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भोपाल । निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक रेत, पत्थर व गिट्टी के लिए खदानों के लिए अब राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के पास नहीं भटकना पड़ेगा, बल्कि कलेक्टर से ही स्वीकृति मिल जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा किए नियमों में बदलाव के चलते अब 5 हेक्टेयर तक की खदानों की पर्यावरणीय मंजूरी देने के अधिकार कलेक्टरों को दे दिए गए हैं। इसके लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी, जिसकी प्रक्रिया प्रदेश में शुरू कर दी गई है।
केंद्र सरकार ने यह फैसला विभिन्न राज्यों की मांग के चलते किया है। इसकी वजह थी निर्माण कार्यों की जरूरतें आसानी से पूरी की जा सके। दरअसल प्रदेश स्तर पर गठित समिति के पास पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए राज्यभर से आए दिन ढेरों प्रस्ताव रोजाना आते थे जिससे मामलों को निपटाने में काफी समय लग जाता था। इस स्थिति के चलते बाजार में रेत, गिट्टी, मुरम और पत्थर की मांग आपूर्ति का अंतर बढऩे से इनके भाव भी आसमान छूने लगे हैं। वर्ष 2006 के पहले तक लघु-गौण खनिज की ऐसी खदानों के लिए पर्यावरण अनुमति जरूरी नहीं रहती थी, लेकिन 22 सितंबर 2014 को दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार का मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। लंबी बहस और चर्चा के बाद छोटी खदानों के लिए जिला व्यवस्था लागू करने का फैसला हो गया। हाल ही में केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी। एनजीटी ने भी 13 जनवरी 15 को अपने आदेश में लघु खनन पट्टे की पर्यावरणीय नीति बनाने का निर्देश दिया।
750 मामलों के निपटाने का इंतजार
राज्य स्तरीय समिति के पास विभिन्न जिलों की 750 खदानों के मामले अनुमति के लिए पेंडिंग है। एक महीने से अनापत्ति देने का काम भी लगभग बंद है। जिला स्तरीय समितियां का इंतजार हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि ये सभी मामले जिला समितियों के अस्तित्व में आने के बाद संबंधित जिलों में लौटा दिए जाएंगे।
तीन साल में गठित होगी समिति
जिलों में गठित होने वाले चार सदस्यीय जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (दिया) एवं इसके सहयोग के लिए जिला स्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति ने 11 सदस्य होंगे। कलेक्टर इसके पदेन चेयरमैन होंगे। समिति ने वन अधिकारी, खनन और भू विज्ञान विभाग में सहायक निदेशक या उप निदेशक स्तर के अधिकारी रहेंगे। ‘दियाÓ में भू विज्ञानी को सचिव बनाया जाएगा। हर तीन साल में समिति का पुर्नगठन होगा।
एक माह मेें होगा गठन
खनिज साधन विभाग का मानना है कि अगले एक महीने में सभी जिलों तक समितियों का गठन हो सकता है। केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद राज्य सरकार ने सभी संभागीय मुख्यालयों को निर्देश भेज दिए हैं। माइनिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि जिला स्तरीय समितियों के गठन के छह-आठ महीने बाद इस निर्णय का असर मार्केट में दिखने लगेगा।
भरपूर आपर्ति तो कीमतें घटेंगीं
– लघु खनिज की खदानों पर केंद्र के इस निर्णय से क्या फर्क पड़ेगा?
-यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है। अब खदानें जल्दी शुरू हो सकेंगी।
-क्या अब रेत, गिटटी, मुरम और पत्थर की कीमतें कम होंगी ?
-हां, बिल्कुल। खदानों की मंजूरी जल्दी होने से उत्पादन बढ़ेगा। मार्केट में भरपूर आपूर्ति से कीमतें भी घटेंगी।
-अभी प्रदेश स्तरीय समिति में सैंकड़ों मामले पेंडिंग हैं। इनके निराकरण की क्या नीति रहेगी?
-जिला समितियां गठित होते ही सभी मामले ट्रांसफर होंगे और प्राथमिकता से उनका निपटारा होगा।
-इस मुद्दे को लेकर मप्र सरकार ने क्या पहल की, कभी केंद्र सरकार से चर्चा हुई ?
-हम लंबे समय से यह मांग कर रहे थे, निर्णय स्वागत योग्य है।
भोपाल । निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक रेत, पत्थर व गिट्टी के लिए खदानों के लिए अब राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के पास नहीं भटकना पड़ेगा, बल्कि कलेक्टर से ही स्वीकृति मिल जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा किए नियमों में बदलाव के चलते अब 5 हेक्टेयर तक की खदानों की पर्यावरणीय मंजूरी देने के अधिकार कलेक्टरों को दे दिए गए हैं। इसके लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी, जिसकी प्रक्रिया प्रदेश में शुरू कर दी गई है।
केंद्र सरकार ने यह फैसला विभिन्न राज्यों की मांग के चलते किया है। इसकी वजह थी निर्माण कार्यों की जरूरतें आसानी से पूरी की जा सके। दरअसल प्रदेश स्तर पर गठित समिति के पास पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए राज्यभर से आए दिन ढेरों प्रस्ताव रोजाना आते थे जिससे मामलों को निपटाने में काफी समय लग जाता था। इस स्थिति के चलते बाजार में रेत, गिट्टी, मुरम और पत्थर की मांग आपूर्ति का अंतर बढऩे से इनके भाव भी आसमान छूने लगे हैं। वर्ष 2006 के पहले तक लघु-गौण खनिज की ऐसी खदानों के लिए पर्यावरण अनुमति जरूरी नहीं रहती थी, लेकिन 22 सितंबर 2014 को दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार का मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। लंबी बहस और चर्चा के बाद छोटी खदानों के लिए जिला व्यवस्था लागू करने का फैसला हो गया। हाल ही में केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी। एनजीटी ने भी 13 जनवरी 15 को अपने आदेश में लघु खनन पट्टे की पर्यावरणीय नीति बनाने का निर्देश दिया।
750 मामलों के निपटाने का इंतजार
राज्य स्तरीय समिति के पास विभिन्न जिलों की 750 खदानों के मामले अनुमति के लिए पेंडिंग है। एक महीने से अनापत्ति देने का काम भी लगभग बंद है। जिला स्तरीय समितियां का इंतजार हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि ये सभी मामले जिला समितियों के अस्तित्व में आने के बाद संबंधित जिलों में लौटा दिए जाएंगे।
तीन साल में गठित होगी समिति
जिलों में गठित होने वाले चार सदस्यीय जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (दिया) एवं इसके सहयोग के लिए जिला स्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति ने 11 सदस्य होंगे। कलेक्टर इसके पदेन चेयरमैन होंगे। समिति ने वन अधिकारी, खनन और भू विज्ञान विभाग में सहायक निदेशक या उप निदेशक स्तर के अधिकारी रहेंगे। ‘दियाÓ में भू विज्ञानी को सचिव बनाया जाएगा। हर तीन साल में समिति का पुर्नगठन होगा।
एक माह मेें होगा गठन
खनिज साधन विभाग का मानना है कि अगले एक महीने में सभी जिलों तक समितियों का गठन हो सकता है। केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद राज्य सरकार ने सभी संभागीय मुख्यालयों को निर्देश भेज दिए हैं। माइनिंग क्षेत्र से जुड़े जानकारों का मानना है कि जिला स्तरीय समितियों के गठन के छह-आठ महीने बाद इस निर्णय का असर मार्केट में दिखने लगेगा।
भरपूर आपर्ति तो कीमतें घटेंगीं
– लघु खनिज की खदानों पर केंद्र के इस निर्णय से क्या फर्क पड़ेगा?
-यह बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है। अब खदानें जल्दी शुरू हो सकेंगी।
-क्या अब रेत, गिटटी, मुरम और पत्थर की कीमतें कम होंगी ?
-हां, बिल्कुल। खदानों की मंजूरी जल्दी होने से उत्पादन बढ़ेगा। मार्केट में भरपूर आपूर्ति से कीमतें भी घटेंगी।
-अभी प्रदेश स्तरीय समिति में सैंकड़ों मामले पेंडिंग हैं। इनके निराकरण की क्या नीति रहेगी?
-जिला समितियां गठित होते ही सभी मामले ट्रांसफर होंगे और प्राथमिकता से उनका निपटारा होगा।
-इस मुद्दे को लेकर मप्र सरकार ने क्या पहल की, कभी केंद्र सरकार से चर्चा हुई ?
-हम लंबे समय से यह मांग कर रहे थे, निर्णय स्वागत योग्य है।
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