अवधेश पुरोहित
Present by - toc news
भोपाल. हालांकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बनकर सत्ता पर काबिज हुई थी इस सरकार के सत्ता के लगभग १२ साल पूरे होने के बावजूद भी इस प्रदेश की जनता को सरकारी लाख दावों के बावजूद भी २४ घंटे बिजली मिल पा रही है, स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश के किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं और वह अपने खेतों की ठीक से सिंचाई भी नहीं कर पा रहे हैं लेकिन इन सबसे मजे की बात प्रदेश के ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने विधानसभा चुनाव के समय बिजली की दरों में आगामी साल से कमी आने के दावे किये थे किन्तु वह दावे झूठे साबित हुए और पिछले साल भी दर वृद्धि की गई थी और इस बार भी बिजली कंपनियों ने घाटे का हवाला देकर फिर दर वृद्धि की मांग की, पूर्व में बिजली सरप्लस होने को आधार बताकर बिजली की दरों में कमी आने की संभावना जताई गई थी, अब भी बिजली सरप्लास है पर दर में कमी करने के दावे को राज्य के ऊर्जा मंत्री शायद भूल गए, तभी तो विद्युत कम्पनियों द्वारा राज्य के उपभोक्ताओं को बिजली की दर बढ़ाकर उन पर पुन: बोझ डालने के प्रयास में है, तो वहीं यह कम्पनियां प्रदेश की जनता को तो महंगी दरों पर बिजली उपलब्ध करा रहे हैं पर वहीं दूसरे राज्यों को सस्ती दरों पर बिजली क्यों उपलब्ध कराई जा रही है,
सरकार की इस तरह की दोहरी नीति को लेकर बिजली उपभोक्ता परेशान हैं, हालांकि बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने का यह सिलसिला इस बात को जाहिर करता है कि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इतनी कमजोर है कि वह सरकार द्वारा और खासकर बिजली कंपनियों द्वारा बार-बार दरें बढ़ाने का क्रम जारी रखे हुए है, लेकिन वह इसका विरोध नहीं कर पा रही है और ना ही नियामक आयोग के समक्ष इस बात को लेकर कोई ठोस तर्क नहीं रख पा रही है जिसके कारण विद्युत कंपनियां अपने मनमानी के चलते घाटे का सहारा लेकर बिजली की दरें उपभोक्ताओं पर थोपती रहती है,
इस सब घटनाक्रम को देखकर राज्य की जनता को इन दिनों आ रहे दिल्ली सरकार के उस विज्ञापन देखकर यह तरस आता है कि जिसमें वह महिला यह कहती नजर आती है कि केजरीवाल सरकार के पूर्व हमारा बिजली का बिल चार हजार से पांच हजार तक आता था लेकिन केजरीवाल सरकार आने के बाद अब हमारा बिल १३ रुपये महीने के लगभग आता है और वह यह महिला यह भी कहती नजर आती है कि पहले की उपेक्षा हमारी दिल्ली की सरकार ने बिजली के दाम आधे कर दिये। सवाल यह उठता है कि आखिर केजरीवाल सरकार में ऐसा क्या जादू है कि जो अपने राज्य की जनता को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा रही है जबकि उस सरकार के पास बिजली उत्पादन की इकाईयां भी कम हैं और अन्य राज्यों से बिजली खरीदने के साथ-साथ वहां निजी कंपनियां बिजली सप्लाई का काम कर रही हैं, प्रदेश की विद्युत कम्पनियों द्वारा बार-बार विद्युत की दरें बढ़ाने का विरोध जितनी ताकत और तर्क के साथ राज्य के आप पार्टी के नेताओं द्वारा नियामक आयोग के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया, वैसा राज्य की किसी अन्य पार्टी या संगठन द्वारा नहीं, बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने को लेकर सवाल यह उठता है कि दिल्ली सरकार अपने उपभोक्ताओं को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा सकती है तो हमारी सरकार क्यों नहीं, तो वहीं लोगों में यह चर्चा का विषय भी आम है कि जनता को चुनाव के पूर्व आश्वासन देकर सत्ता में आने के बाद उन्हें पर्याप्त सुविधा दिलाने और अपने वायदे निभाने की ताकत हमारे राजनेताओं में नहीं है
तभी तो प्रदेश में पर्याप्त बिजली होने के बावजूद भी राज्य के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली उपलब्ध कराई जा रही है ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य के ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य की जनता को यह आश्वासन दिया था कि आगामी साल में बिजली की दरों में कमी की जाएगी तो उनका यह दावा केवल चुनावी दावा बनकर रह गया। सवाल यह भी उठता है कि राज्य के यह हमारे सत्ताधीश कब तक इस तरह से जनता को गुमराह करते रहेंगे और उनपर महंगी बिजली का भार थोपते रहेंगे।
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भोपाल. हालांकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बिजली, पानी और सड़क के मुद्दे पर बनकर सत्ता पर काबिज हुई थी इस सरकार के सत्ता के लगभग १२ साल पूरे होने के बावजूद भी इस प्रदेश की जनता को सरकारी लाख दावों के बावजूद भी २४ घंटे बिजली मिल पा रही है, स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश के किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं और वह अपने खेतों की ठीक से सिंचाई भी नहीं कर पा रहे हैं लेकिन इन सबसे मजे की बात प्रदेश के ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने विधानसभा चुनाव के समय बिजली की दरों में आगामी साल से कमी आने के दावे किये थे किन्तु वह दावे झूठे साबित हुए और पिछले साल भी दर वृद्धि की गई थी और इस बार भी बिजली कंपनियों ने घाटे का हवाला देकर फिर दर वृद्धि की मांग की, पूर्व में बिजली सरप्लस होने को आधार बताकर बिजली की दरों में कमी आने की संभावना जताई गई थी, अब भी बिजली सरप्लास है पर दर में कमी करने के दावे को राज्य के ऊर्जा मंत्री शायद भूल गए, तभी तो विद्युत कम्पनियों द्वारा राज्य के उपभोक्ताओं को बिजली की दर बढ़ाकर उन पर पुन: बोझ डालने के प्रयास में है, तो वहीं यह कम्पनियां प्रदेश की जनता को तो महंगी दरों पर बिजली उपलब्ध करा रहे हैं पर वहीं दूसरे राज्यों को सस्ती दरों पर बिजली क्यों उपलब्ध कराई जा रही है,
सरकार की इस तरह की दोहरी नीति को लेकर बिजली उपभोक्ता परेशान हैं, हालांकि बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने का यह सिलसिला इस बात को जाहिर करता है कि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इतनी कमजोर है कि वह सरकार द्वारा और खासकर बिजली कंपनियों द्वारा बार-बार दरें बढ़ाने का क्रम जारी रखे हुए है, लेकिन वह इसका विरोध नहीं कर पा रही है और ना ही नियामक आयोग के समक्ष इस बात को लेकर कोई ठोस तर्क नहीं रख पा रही है जिसके कारण विद्युत कंपनियां अपने मनमानी के चलते घाटे का सहारा लेकर बिजली की दरें उपभोक्ताओं पर थोपती रहती है,
इस सब घटनाक्रम को देखकर राज्य की जनता को इन दिनों आ रहे दिल्ली सरकार के उस विज्ञापन देखकर यह तरस आता है कि जिसमें वह महिला यह कहती नजर आती है कि केजरीवाल सरकार के पूर्व हमारा बिजली का बिल चार हजार से पांच हजार तक आता था लेकिन केजरीवाल सरकार आने के बाद अब हमारा बिल १३ रुपये महीने के लगभग आता है और वह यह महिला यह भी कहती नजर आती है कि पहले की उपेक्षा हमारी दिल्ली की सरकार ने बिजली के दाम आधे कर दिये। सवाल यह उठता है कि आखिर केजरीवाल सरकार में ऐसा क्या जादू है कि जो अपने राज्य की जनता को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा रही है जबकि उस सरकार के पास बिजली उत्पादन की इकाईयां भी कम हैं और अन्य राज्यों से बिजली खरीदने के साथ-साथ वहां निजी कंपनियां बिजली सप्लाई का काम कर रही हैं, प्रदेश की विद्युत कम्पनियों द्वारा बार-बार विद्युत की दरें बढ़ाने का विरोध जितनी ताकत और तर्क के साथ राज्य के आप पार्टी के नेताओं द्वारा नियामक आयोग के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया, वैसा राज्य की किसी अन्य पार्टी या संगठन द्वारा नहीं, बार-बार बिजली की दरें बढ़ाने को लेकर सवाल यह उठता है कि दिल्ली सरकार अपने उपभोक्ताओं को कम दरों में बिजली उपलब्ध करा सकती है तो हमारी सरकार क्यों नहीं, तो वहीं लोगों में यह चर्चा का विषय भी आम है कि जनता को चुनाव के पूर्व आश्वासन देकर सत्ता में आने के बाद उन्हें पर्याप्त सुविधा दिलाने और अपने वायदे निभाने की ताकत हमारे राजनेताओं में नहीं है
तभी तो प्रदेश में पर्याप्त बिजली होने के बावजूद भी राज्य के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली उपलब्ध कराई जा रही है ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य के ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य की जनता को यह आश्वासन दिया था कि आगामी साल में बिजली की दरों में कमी की जाएगी तो उनका यह दावा केवल चुनावी दावा बनकर रह गया। सवाल यह भी उठता है कि राज्य के यह हमारे सत्ताधीश कब तक इस तरह से जनता को गुमराह करते रहेंगे और उनपर महंगी बिजली का भार थोपते रहेंगे।
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