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रायपुर. राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना में छत्तीसगढ़ में करोड़ों का गड़बड़झाला सामने आया है। कैग ने इस योजना को लेकर जारी की गई अपनी रिपोर्ट में धन के दुरुपयोग के साथ-साथ योजना के क्रियान्वयन में घोर लापरवाही का खुलासा किया है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ पर तकऱीबन 14.77 करोड़ रुपए के फंड के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया है। कैग का कहना है कि आर्सेनिक फ्लोराइड और लोहे के प्रदूषण से जूझ रहे राज्य में गांव और राज्य के स्तर पर जल सुरक्षा योजना से सम्बंधित योजना नदारद है, न तो पानी की समुचित टेस्टिंग हो रही है न ही लैब काम कर रहे हैं।
पैसे होने के बावजूद नहीं लगाए गए पम्प
पेयजल योजना के अंतर्गत आर्थिक घोटाले का जिक्र करते हुए कैग ने कहा है कि इस योजना के अंतर्गत 2012 से 2017 के दौरान कांकेर जिले में स्टाप डैम, पम्प हाउस इत्यादि के निर्माण के नाम पर बिना काम किये 60 लाख रुपए निकाल लिए गया। जब इस सम्बन्ध में विभाग से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दो ठेकेदारों के खिलाफ कारवाई करके 26 लाख रुपए वसूले गए हैं।
पेयजल योजना के अंतर्गत आर्थिक घोटाले का जिक्र करते हुए कैग ने कहा है कि इस योजना के अंतर्गत 2012 से 2017 के दौरान कांकेर जिले में स्टाप डैम, पम्प हाउस इत्यादि के निर्माण के नाम पर बिना काम किये 60 लाख रुपए निकाल लिए गया। जब इस सम्बन्ध में विभाग से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दो ठेकेदारों के खिलाफ कारवाई करके 26 लाख रुपए वसूले गए हैं।
कैग का कहना है कि राज्य के ग्रामीण अंचलों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति हेतु एक हजार सोलर पम्प लगाए जाने थे लेकिन टार्गेट का 50 फीसदी लक्ष्य भी नहीं प्राप्त किया गया है। कैग का कहना है कि आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में आदेश के बावजूद सामुदायिक जल शोधन संयंत्र नहीं लगाए गए है, वहीं लोहे के प्रदूषण से जूझ रहे बस्तर, राजनांदगांव और जशपुर में लगाए गए 642 आयरन रिमूवल प्लांट में से 77 खराब पड़े हैं।
छात्रों के लिए बनी जलमणि योजना धाराशायी
विद्यालयों में पढने वाले छात्रों के लिए बनाई गई जलमणि योजना छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से धाराशायी हो गई है। 2008 में शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में शुद्ध पेयजल मुहैया कराना था। इस योजना के अंतर्गत राज्य के विभिन्न विद्यालयों में 362 जल शुद्धिकरण संयंत्र लगाए गए थे। मौका मुआयना में 262 संयंत्र खराब पाए गए।
विद्यालयों में पढने वाले छात्रों के लिए बनाई गई जलमणि योजना छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से धाराशायी हो गई है। 2008 में शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में शुद्ध पेयजल मुहैया कराना था। इस योजना के अंतर्गत राज्य के विभिन्न विद्यालयों में 362 जल शुद्धिकरण संयंत्र लगाए गए थे। मौका मुआयना में 262 संयंत्र खराब पाए गए।
कैग का कहना है कि रायपुर को छोड़कर अन्य जिलों में पानी टेस्टिंग की लैबोरेटरी की हालत बेहद खराब है। जिन आठ जिलों की आडिट की गई उनमे स्थापित किये गए जिला स्तरीय लैबोरेटरी में हाल इतने बुरे हैं कि निर्धारित किये गए 34 मापदंडों में से केवल 8 से 18 मापदंडो पर ही पानी की टेस्टिंग हो पा रही थी, कवर्धा सूरजपुर और जशपुर स्थित लैब में एक भी कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की गई है।
वाटर सैम्पलों की वार्षिक जांच ठप
कैग का कहना है कि 2012 से लेकर 2017 के बीच फंड डायवर्जन के 792 मामले सामने आये हैं ,जिसमे निर्धारित दरों से ज्यादा भुगतान करने के मामले भी शामिल हैं। गौरतलब है कि इन वर्षों में तकरीबन 92 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। कैग का कहना है कि जिला स्तर पर पेयजल सुरक्षा कमेटी बनाने की बात थी लेकिन आठ जिलों में से पांच जिलों ने कमेटी बनाये जाने से सम्बंधित कोई भी रिकार्ड प्रस्तुत नहीं किया।
कैग का कहना है कि 2012 से लेकर 2017 के बीच फंड डायवर्जन के 792 मामले सामने आये हैं ,जिसमे निर्धारित दरों से ज्यादा भुगतान करने के मामले भी शामिल हैं। गौरतलब है कि इन वर्षों में तकरीबन 92 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। कैग का कहना है कि जिला स्तर पर पेयजल सुरक्षा कमेटी बनाने की बात थी लेकिन आठ जिलों में से पांच जिलों ने कमेटी बनाये जाने से सम्बंधित कोई भी रिकार्ड प्रस्तुत नहीं किया।
लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी के प्रमुख अभियंता टी जी कोसरिया ने कहा कि फंड डायवर्जन का जो भी मामला है उसको लेकर आडिट रिपोर्ट देखकर ही हम कुछ कह सकेंगे, ऑडिट कमेटी ने जो कुछ मांगा था हमने मुहैया करा दिया था।
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