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अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के आरक्षण सम्बन्धी मुद्दे पर अक्सर देश में वातावरण गर्म होता रहता है. कभी राजनैतिक संगठन द्वारा, कभी सरकार के किसी निर्णय के कारण तो कभी न्यायलय के फैसलों के चलते. 26 सितम्बर, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण मिलेगा. भारत में दलित वर्गों के लिए सबसे पहले आरक्षण किसने और कब प्रारंभ किया?
गूगल इमेज हालाकी इस फैसले से अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के नेताओं ने प्रसन्नता जाहिर की है, पर एक वर्ग ऐसा भी है जो इस फैसले को देश हित में नहीं मानता. कुछलोग इस फैसले को राजनीति प्रेरित कह रहे हैं. आज यह फैसला सभी के बीच एक बहस का मुद्दा बना हुआ है. ऐसे में यह जानना प्रासंगिक है कि 'आरक्षण' भारत में कब और कैसे शुरू हुआ. दरअसल भारत में आरक्षण की आजादी से बहुत पहले शुरू हुई थी
जब 1882में हंटर आयोग बना. उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण की मांग की थी. बड़ौदा और मैसूर की रियासतों ने तो आरक्षण पहले से ही लागू कर रखा था. गूगल इमेज इसी दशक में, सन1891 में त्रावणकोर के सामंत के खिलाफ स्थानीय लोगों ने अपने लिए आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन किया क्योंकि उस समय रियासत की नौकरियों में स्थानीय योग्य लोगों की उपेक्षा करके विदेशियों को नौकरी दी जाने लगी थी.
पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति साहूजी महाराज ने 1902 में आरक्षण का प्रारम्भ किया था. गूगल इमेज उन्होंने कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्गों/समुदायों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए 1902 की अधिसूचना जारी की थी. यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है.
शाहू जी महाराज ने कहा था ' उच्चवर्गीय लोगों को दलितों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही पड़ेगा. जबतक मनुष्य को मनुष्य नहीं समझा जायेगा, तबतक मानव समाज का विकास संभव नहीं है.'
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