Saturday, September 15, 2018

पेट्रोल कीमतों की बहती गंगा में शुगर लॉबी को फायदा दिलाने में जुटी सरकार

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TOC NEWS @ http://tocnews.org/
गिरीश मालवीय 
मोदी जी का विजन कमाल का है लेकिन उनके मंत्रियों का विजन उससे भी अधिक कमाल का है। तीन दिन पहले गडकरी कह रहे थे कि पेट्रोल डीजल में इथेनॉल मिलाने से डीजल 50 रुपये और पेट्रोल 55 रुपये में उपलब्ध हो जाएगा। गडकरी जी ने देश में पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने को अनिवार्य भी कर दिया है, लेकिन कल मोदी सरकार ने एथेनॉल की कीमतों में सीधे 25 फीसदी बढ़ोतरी कर दी यानी गरीब को कहीं से भी जीने मत दो, महंगा कच्चा तेल हो गया है तो मिलाने वाला इथेनॉल भी महंगा कर दो।
चार दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी अपने प्रदेश के किसानों को गन्ना न उगाने की सलाह देते हैं। अब गन्ने के रस से सीधे ही इथेनॉल बन रहा है, तो यह तो फायदे का सौदा है, फिर उन्होंने मना क्यों किया ? वैसे सोचने की बात तो यह है कि गडकरी जी ने इथेनॉल की कीमतों में वृद्धि का फैसला क्यों किया होगा।
देश के व्यापारिक घरानों में सबसे ताकतवर है “शुगर लॉबी”, सुना है कि महाराष्ट्र में शुगर लॉबी से राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की मेल मुलाकात के बाद यह निर्णय लिया गया है। महाराष्ट्र में चीनी मिल मालिकों के गडकरी से बहुत अच्छे संबंध है, इस लॉबी द्वारा जोर दिया जा रहा है कि सरकार द्वारा इथेनॉल को बढ़ावा दिया जाए। इथेनॉल की मांग बढ़ेगी तो इनका व्यापार और लाभ बढ़ेगा। इस लॉबी को इस बात की चिंता नहीं है कि इथेनॉल के उत्पादन से देश की खाद्य सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
चूंकि 2019 के चुनाव नजदीक हैं इसलिए जल्दी-जल्दी भाजपा को चुनाव में बड़ी रकम जुटाना है पर उद्योगपति भी अब समझदार हो गए हैं। अब इस हाथ से दो उस हाथ लो वाला फंडा है।
एथेनॉल की कीमतें बढ़ाने के फैसले से शुगर कंपनियों के शेयरों में 20 फीसदी तेजी आई है। शुक्रवार को बाजार खुलने के कुछ घंटों में ही शुगर कंपनियों के निवेशकों की दौलत 842 करोड़ रुपये बढ़ गई है। अभी और भी बढ़ने की संभावना है यानी भाजपा को तगड़ा चन्दा शुगर लॉबी से मिलने का रास्ता साफ किया जा रहा है।
वैसे बायो फ्यूल की बात सही है दरअसल वनस्पतियों से उत्पादित ईंधन को बायोफ्यूल कहा जाता है। यह तीन प्रकार की वनस्पतियों से बनाया जाता है। एक, जहरीले फल जैसे जेट्रोफा से; दो, खाद्यान्न जैसे सोयाबीन से; और तीन, गन्ने के रस से जिसे इथेनॉल कहा जाता है। अब इथेनॉल मिलाने के निर्णय के नुकसान के बारे में सुन लीजिए। वैसे इससे फायदा सिर्फ 1 था कि इसको मिलाने से पेट्रोल डीजल की कीमत कम हो जाएगी। जो अब एथेनॉल के महंगे किये जाने से थोड़ी मुश्किल है।
पहला नुकसान यह है कि महंगाई बढ़ेगी
दरअसल जैव ईंधन की बढ़ती खेती के कारण खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ती ही है । 1990 से लेकर अब तक विश्व बैंक और विश्व खाद्य संगठन ने कई मर्तबा अपनी सालाना रिपोर्टों में बाकायदा प्रमाणित आंकड़ों के साथ इस बात का खुलासा किया है कि ऐसी खेती के बढ़ने से दूसरी खाद्य फसलों का बुआई क्षेत्र कम कर दिया जाता है जिससे खाद्यान्न उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है।
दूसरा,पानी का बेतहाशा प्रयोग होगा
गन्ने की खेती और उससे कहीं ज्यादा शुगर फैक्टरी में पानी की जरूरत होती है, महाराष्ट्र का लातूर एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे शुगर लॉबी ने पानी से लेकर खेती तक को हड़प लिया । 1972 में सिर्फ 6 हजार हेक्टेयर जमीन पर गन्ने की खेती होती थी। लेकिन 2012 में यह बढ़कर 52 हजार हेक्टेयर हो चुका था,सूखे के वक्त ही वर्ल्ड बैंक ने मदद देने के साथ महाराष्ट्र सरकार के सामने तीन शर्ते रखी थीं। पहली वॉटर मानिंग की जगह वाटर हार्वेस्टिंग करना। दूसरा गन्ने की खेती कम करना। और तीसरा ट्यूब वैल का आधुनिक तरीके से इस्तेमाल करना, जिससे पानी बचा रहे।
तीसरा, पेट्रोल का पानी हो जाना
तीसरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण नुकसान पेट्रोल के उपभोक्ताओ को यानी आपको हमको झेलना पड़ेगा। पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इथेनॉल मिले पेट्रोल के संपर्क में पानी आने के बाद पेट्रोल भी पानी में बदल जाता है, अगर समय पर पेट्रोल टैंक की सफाई नहीं करवाई जाती तो वाहन बंद भी पड़ सकता हैं, ऐसा पेट्रोल में नमी की मात्रा अधिक हो जाने से होता है। तो एथेनॉल मिलाने की सोच तो अच्छी हैं लेकिन इसके नुकसान का भी हमें ध्यान देना होगा।

(गिरीश मालवीय आर्थिक विषयों के जानकार हैं।)

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