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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
शास्वत सत्य को परिभाषित करने वालों ने मानवीय काया के अनुशासित प्रबंधन की व्याख्यायें तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप की थी। इसी प्रबंधन की विवेचनाओं ने व्यक्तिगत मानसिकताओं के आधार पर विभेद पैदा कर दिया। तीन तलाक से लेकर हलाला तक के मुद्दों ने पहली बार सार्वजनिक रूप से बहस का स्वरूप ग्रहण किया है। टेलीवेजन चैनल्स, सोसल मीडिया, समाचार पत्रों से लेकर चौराहों, चौपालों तक विषय पर होने वाली चर्चाओं में आम आवाम को रस आने लगा है। सोच चल ही रही थी कि कालबैल की मधुर धुन बजने लगी।
सुबह-सबेरे कौन आया होगा, इसी अटकल के साथ फ्लैट का प्रवेश द्वार खोला। हमारे पुराने परिचित जनाब कमरुद्दीन खान साहब अपना बैग लिये खडे थे। आत्मिक अभिवादन के साथ हम उन्हें ड्राइंग रूम में ले आये। सोफे पर आमने सामने जम गये। नौकर को चाय-पानी लाने के लिए कहा। कुशलक्षेम जानने के बाद हमने एक साथ चाय ग्रहण की। बातचीत का सिलसिला चल निकला। हमने अपने मन में चल रहे विचारों से उन्हें अवगत कराया। इस्लाम के कानून यानी शरीयत को रेखांकित करने की गरज से उन्होंने कहा कि यह कुरान शरीफ के आदेशों और हदीश यानी मुहम्मद साहब के निर्देशों का समुच्चय है। शरीयत पूरी तरह मानवतावादी है जिसमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए अनुशासित जीवन के सूत्र हैं। दूसरे शब्दों में हम शरीयत को मानव जीवन की आचार संहिता भी कह सकते हैं।
हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा कि ऐसे में यदि देश के मुसलमानों पर शरीयत के अनुसार जीवन जीने की बाध्यता लागू कर दी जाये तो निश्चित ही मुस्लिम समाज संतुष्ट हो जायेगा। उन्होंने नकारात्मकता में गर्दन हिलाते हुए कहा कि बिलकुल नहीं। देश के 60 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों के सामने भारी संकट आ जायेगा। वे शरीयत की बंदिशों से बहुत दूर निकल चुके हैं। जुआ खेलना, व्याजखोरी करना, शराब पीना, गरीबों को सताना जैसी बंदिशों की लम्बी फेरिश्त है। जिस पर चलने के लिए अब ज्यादातर मुसलमानों को भारी परेशानी होगी। हमने उन्हें एक बार फिर बीच में ही टोक दिया। तीन तलाक से लेकर हलाला तक पर उनकी टिप्पणी चाही।
उन्होंने अंतरिक्ष को घूरा। मानो वहां से कुछ खोजने या सोच से कुछ पैदा करने की कोशिश कर रहे हों। मुस्लिम समाज में शिक्षा की कमी को उत्तरदायी कारक निरूपित करते हुए उन्होंने कहा कि मुहम्मद साहब के शब्दों में सारे फर्जों से बडा है इल्म की तलब रखना। आज लोग अमल से गिर गये हैं। शरीयत के नाम पर मनमानी विवेचनायें कर रहे हैं। अशिक्षित लोगों को मौलवी-मौलानाओं ने अपनी मानसिकता के आधार पर गाइड करना शुरू कर दिया है। मदरसों की शिक्षा के नाम पर कूप-मंडूक बनाने की पाठशालायें चल रहीं हैं। नवनिहालों को संकुचित दायरे में कैद किया जा रहा है।
वास्तविकता से दूर रखा जा रहा है। हमने इस समस्या के समाधान का उपाय बताने की गुजारिश की। वास्तविक शिक्षा की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि देश के पहले शिक्षा मंत्री अब्दुल कलाम आजाद ने खुद तर्जुमानुल कुरान में सब कुछ स्पष्ट कर दिया था। उसकी उपलब्धता, नियमितता और निरंतरता को बाधित किया जा रहा है ताकि वास्तविक सोच को हाशिये पर पहुंचाया जा सके। ऐसा करने वाले लोग निहित स्वार्थों की जंजीरों में जकडे हुए हैं।
हमने कश्मीर के पत्थरबाजों और सेना के संयम पर उनसे राय मांगी। पूरी समस्या को राजनैतिक करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह मामला न तो इस्लाम का है और न ही आम मुसलमान। पत्थरबाज कुछ लोगों के उकसावे में यह हरकतें कर रहे हैं जिसे उचित कदापि नहीं कहा जा सकता। हमारी सेना के संयम को संवेदनशीलता का सर्वोच्च उदाहरण कहना अतिशयोक्ति पर होगा। अब वक्त आ गया है जब सरकार को कडे निर्णय लेना चाहिये ताकि अलगाववादी ताकतों को मुंह तोड जबाब मिल सके।
हम पहले भी विश्व के मार्गदर्शक थे और आने वाले वक्त में भी बनेंगे। तभी नौकर ने आकर नाश्ता तैयार हो जाने की सूचना दी। बातचीत का सिलसिल थम गया। जनाब कमरुद्दीन साहब नित्यक्रियाओं से निवृत्त होने वाथरूम में चले गये ताकि वे नाश्ते की टेबिल पर हमारे साथ भागीदारी दर्ज कर सकें। इस बार इतना ही। अगले हफ्ते एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
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