के पीछे पहुचाया गया ? यदि इसी प्रकार पुलिस पत्रकारो को झुठे प्रकरण में फंसाती रहेगी तो जिस प्रकार आमजन को पुलिस पर से विश्वास उठ चूका है उसी प्रकार पत्रकारो को भी पुलिस पर से विश्वास उठ जाएगा। नीमच केंट पुलिस द्वारा मात्र 22 मिनिट में दिनांक 11/12/2015 को सच्चे व ईमानदार पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लिया गया था। पुलिस को सूचना पत्रकारो द्वारा दी गई, पुलिस द्वारा ही मौके पर से पत्रकारो को लाया गया जंहा की अवेध बोरवेल उत्खनन हो रहा था। पुलिस यदि चाहती तो उस समय अवेध बोरवेल उत्खनन को रुकवा सकती थी। पुलिस ने पहुंचकर ही पत्रकारो को बालाराम व उसके समर्थको से छुडवाया किन्तु जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था वह आज भी खुल्ले में बेख़ौफ़ घूम रहे है। क्या पुलिस पत्रकारो को अपना दुश्मन समझती है जो नियम के विरुद्ध बिना जांच करे पत्रकारो पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर लेती है। पूर्व में 24/10/2015 को भी उसी जगह अवैध खनन् को उक्त पत्रकारो ने रुकवाकर मशीन जप्त करवाई थी व प्रकरण दर्ज करवाया था। यह प्रकरण नीमच न्यायालय में अभी चल रहा है। और सबसे बड़ी बात तो यह है की न्यायालय ने उक्त जगह उत्खनन पर प्रतिबन्ध लगाया था। किन्तु फिर भी उसी जगह उत्खनन की जानकारी जब मिडियाकर्मी को लगी तो वे कवरेज करने ग्राम भरभड़िया पहुचे। यह न्यायालय के आदेशो की अवहेलना है जिस पर की पुलिस को तत्काल कार्यवाही करना चाहिए थी। गत 15/02/2016 को पुनः उसी जगह बोर को और गहरा करने का काम रात्रि में शुरू हुआ। जेसे ही यह शुरू हुआ उसकी सुचना भी व्हाट्सऐप पर अधिकारियो तक पहुच गई किन्तु फिर भी किसी अधिकारी ने कार्यवाही नहीं की। पुलिस प्रशासन को यह समझना अति आवश्यक है की समाज को आइना दिखाने का काम पत्रकारो का होता है और पत्रकार आमजन की तरह भीड़ का हिस्सा नहीं है। क्या यह खबर देखने के बाद नीमच पुलिस प्रशासन पुनः चारो पत्रकारो पर कार्यवाही करेगा या फिर उन लोगो पर जिन्होंने चारो पत्रकारो पर जानलेवा हमला किया था ?
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