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वाह रवीश! आज एक अर्णव गोस्वामी, एक दीपक चौरसिया, एक रोहित सरदाना आपको टीवी का स्क्रीन ब्लैंक छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है! आज आपको टीवी एंकरों पर पश्चाताप हो रहा है! लेकिन जब आपके इसी एनडीटीवी की एक संपादक बरखा दत्त की रिपोर्टिंग के कारण कारगिल में जवान मरे, 26/11 में एनडीटीवी की रिपोर्टिंग से आतंकवादियों को सुरक्षाकर्मियों के एग्जेक्ट लोकेशन का पता चला, तब आपको ऐसी रिपोर्टिंग पर शर्म महसूस नहीं हुई! तब आपने खुद और अपनी एनडीटीवी को टीबी का शिकार नहीं बताया!
रवीश, जब आपके ही चैनल के बरखा दत्त का नाम 2 जी स्पेक्ट्रम की दलाली में सामने आया और नीरा राडिया के साथ उनकी बातचीत के अॉडियो को देश ने सुना, तब आपने टीवी स्क्रीन अॉफ कर वो आवाज किसी को नहीं सुनाई, जैसा कि आज सुना रहे हैं!
जब इसी एनडीटीवी पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के 5000 करोड़ का काला धन हवाला के जरिए अपनी चैनल में लगाकर सफेद करने का केस चला तो न आपको शर्मिंन्दगी हुई और न पत्रकारिता को बेमौत मारने पर पश्चाताप हुआ! लेकिन आज हो रहा है, क्योंकि आज हर पत्रकार की अलग-अलग आवाज है, क्योंकि आज इशरत जहां को निर्दोष साबित करने के लिए पत्रकारिता का वह झुंड बंधा चेहरा सामने नहीं आ रहा है!
रविश कुमार गमगीन आवाज में टीवी के पर्दे को काला कर पटियाला हाउस में पत्रकारों की पिटाई की घटना पर बोलना एक बात है, और उसके लिए निकाले मार्च में दांत निपोरते हुए सेल्फी-सेल्फी खेलना, बिल्कुल उसके उलट बात!
मैं दिल्ली पत्रकार संघ का कार्रकारी सदस्य हूं! पिछले एक साल से मैं और मेरे पत्रकार साथी नेशनल यूनियन अॉफ जर्नलिस्ट के साथ मिलकर देश के अलग-अलग हिस्सों में पत्रकारों पर हो रहे हमले, उनकी हो रही हत्या के विरोध में मार्च निकाल रहे हैं, इस सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानून की मांग कर रहे हैं! अभी-अभी आजतक के एक पत्रकार की उप्र में निर्दयता पूर्वक हत्या हुई, उसके विरोध में हमने रैली निकाली, लेकिन उसमें न आप आए, न राजदीप सरदेसाई, न बरखा दत्त, न अभिसार, न सिद्धार्थ वरदराजन, न उर्मिलेश एवं वो अन्य जो आज पटियाला हाउस की घटना को पत्रकारिता पर हमला बता रहे हैं! रवीश वो एक पत्रकार की हत्या थी, और एक नहीं कई पत्रकारों की हत्या हुई, लेकिन बुलावा भेजने पर भी आपमें से कोई एलिट पत्रकार पत्रकारों की जान बचाने के लिए निकाली गई एक भी रैली में नहीं आया! फिर आज क्यों नहीं आप अभिजातवर्गीय पत्रकारों के झुंड को मुख्य मुद्दे से देश का ध्यान भटकाने की कोशिश में लगा हुआ माना जाए?
मुख्य मुद्दा! 'भारत की बर्बादी तक, जंग चलेगी-जंग चलेगी!' 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह!' एक बार भी आपके बंद टीवी स्क्रीन पर सुनाई जा रही अॉडियो में इन नारों की आवाज सुनाई नहीं दी! देती भी कैसे? यही तो हिप्पोक्रेसी है! यही पाखंड है!
आप कहते हैं अदालत का निर्णय आने से पहले ही कन्हैया और उमर को देशद्रोही साबित कर दिया गया! आपने भी तो अदालत के निर्णय से पहले पटियाला हाउस के वकीलों को गुंडा करार दिया! पटियाला हाउस की घटना पर आप कह रहे हैं कि दुनिया ने देखा और जेएनयू की घटना पर आप कह रहे हैं कि वीडियो से छेड़छाड़ हुई! रवीश आप कब पत्रकार से जज बन गए आपको पता चला? इशरत जहां और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की अपने चैनल की रिपोर्टिंग व आपकी एंकरिंग आपको याद है या याद दिलाऊँ श्रीमान जज रविश कुमार! फैसला तो उस पर भी नहीं आया है, लेकिन टीवी स्टूडियो में इशरत को मासूम, निर्दोष और शहीद कबका करार दिया जा चुका है!
रवीश, सोशल मीडिया ने जब आप लोगों से जज बनने का अधिकार छीन लिया, पत्रकारों व एंकरों पर सही रिपोर्टिंग के लिए दबाब बनाना शुरू किया तो झुंड बांधकर एक लाइन पर हो रही रिपोर्टिंग का दौर समाप्त हुआ! अभिजातवर्गीय पत्रकारों का एकाधिकार टूटा! तो आप जैसों को सोशल मीडिया और अलग लाइन लेने वाले पत्रकारों से दिक्कत होने लगी!
रवीश असली समस्या पाखंड और पाखंडी पत्रकारिता व पत्रकारों के उजागर होने का है और यह मैं एक पत्रकार की हैसियत से जान-समझ कर यह कह रहा हूं। मेरा भी 15 साल की पत्रकारिता का अनुभव है और बड़े आखबारों का अनुभव है! यह इसलिए कह रहा हूं कि जो आपके गिरोह का नहीं, आप लोग उसे पत्रकार मानते ही नहीं! आज पत्रकारिता के गिरोह टूटने का दर्द एनडीटीवी के ब्लैक स्क्रीन और आपकी गमगीन आवाज से जाहिर हो गया! अब पत्रकारिता मठाधीशों के चंगुल से आजाद है! और यही जनतांत्रिक पत्रकारिता आप, राजदीप और बरखा जैसों को दर्द दे रहा है!
(लेखक 'दिल्ली पत्रकार संघ' के सदस्य है)
वाह रवीश! आज एक अर्णव गोस्वामी, एक दीपक चौरसिया, एक रोहित सरदाना आपको टीवी का स्क्रीन ब्लैंक छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है! आज आपको टीवी एंकरों पर पश्चाताप हो रहा है! लेकिन जब आपके इसी एनडीटीवी की एक संपादक बरखा दत्त की रिपोर्टिंग के कारण कारगिल में जवान मरे, 26/11 में एनडीटीवी की रिपोर्टिंग से आतंकवादियों को सुरक्षाकर्मियों के एग्जेक्ट लोकेशन का पता चला, तब आपको ऐसी रिपोर्टिंग पर शर्म महसूस नहीं हुई! तब आपने खुद और अपनी एनडीटीवी को टीबी का शिकार नहीं बताया!
रवीश, जब आपके ही चैनल के बरखा दत्त का नाम 2 जी स्पेक्ट्रम की दलाली में सामने आया और नीरा राडिया के साथ उनकी बातचीत के अॉडियो को देश ने सुना, तब आपने टीवी स्क्रीन अॉफ कर वो आवाज किसी को नहीं सुनाई, जैसा कि आज सुना रहे हैं!
जब इसी एनडीटीवी पर पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के 5000 करोड़ का काला धन हवाला के जरिए अपनी चैनल में लगाकर सफेद करने का केस चला तो न आपको शर्मिंन्दगी हुई और न पत्रकारिता को बेमौत मारने पर पश्चाताप हुआ! लेकिन आज हो रहा है, क्योंकि आज हर पत्रकार की अलग-अलग आवाज है, क्योंकि आज इशरत जहां को निर्दोष साबित करने के लिए पत्रकारिता का वह झुंड बंधा चेहरा सामने नहीं आ रहा है!
रविश कुमार गमगीन आवाज में टीवी के पर्दे को काला कर पटियाला हाउस में पत्रकारों की पिटाई की घटना पर बोलना एक बात है, और उसके लिए निकाले मार्च में दांत निपोरते हुए सेल्फी-सेल्फी खेलना, बिल्कुल उसके उलट बात!
मैं दिल्ली पत्रकार संघ का कार्रकारी सदस्य हूं! पिछले एक साल से मैं और मेरे पत्रकार साथी नेशनल यूनियन अॉफ जर्नलिस्ट के साथ मिलकर देश के अलग-अलग हिस्सों में पत्रकारों पर हो रहे हमले, उनकी हो रही हत्या के विरोध में मार्च निकाल रहे हैं, इस सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानून की मांग कर रहे हैं! अभी-अभी आजतक के एक पत्रकार की उप्र में निर्दयता पूर्वक हत्या हुई, उसके विरोध में हमने रैली निकाली, लेकिन उसमें न आप आए, न राजदीप सरदेसाई, न बरखा दत्त, न अभिसार, न सिद्धार्थ वरदराजन, न उर्मिलेश एवं वो अन्य जो आज पटियाला हाउस की घटना को पत्रकारिता पर हमला बता रहे हैं! रवीश वो एक पत्रकार की हत्या थी, और एक नहीं कई पत्रकारों की हत्या हुई, लेकिन बुलावा भेजने पर भी आपमें से कोई एलिट पत्रकार पत्रकारों की जान बचाने के लिए निकाली गई एक भी रैली में नहीं आया! फिर आज क्यों नहीं आप अभिजातवर्गीय पत्रकारों के झुंड को मुख्य मुद्दे से देश का ध्यान भटकाने की कोशिश में लगा हुआ माना जाए?
मुख्य मुद्दा! 'भारत की बर्बादी तक, जंग चलेगी-जंग चलेगी!' 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह!' एक बार भी आपके बंद टीवी स्क्रीन पर सुनाई जा रही अॉडियो में इन नारों की आवाज सुनाई नहीं दी! देती भी कैसे? यही तो हिप्पोक्रेसी है! यही पाखंड है!
आप कहते हैं अदालत का निर्णय आने से पहले ही कन्हैया और उमर को देशद्रोही साबित कर दिया गया! आपने भी तो अदालत के निर्णय से पहले पटियाला हाउस के वकीलों को गुंडा करार दिया! पटियाला हाउस की घटना पर आप कह रहे हैं कि दुनिया ने देखा और जेएनयू की घटना पर आप कह रहे हैं कि वीडियो से छेड़छाड़ हुई! रवीश आप कब पत्रकार से जज बन गए आपको पता चला? इशरत जहां और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की अपने चैनल की रिपोर्टिंग व आपकी एंकरिंग आपको याद है या याद दिलाऊँ श्रीमान जज रविश कुमार! फैसला तो उस पर भी नहीं आया है, लेकिन टीवी स्टूडियो में इशरत को मासूम, निर्दोष और शहीद कबका करार दिया जा चुका है!
रवीश, सोशल मीडिया ने जब आप लोगों से जज बनने का अधिकार छीन लिया, पत्रकारों व एंकरों पर सही रिपोर्टिंग के लिए दबाब बनाना शुरू किया तो झुंड बांधकर एक लाइन पर हो रही रिपोर्टिंग का दौर समाप्त हुआ! अभिजातवर्गीय पत्रकारों का एकाधिकार टूटा! तो आप जैसों को सोशल मीडिया और अलग लाइन लेने वाले पत्रकारों से दिक्कत होने लगी!
रवीश असली समस्या पाखंड और पाखंडी पत्रकारिता व पत्रकारों के उजागर होने का है और यह मैं एक पत्रकार की हैसियत से जान-समझ कर यह कह रहा हूं। मेरा भी 15 साल की पत्रकारिता का अनुभव है और बड़े आखबारों का अनुभव है! यह इसलिए कह रहा हूं कि जो आपके गिरोह का नहीं, आप लोग उसे पत्रकार मानते ही नहीं! आज पत्रकारिता के गिरोह टूटने का दर्द एनडीटीवी के ब्लैक स्क्रीन और आपकी गमगीन आवाज से जाहिर हो गया! अब पत्रकारिता मठाधीशों के चंगुल से आजाद है! और यही जनतांत्रिक पत्रकारिता आप, राजदीप और बरखा जैसों को दर्द दे रहा है!
(लेखक 'दिल्ली पत्रकार संघ' के सदस्य है)
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