पत्रकार रविश कुमार की खुली चिट्ठी
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माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी,
"वो जो गहरे नीले कुर्ते में है न, हां! वही जो अभी बेसुध सी पड़ी है, ये..ये जो अब उठकर दहाड़ मार रही है। संभाल नहीं पा रही है खुद को। ये जो उठकर फिर गिर गई है।"
आग की उठती लपटों के कारण उसे देख तो नहीं पाया पर कान के पास कुछ आवाज़ें पत्रकार अक्षय सिंह के बारे में बताने लगीं। मैं उसकी चिता के करीब खड़े लोगों की तरफ देख रहा था। वो कौन लड़की है जिसके बारे में आप बता रहे हैं? "सर अब क्या कहें, ये अक्षय की मंगेतर है।" सुनते ही उसके चेहरे पर ज़िंदा अक्षय को खोजने लगा, तभी उसे संभालने एक और लड़की आ गई। "सर ये अक्षय की बहन हैं। चश्में में जो हैं।"
श्मशान में सरगोशियां ही ज़ुबान होती हैं। ख़ामोशी की लाचारी समझ सकता हूं। सीढ़ी पर दो लड़कियों को बिलखते देख उस तरफ नज़र जा ही नहीं पा रही थी जहां अक्षय का पार्थिव शरीर पंचतत्वों में बदल रहा था। वो मिट्टी हवा और अग्नि से एकाकार हो रहा था। पास में उसकी मंगेतर और बहन अपनी चीख़ के सहारे उस तक पहुंचने की आख़िरी कोशिश कर रही थीं। पिताजी लक़वे से लाचार हैं इसलिए वहां दिखे नहीं या किसी ने दिखाया नहीं।
माननीय शिवराज सिंह, मैं यह सब शब्दों की बाज़ीगरी के लिए नहीं लिख रहा हूं। मुझे पता है कि ऐसे मामलों की संवेदनाएं वक़्ती होती हैं। कल किसी और घटना की आड़ में कहीं खो जाएंगी। हम सब निगम बोध घाट से लौट जाएंगे। सोचा आप आ तो नहीं सके इसलिए लिख रहा हूं ताकि आप पढ़ सकें कि ऐसी मौतों के पीछे की बेबसी कैसी होती है। चार लड़कियों ने आई.ए.एस. में टॉप किया तो आप लोग कैसे खिल खिलकर बधाई दे रहे थे। यहां सीढ़ी पर बिलखती-लुढ़कती लड़कियां ही एक दूसरे को सहारा दे रही थीं।
अपने जीवन में नेताओं को करीब से देखते-देखते समझ गया हूं। आप सभी को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं सिर्फ आपकी बात नहीं कर रहा। आप सब में आप सब शामिल हैं। आपकी संवेदना उतनी ही खोखली हैं जितना सत्ता का मोह सच्चा है। सत्ता ख़ून भी पी सकती है और अपने लिए ख़ून बहा सकती है। सत्ता के लिए ही तो है ये सब।
"अक्षय बहुत स्मार्ट था। बहुत ही फ़िट बॉडी थी। एक अतिरिक्त चर्बी नहीं थी। जिम जाता था। सर सिगरेट पान कुछ नहीं लेता था।"
फिर किसी की आवाज़ आई। मैं अक्षय से कभी नहीं मिला। अपनी बिरादरी के लोगों के साथ कम उठा बैठा हूं। बहुत कम पत्रकारों को जानता हूं। बहुत से संपादकों को नज़दीक से भी नहीं देखा है। मुझे थोड़ा अफ़सोस है कि ऐसे पत्रकारों को ठीक से नहीं जान पाया। इसलिए माननीय शिवराज सिंह, श्मशान में अक्षय के बारे में जो सुना वो लिख रहा हूं। क्योंकि आप आ नहीं सके, लिहाज़ा जानने का मौक़ा भी नहीं मिला। मुझे आपकी क्या अपनी भी संवेदना दिखावटी लगती है। फिर भी लिख रहा हूं ताकि एक बार फिर से पता चल जाने में कोई हर्ज नहीं है।
"अक्षय बहुत सावधान रहता था। बहुत स्टिंग किए। एक से एक खोजी पत्रकारिता की। कभी अपना नाम और चेहरा नहीं दिखाता था। सर उसने शादी भी नहीं की। 36 साल का हो गया था। कहता था कि इतने मुक़दमे चल रहे हैं उस पर, शादी कर ले और पता नहीं क्या हो जाए। उससे थोड़ा परेशान रहता था। पिताजी को लकवा मार गया है। बहन की शादी भी करनी है।"
इस बीच बहुत से लोग अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए आ जा रहे थे। सब नि:शब्द! एक पत्रकार समाज के लिए सिस्टम से कितना टकराता है। केस मुक़दमे झेलता है। उसकी निष्ठा कितनी होगी कि वो इस दौर में अपना चेहरा सामने नहीं आने देना चाहता होगा। जबकि उसके पेशे के हर नामचीन का ट्विटर हैंडल देख लीजिए। वे दिन में पचास ट्वीट यही करते हैं कि शिवराज ने मुझसे बात करते हुए ये कहा, नीतीश ने मुझसे एक्सक्लूसिव ये कहा। जो काम करे और नाम न बनाए ऐसे किसी पत्रकार की प्रतिबद्धता को ट्विटर पर लुंगी-तौलिया तक पसारने वाले पत्रकार समझ भी नहीं सकते। आप लोग तो हर मुलाक़ात की तस्वीर साझा करते ही हैं, आज कल तो खोज खोज कर जन्मदिन मनाते हैं जैसे इसी काम के लिए चुनाव होता है।
मैं अक्षय सिंह के बारे में बिल्कुल नहीं जानता था। अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं। अच्छा बुरा किसमें नहीं होता। आप ही के मंत्री हैं बाबू लाल गौड़। उन्होंने व्यापमं में हो रही मौतों के बारे में बयान दिया था कि जो दुनिया में आएगा वो जाएगा। मुझे पता नहीं आप ऐसे मंत्री को कैबिनेट में आने कैसे देते हैं, कैसे झेलते हैं। ख़ैर, मुझे पता ही कितना है। जो भी हो व्यापमं घोटाले की तमाम मौतों पर आपकी सफाई बिल्कुल विश्वसनीय नहीं लगती है। आपका भरोसा खोखला लगता है।
"सर वो तो इतना अलर्ट रहने वाला लड़का है कि पूछिए मत। अनजान नंबर का फोन कभी नहीं उठा पाता था। घर में सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई भी आ जाए उसकी ग़ैर मौजूदगी में दरवाज़ा मत खोलना। हम लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी। पड़ोसी की मदद लेनी पड़ी। पहचान साबित करनी पड़ी कि हम उसके सहयोगी हैं तब जाकर दरवाज़ा खुला।"
फिर कोई आवाज़ कानों तक सरक आई थी। अक्षय के मां-बाप को क्या पता कि इस बार अक्षय के पीछे उनके लिए कोई ख़तरा बनकर नहीं आया है। बल्कि अक्षय के अब कभी नहीं आने की सूचना आई है। अब कोई ख़तरा उनके दरवाज़े दस्तक नहीं देगा।
माननीय शिवराज सिंह, आप चाहें तो कह सकते हैं कि मैंने तब क्यों नहीं लिखा जब वो हुआ था। आप दूसरे राज्यों और दलों की सरकारों की गिनती गिना सकते हैं। मेरी चुप्पी का हिसाब गिनाने के लिए ट्विटर पर घोड़े दौड़ा सकते हैं। आप लोगों की ये तरकीब पुरानी हो गई है। व्यापमं घोटाले का सच कभी सामने नहीं आएगा। ये आप बेहतर जानते होंगे। ये हम भी जानते हैं।
मैं ये नहीं कह रहा कि आप दोषी हैं। अक्षय सिंह की मौत के लिए कौन दोषी है ये मैं कैसे बता सकता हूं। आपकी जांच से कभी कुछ पता चलता है जो मैं इंतज़ार करूं। आपके राज्य में ज़हरीली गैस से लोग मर गए, क्या पता नहीं था लेकिन क्या पता चला। आपकी क्या, कभी किसी की जांच से पता चला है। आपकी खुशी के लिए अभी कह देता हूं कि क्या कभी कांग्रेस, जेडीयू, अकाली, आरजेडी की सरकारों में पता चला है? पता नहीं चलने का यह सिलसिला किसे नहीं पता है।
आपका
रवीश कुमार
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माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी,
"वो जो गहरे नीले कुर्ते में है न, हां! वही जो अभी बेसुध सी पड़ी है, ये..ये जो अब उठकर दहाड़ मार रही है। संभाल नहीं पा रही है खुद को। ये जो उठकर फिर गिर गई है।"
आग की उठती लपटों के कारण उसे देख तो नहीं पाया पर कान के पास कुछ आवाज़ें पत्रकार अक्षय सिंह के बारे में बताने लगीं। मैं उसकी चिता के करीब खड़े लोगों की तरफ देख रहा था। वो कौन लड़की है जिसके बारे में आप बता रहे हैं? "सर अब क्या कहें, ये अक्षय की मंगेतर है।" सुनते ही उसके चेहरे पर ज़िंदा अक्षय को खोजने लगा, तभी उसे संभालने एक और लड़की आ गई। "सर ये अक्षय की बहन हैं। चश्में में जो हैं।"
श्मशान में सरगोशियां ही ज़ुबान होती हैं। ख़ामोशी की लाचारी समझ सकता हूं। सीढ़ी पर दो लड़कियों को बिलखते देख उस तरफ नज़र जा ही नहीं पा रही थी जहां अक्षय का पार्थिव शरीर पंचतत्वों में बदल रहा था। वो मिट्टी हवा और अग्नि से एकाकार हो रहा था। पास में उसकी मंगेतर और बहन अपनी चीख़ के सहारे उस तक पहुंचने की आख़िरी कोशिश कर रही थीं। पिताजी लक़वे से लाचार हैं इसलिए वहां दिखे नहीं या किसी ने दिखाया नहीं।
माननीय शिवराज सिंह, मैं यह सब शब्दों की बाज़ीगरी के लिए नहीं लिख रहा हूं। मुझे पता है कि ऐसे मामलों की संवेदनाएं वक़्ती होती हैं। कल किसी और घटना की आड़ में कहीं खो जाएंगी। हम सब निगम बोध घाट से लौट जाएंगे। सोचा आप आ तो नहीं सके इसलिए लिख रहा हूं ताकि आप पढ़ सकें कि ऐसी मौतों के पीछे की बेबसी कैसी होती है। चार लड़कियों ने आई.ए.एस. में टॉप किया तो आप लोग कैसे खिल खिलकर बधाई दे रहे थे। यहां सीढ़ी पर बिलखती-लुढ़कती लड़कियां ही एक दूसरे को सहारा दे रही थीं।
अपने जीवन में नेताओं को करीब से देखते-देखते समझ गया हूं। आप सभी को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं सिर्फ आपकी बात नहीं कर रहा। आप सब में आप सब शामिल हैं। आपकी संवेदना उतनी ही खोखली हैं जितना सत्ता का मोह सच्चा है। सत्ता ख़ून भी पी सकती है और अपने लिए ख़ून बहा सकती है। सत्ता के लिए ही तो है ये सब।
"अक्षय बहुत स्मार्ट था। बहुत ही फ़िट बॉडी थी। एक अतिरिक्त चर्बी नहीं थी। जिम जाता था। सर सिगरेट पान कुछ नहीं लेता था।"
फिर किसी की आवाज़ आई। मैं अक्षय से कभी नहीं मिला। अपनी बिरादरी के लोगों के साथ कम उठा बैठा हूं। बहुत कम पत्रकारों को जानता हूं। बहुत से संपादकों को नज़दीक से भी नहीं देखा है। मुझे थोड़ा अफ़सोस है कि ऐसे पत्रकारों को ठीक से नहीं जान पाया। इसलिए माननीय शिवराज सिंह, श्मशान में अक्षय के बारे में जो सुना वो लिख रहा हूं। क्योंकि आप आ नहीं सके, लिहाज़ा जानने का मौक़ा भी नहीं मिला। मुझे आपकी क्या अपनी भी संवेदना दिखावटी लगती है। फिर भी लिख रहा हूं ताकि एक बार फिर से पता चल जाने में कोई हर्ज नहीं है।
"अक्षय बहुत सावधान रहता था। बहुत स्टिंग किए। एक से एक खोजी पत्रकारिता की। कभी अपना नाम और चेहरा नहीं दिखाता था। सर उसने शादी भी नहीं की। 36 साल का हो गया था। कहता था कि इतने मुक़दमे चल रहे हैं उस पर, शादी कर ले और पता नहीं क्या हो जाए। उससे थोड़ा परेशान रहता था। पिताजी को लकवा मार गया है। बहन की शादी भी करनी है।"
इस बीच बहुत से लोग अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए आ जा रहे थे। सब नि:शब्द! एक पत्रकार समाज के लिए सिस्टम से कितना टकराता है। केस मुक़दमे झेलता है। उसकी निष्ठा कितनी होगी कि वो इस दौर में अपना चेहरा सामने नहीं आने देना चाहता होगा। जबकि उसके पेशे के हर नामचीन का ट्विटर हैंडल देख लीजिए। वे दिन में पचास ट्वीट यही करते हैं कि शिवराज ने मुझसे बात करते हुए ये कहा, नीतीश ने मुझसे एक्सक्लूसिव ये कहा। जो काम करे और नाम न बनाए ऐसे किसी पत्रकार की प्रतिबद्धता को ट्विटर पर लुंगी-तौलिया तक पसारने वाले पत्रकार समझ भी नहीं सकते। आप लोग तो हर मुलाक़ात की तस्वीर साझा करते ही हैं, आज कल तो खोज खोज कर जन्मदिन मनाते हैं जैसे इसी काम के लिए चुनाव होता है।
मैं अक्षय सिंह के बारे में बिल्कुल नहीं जानता था। अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं। अच्छा बुरा किसमें नहीं होता। आप ही के मंत्री हैं बाबू लाल गौड़। उन्होंने व्यापमं में हो रही मौतों के बारे में बयान दिया था कि जो दुनिया में आएगा वो जाएगा। मुझे पता नहीं आप ऐसे मंत्री को कैबिनेट में आने कैसे देते हैं, कैसे झेलते हैं। ख़ैर, मुझे पता ही कितना है। जो भी हो व्यापमं घोटाले की तमाम मौतों पर आपकी सफाई बिल्कुल विश्वसनीय नहीं लगती है। आपका भरोसा खोखला लगता है।
"सर वो तो इतना अलर्ट रहने वाला लड़का है कि पूछिए मत। अनजान नंबर का फोन कभी नहीं उठा पाता था। घर में सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई भी आ जाए उसकी ग़ैर मौजूदगी में दरवाज़ा मत खोलना। हम लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी। पड़ोसी की मदद लेनी पड़ी। पहचान साबित करनी पड़ी कि हम उसके सहयोगी हैं तब जाकर दरवाज़ा खुला।"
फिर कोई आवाज़ कानों तक सरक आई थी। अक्षय के मां-बाप को क्या पता कि इस बार अक्षय के पीछे उनके लिए कोई ख़तरा बनकर नहीं आया है। बल्कि अक्षय के अब कभी नहीं आने की सूचना आई है। अब कोई ख़तरा उनके दरवाज़े दस्तक नहीं देगा।
माननीय शिवराज सिंह, आप चाहें तो कह सकते हैं कि मैंने तब क्यों नहीं लिखा जब वो हुआ था। आप दूसरे राज्यों और दलों की सरकारों की गिनती गिना सकते हैं। मेरी चुप्पी का हिसाब गिनाने के लिए ट्विटर पर घोड़े दौड़ा सकते हैं। आप लोगों की ये तरकीब पुरानी हो गई है। व्यापमं घोटाले का सच कभी सामने नहीं आएगा। ये आप बेहतर जानते होंगे। ये हम भी जानते हैं।
मैं ये नहीं कह रहा कि आप दोषी हैं। अक्षय सिंह की मौत के लिए कौन दोषी है ये मैं कैसे बता सकता हूं। आपकी जांच से कभी कुछ पता चलता है जो मैं इंतज़ार करूं। आपके राज्य में ज़हरीली गैस से लोग मर गए, क्या पता नहीं था लेकिन क्या पता चला। आपकी क्या, कभी किसी की जांच से पता चला है। आपकी खुशी के लिए अभी कह देता हूं कि क्या कभी कांग्रेस, जेडीयू, अकाली, आरजेडी की सरकारों में पता चला है? पता नहीं चलने का यह सिलसिला किसे नहीं पता है।
आपका
रवीश कुमार
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