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क्रिकेट के मैदान पर तो सचिन तेंदुलकर के बल्ले को अच्छे-अच्छे विरोधी खामोश नहीं कर सके है लेकिन संसद मे मास्टर ब्लास्टर की आवाज को उन्हीं के साथी सांसदों ने खामोश कर दिया. राज्यसभा के मनोनीत सदस्य सचिन पर आमतौर पर सदन से हैर हाजिर रहने और कार्यवाही में एक्टिव भागीदारी ना करने के आरोप लगते रहे हैं. गुरुवार को सचिन जब एक बेहद जरूरी मसले पर बोलना चाहते थे तब विपक्ष के सांसदों के हंगामें के चलते वह अपनी बात सदन में रख ही नहीं सके.
सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा में बच्चों के लिए खेलों के अधिकार का कानून यानी राइट टू प्ले बनाने की बहस को शुरू करने का नोटिस दिया था. सचिन को दोपहर दो बजे बोलने का वक्त मिला था. सचिन की बदकिस्मती यह रही कि उन्हें ऐसे दिन बोलने का वक्त मिला जिस दिन बहुचर्चित 2जी घोटाले का फैसला आया है.
दो बजे जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही आरंभ हुई, विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया. पहले सपा नेता नरेश अग्रवाल में इस मसले को उठाया उसके बाद कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा इस मुद्दे पर बोलने लगे. इस दौरान सभापति वैंकैया नायडू ने सचिन को अपना बार रखने के लिए कहा. सचिन खड़े भी हुए लेकिन विपक्ष के शोरशराबे के बीच अपनी बात नहीं रख सके. इस दौरान सभापति कई बार सचिन के भारत रत्न और स्पोर्ट्स आइकन होने की बात कहकर सांसदों को शांत रहने की हिदायत दी लेकिन हंगामा नहीं थमा और आखिरकार सदन शुक्रवार तक के लिए स्थगित हो गया.
क्या है राइट टू प्ले
दरअसल सचिन देश में खेलों के प्रति जागरुकता को बढ़ाने और बच्चों की इसमें भागीदारी को बढ़ाने के लिए खेलों के अधिकार को राइट टू एजूकेशन की तर्ज संवैधानिक अधिकार देने की मांग कर रहे हैं. अगर उनका सुझाव मान लिया जाता है तो फिर खेलों को अनिवार्य तौर पर कानूनी रूप से पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है. यह दर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे महत्वूर्ण मसले पर सचिन की स्पीच हंगामे की भेंट चढ़ गई.
क्रिकेट के मैदान पर सचिन भले ही रिकॉर्ड्स की एवरेस्ट पर बैठे हों लेकिन साल 2012 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए सचिन का सदन में रिकॉर्ड बेहद खराब है.
सचिन ने अपने पांच साल के कार्यकाल में अभी तक महज 22 सवाल ही पूछे हैं जिनमें से पांच खेलों से संबंधित हैं. सचिन ने अभी तक एक भी प्राइवेट मेंबर बिल पेश नहीं किया है किया है और एक रिसर्च के मुताबिक राज्यसभा में सचिन की उपस्थिति महज 8 फीसदी ही है.
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