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इंदौर. सजा हुआ मंच, सुंदर-सी दुल्हन... सब खुश। पर यह क्या? हैंडसम सा दूल्हा घोड़ी पर नहीं व्हीलचेयर पर आया। गर्दन के नीचे शरीर का हिलना-डुलना भी मुश्किल, मगर इससे दुल्हन के चेहरे की खुशी कम नहीं हुई। 16 साल से वह उससे प्यार जो करती है। दुर्घटना में, प्रेमी लकवाग्रस्त हो भी गया तो क्या फर्क पड़ता है।
गौरव कहते हैं, 1998 में सविता से साकेत नगर में एक दोस्त के घर के नीचे दोनों मिले। मिलने का सिलसिला बढ़ा। करीब सात साल तक ऐसे ही चलता रहा।
मैं कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करने लगा। दोनों ने शादी के बारे में सोचा और 2005 में घरवालों को बता दिया। अलग-अलग समाज के होने के कारण दोनों के घरवालों ने इनकार कर दिया। मगर हम दोनों कहां मानने वाले थे। एक-दो साल बाद जब दोनों परिवारों को लगा कि ये नहीं मानेंगे तो वो थोड़ा तैयार हुए। जन्म कुंडलियां मिलाई तो सविता मंगली निकली। इस पर जो बात बनी थी वो भी बिगड़ गई। दोनों परिवारों ने साफ इनकार कर दिया। दोनों परिजनों को मनाने में लगे रहे।
सविता कहती हैं, इसी बीच 17 अगस्त 2008 को गौरव अपने तीन दोस्तों के साथ महू के पास वांचू पाइंट गए थे। उनकी कार खाई में गिर गई। जब गौरव को दोस्तों ने बाहर निकाला तो उनका शरीर काम नहीं कर पा रहा था। अस्पताल गए तो डॉक्टरों ने बताया कि स्पाइनल इंज्युरी होने के कारण शरीर को लकवा हो गया है। सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन तब भी प्यार कम नहीं हुआ।
परिवारवालों ने इस दुर्घटना के पीछे मेरे मंगली होने को जिम्मेदार ठहराया। गौरव से मिलने घर जाती तो घरवाले मिलने नहीं देते। घंटों घर के बाहर ही बैठी रहती। कुछ समय बाद, आखिर हमारे प्रेम और समर्पण को गौरव के परिवार ने भी समझा और मुझ पर लगाई रोक हटा दी। गौरव ने मुझसे कहीं और शादी करने के लिए कहा। मेरे परिवार ने लड़का भी देख लिया, लेकिन जल्दी ही हमारी समझ में आ गया कि एक-दूसरे के बिना नहीं जी सकते। तय हो गया कि कुछ भी हो, शादी करेंगे।
सविता जैसा समर्पण कोई नहीं कर सकता। सविता का प्यार मुझे जल्द ठीक होने के लिए प्रेरित करता है। डॉक्टर कहते हैं, दो-तीन साल में मैं ठीक हो जाऊंगा।
सविता के लिए हेट्स-ऑफ। -गौरव
सविता की तारीफ में हमारे पास शब्द नहीं है। उसने वो किया है, जो दुनिया में कोई नहीं कर सकता।
- सतीश और सुषमा (गौरव के माता-पिता)
इंदौर. सजा हुआ मंच, सुंदर-सी दुल्हन... सब खुश। पर यह क्या? हैंडसम सा दूल्हा घोड़ी पर नहीं व्हीलचेयर पर आया। गर्दन के नीचे शरीर का हिलना-डुलना भी मुश्किल, मगर इससे दुल्हन के चेहरे की खुशी कम नहीं हुई। 16 साल से वह उससे प्यार जो करती है। दुर्घटना में, प्रेमी लकवाग्रस्त हो भी गया तो क्या फर्क पड़ता है।
गौरव कहते हैं, 1998 में सविता से साकेत नगर में एक दोस्त के घर के नीचे दोनों मिले। मिलने का सिलसिला बढ़ा। करीब सात साल तक ऐसे ही चलता रहा।
मैं कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करने लगा। दोनों ने शादी के बारे में सोचा और 2005 में घरवालों को बता दिया। अलग-अलग समाज के होने के कारण दोनों के घरवालों ने इनकार कर दिया। मगर हम दोनों कहां मानने वाले थे। एक-दो साल बाद जब दोनों परिवारों को लगा कि ये नहीं मानेंगे तो वो थोड़ा तैयार हुए। जन्म कुंडलियां मिलाई तो सविता मंगली निकली। इस पर जो बात बनी थी वो भी बिगड़ गई। दोनों परिवारों ने साफ इनकार कर दिया। दोनों परिजनों को मनाने में लगे रहे।
सविता कहती हैं, इसी बीच 17 अगस्त 2008 को गौरव अपने तीन दोस्तों के साथ महू के पास वांचू पाइंट गए थे। उनकी कार खाई में गिर गई। जब गौरव को दोस्तों ने बाहर निकाला तो उनका शरीर काम नहीं कर पा रहा था। अस्पताल गए तो डॉक्टरों ने बताया कि स्पाइनल इंज्युरी होने के कारण शरीर को लकवा हो गया है। सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन तब भी प्यार कम नहीं हुआ।
परिवारवालों ने इस दुर्घटना के पीछे मेरे मंगली होने को जिम्मेदार ठहराया। गौरव से मिलने घर जाती तो घरवाले मिलने नहीं देते। घंटों घर के बाहर ही बैठी रहती। कुछ समय बाद, आखिर हमारे प्रेम और समर्पण को गौरव के परिवार ने भी समझा और मुझ पर लगाई रोक हटा दी। गौरव ने मुझसे कहीं और शादी करने के लिए कहा। मेरे परिवार ने लड़का भी देख लिया, लेकिन जल्दी ही हमारी समझ में आ गया कि एक-दूसरे के बिना नहीं जी सकते। तय हो गया कि कुछ भी हो, शादी करेंगे।
सविता जैसा समर्पण कोई नहीं कर सकता। सविता का प्यार मुझे जल्द ठीक होने के लिए प्रेरित करता है। डॉक्टर कहते हैं, दो-तीन साल में मैं ठीक हो जाऊंगा।
सविता के लिए हेट्स-ऑफ। -गौरव
सविता की तारीफ में हमारे पास शब्द नहीं है। उसने वो किया है, जो दुनिया में कोई नहीं कर सकता।
- सतीश और सुषमा (गौरव के माता-पिता)
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