लोकसभा चुनाव के वोटों की मतगणना में ५० फीसदी वीवीपैट पर्चियों के मिलान से जुड़ी याचिका मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दी। याद रहे २१ विपक्षी दलों ने पहले तीन चरण के मतदान के दौरान सामने आए ईवीएम में गड़बड़ी के मामलों का हवाला देते हुए ५० फीसदी वीवीपैट पर्चियां मिलाने की मांग करते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने विपक्षी दलों की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत इस मामले को बार-बार क्यों सुने? प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह इस मामले में दखलअंदाजी नहीं करना चाहते हैं। पहले तीन चरण की वोटिंग में गड़बड़ी की शिकायतों के आधार पर विपक्षी दलों ने याचिका में कहा था कि कई मामलों में देखा गया है कि वोटर किसी अन्य पार्टी को वोट देता है और उसका वोट किसी दूसरी पार्टी के लिए रिकॉर्ड हो रहा है।
गौरतलब है कि ८ अप्रैल को अपने निर्देश में अदालत ने कहा था कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक की बजाए पांच ईवीएम-वीवीपैट का औचक मिलान होगा। उस फैसले में प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि हर विधानसभा में ईवीएम वीवीपैट मिलान की संख्या इसलिए बढ़ाई गई है ताकि सटीकता बढ़े, चुनावी प्रक्रिया सही हो और राजनीतिक दल ही नहीं, मतदाता भी इससे संतुष्ट रहें।
उस फैसले में विपक्षी दलों की मांग पर चुनाव आयोग ने कहा था कि इससे परिणाम ५-६ दिन की देरी से आएंगे हालांकि, पीठ ने अपने निर्देश में कहा था कि वर्तमान निर्देश से परिणाम की घोषणा में बहुत देरी नहीं होनी चाहिए।
सर्वोच्च अदालत में याचिका आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), शरद पवार (एनसीपी), फारूक अब्दुल्ला (एनसी), शरद यादव (एलजेडी), अरविंद केजरीवाल (आम आदमी पार्टी), अखिलेश यादव (सपा), डेरेक ओ’ब्रायन (टीएमसी) और एम के स्टालिन (डीएमके) और कुछ अन्य दलों की ओर से दायर की गई है।
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