Friday, July 24, 2015

देश भर के पत्रकार अब तो एकजुट हो जाओ सुप्रीमकोर्ट तुम्हारे साथ है

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सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया आयोग लागू किये जाने की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक वर्चुअल एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया है जो तीन महीने में अपना आकलन कोर्ट में सौंपेगी.


देश भर के पत्रकार अब तो एकजुट हो जाओ सुप्रीमकोर्ट तुम्हारे साथ है.

थोड़ी बड़ी रपट है, मगर मेरा अनुरोध है, इसे अवश्य पढ़ें... क्योंकि यह हम पत्रकारों की खबर है. यह न किसी अखबार में है, न किसी न्यूज चैनल में आ सकी है. आप इसे पढ़ें और ठीक लगे तो शेयर भी करें, ताकि नहीं छपने के बावजूद यह खबर हर जगह पहुंच सके.
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यह खबर प्रिंट मीडिया से जुड़े तमाम पत्रकारों के लिए है जो पांच सौ, हजार, पांच हजार और दस हजार की सैलरी में अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल उन अखबारों के लिए खर्च कर रहे हैं, जिन्हें उनकी एक रत्ती परवाह नहीं. हम ऐसे पत्रकार हैं जो अपनी किस्मत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे की रिपोर्ट तक अपने अखबार में छाप नहीं सकते. न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमारे साथी हमारी इन खबरों को सामने लाने की हैसियत में हैं.

इसके अलावा यह खबर उन तमाम लोगों के लिए भी है, जो समझते हैं कि हर मीडियाकर्मी लाखों में खेल रहा है और वह इतना
पावरफुल है कि दुनिया बदल सकता है... उन साथियों के लिए तो है ही, जिनका बयान है... वो बेदर्दी से सर काटें और हम कहें, हुजूर आहिस्ता- आहिस्ता जनाब आहिस्ता... यह
खबर 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया आयोग के प्रस्तावों को लागू नहीं किये जाने के विरोध में पत्रकारों द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई की है...

आप लोग इसे यह जानने के लिए भी पढ़ सकते हैं कि एक
ओर जहां राहुल गांधी किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनकी पार्टी के कपिल सिब्बल, सलमान खुरशीद, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े-बड़े नेता अखबार कर्मियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अखबार मालिकों की पैरवी कर रहे हैं... यह खबर आइएफडब्लूजे के सचिव राम यादव ने लिखी है...

तीन महीने में जांच कर बतायें, मजीठिया लागू हुआ या नहीं
राम पी यादव, सचिव आइएफडब्लूजी

दिल्ली. 28 अप्रैल. सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों द्वारा मजीठिया आयोग लागू किये जाने की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक वर्चुअल एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) का गठन किया है जो तीन महीने में अपना आकलन कोर्ट में सौंपेगी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रंजन गोगोई और एनवी रमन्ना के सामने कई अखबारों के कर्मचारियों द्वारा दायर अवमानना याचिकाएं पेश हुई थीं.

माननीय जज ने अवमानना याचिओं के जवाब में अखबार मालिकों द्वारा काउंटर एफिडेविट दाखिल नहीं किये जाने को लेकर कड़ा ऐतराज जाहिर किया था. जस्टिस गोगोई के चेहरे पर खिन्नता साफ नजर आ रही थी और उन्होंने कहा कि अब आगे से कोई काउंटर एफिडेविट स्वीकार नहीं किया जायेगा.

वस्तुतः अखबार मालिक अपने पक्ष में देश के महंगे वकीलों को हायर करके यह सोच लिया था कि वे न्याय को अपने पक्ष में मोड़ लेंगे. अखबार मालिकों के पक्ष में कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, अभिषेक मनु सिंघवी, दुश्यंत पांडे और श्याम धवन जैसे वकीलों के नेतृत्व में सौ से अधिक वकील कोर्ट रूम में खड़े थे और अदालत कक्ष इनकी वजह से पैक्ड हो गया था. वे मालिकों के लिए वक्त खरीदना चाहते थे, मगर अदालत ने उन्हें थोड़ा भी वक्त देने से इनकार कर दिया.

आइएफडब्लूजे (इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट) के महासचिव और सुप्रीम कोर्ट के वकील परमानंद पांडेय से लीड पिटिशन नं 411/2014 टाइटल 'अभिषेक राजा व अन्य बनाम संजय गुप्ता' के संबंध में जिरह शुरू करने कहा. इस मुकदमे में जागरण प्रकाशन लिमिटेड के सीइओ श्रीसंजय गुप्ता कंटेम्पटर/प्रतिवादी हैं. श्रीपांडेय ने बहस की शुरुआत करते हुए अदालत का ध्यान दो स्पष्ट तथ्यों की ओर आकर्षित किया. पहला, कि अवमानना याचिकाएं दायर करने के बाद अखबारों के मालिकों ने कर्मचारियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला शुरू कर दिया है.

कर्मचारियों का मनमाने तरीके से स्थानांतरण, निलंबन और निष्कासन किया जा रहा है, ऐसा करते वक्त प्राकृतिक न्याय के आधारभूत सिद्धांतों की अवहेलना की जा रही है. न शो-काउज नोटिस जारी किये जा रहे हैं, न आंतरिक जांच की जा रही है और न ही कोई आरोप पत्र पेश किया जा रहा है.

उन्होंने माननीय न्यायाधीश से अपील की कि इस संबंध में अखबार मालिकों और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया जाये ताकि कर्मचारियों की प्रताड़ना पर रोक लग सके. दूसरा, जागरण प्रबंधन श्रम कानूनों की अवहेलना करने का आदी रहा है.

अखबार में वेज बोर्ड लागू करने की बात तो छोड़ दें ये कर्मचारियों से संबंधित हर श्रम कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. फिर श्रीपांडेय ने जोरदार तरीके से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 2010 में जारी हुए इस वेज बोर्ड प्रस्तावों को चार साल से अधिक का वक्त बीत चुका है मगर प्रतिवादी ने अब तक वेज, अलाउंसेज और एरियर की राशि अखबार के कर्मचारियों को नहीं दी है.

श्रीपांडेय ने याचिकाकर्ताओं के सैलरी स्लिप न्यायाधीश के सामने पेश करते हुए कहा कि इन सैलरी स्लिपों से जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले और बाद की सैलरी स्लिप की संरचना में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस बिंदु पर जस्टिस रमन्ना ने जानना चाहा कि क्या यह स्थित सिर्फ याचिकाकर्ताओं की है या ऐसा सभी कर्मचारियों के साथ हो रहा है.

वकील परमानंद पांडेय ने माननीय न्यायालय से कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, ऐसा हरेक कर्मचारी के साथ हो रहा है. श्री पांडेय ने फिर कहा कि प्रतिवादी संजय गुप्ता ने अपने काउंटर एफिडेविट में स्वीकार किया है कि उनकी कंपनी के 738 कर्मचारियों ने लिखित तौर पर अपनी स्वीकृति देते हुए कहा है कि वे जागरण प्रकाशन लिमिटेड के मौजूदा वैतनिक ढांचे से संतुष्ट हैं. वे, इस वजह से वेज बोर्ड द्वारा प्रस्तावित वेतन और अलाउंसेज नहीं चाहते हैं'.

माननीय बेंच ने इस पर अपना आश्चर्य व्यक्त किया. इसके बाद बेंच एक मिनट के लिए एक दूसरे के करीब आ गयी और फिर जस्टिस गोगोई ने श्रीपांडेय से पूछा कि क्या यह स्थिति दूसरेराज्यों और दूसरे अखबारों में भी है, इस पर श्रीपांडेय ने सहमति जाहिर की. बेंच यह जानकर सन्न रह गयी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकारें क्यों सोती रहीं,

जबकि उन्हें मालूम था कि अखबार प्रतिष्ठान वेज बोर्ड लागू करने के इस फैसले को लागू नहीं कर रहे. फिर बेंच ने राज्य सरकारों को निर्देश देने का फैसला किया कि वे बेज बोर्ड प्रस्तावों को लागू करायें. इस बिंदू पर, वरिष्ठ अधिवक्ता और एक अन्य अवमानना याचिका की पैरवी करने वाले वकील श्री कॉलिन गोंजाल्विस ने अदालत से कहा कि दिल्ली सरकार इस संबंध में कुछ करना चाह रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट का नियम 17बी सरकार को इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने का अधिकार देता है. श्री पांडेय ने अपनी जिरह में उल्लेख किया कि वेज बोर्ड के प्रस्तावों को लागू करने के बदले लगभग सभी प्रबंधन जिसमें जागरण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड भी है, जिसको लेकर अभी बहस चल रही है, वे वेज बोर्ड प्रस्ताव के धारा 20-जे के पीछे छिपने की कोशिश कर रहे हैं.

श्रीपांडेय ने उल्लेख किया कि धारा 20जे वास्तव में उन कर्मचारियों के लिए है जो वेज बोर्ड प्रस्तावों से अधिक वेतन पा रहे हैं, न कि उन कर्मियों के लिए जो प्रस्ताव से काफी कम पा रहे हैं. इस बिंदू पर जागरण प्रबंधन की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि धारा 20-जे पूरी तरह वैध है,क्योंकि यह वेज बोर्ड प्रस्तावों का ही हिस्सा है.

बेंच एक बार फिर आपस में विमर्श करने लगी और फिर कहा कि हम राज्य सरकारों को निर्देशित कर रहे हैं कि वे स्पेशल ऑफिसरों की नियुक्ति करें जो इस मामले औऱ वेज बोर्ड प्रस्तावों को लागू किये जाने के मसले की जांच करें. इस बिंदुू पर अखबार मालिकों की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जैसे, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, श्याम दीवान अपने पैरों पर खड़े हो गये और बेंच से अनुरोध करने लगे कि अगर ऐसा हुआ तो यह इंस्पेक्टर राज की वापसी जैसा होगा.

हालांकि बेंच ने उनके अनुरोध को सुनने से इनकार कर दिया और राज्य सरकारों को स्पेशल ऑफिसर नियुक्त करने का निर्देश जारी कर दिया, जो रिपोर्ट तैयार करेंगे और उसे सीधे सुप्रीम कोर्ट में भेजेंगे. इस तरह, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश अखबार कर्मचारियों के पक्ष में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम गठित करने जैसा है. कपिल सिब्बल ने आम आदमी पार्टी द्वारा शासित दिल्ली सरकार के प्रयासों की भी आलोचना की इस पर एक वकील ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार निश्चित तौर पर कांग्रेस सरकारों से बेहतर काम करेगी.

यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि वेज बोर्ड रिपोर्ट का नोटिफिकेशन तब हुआ था, जब कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद आदि मनमोहन सिंह नीत केंद्रीय सरकार के कैबिनटे के सदस्य थे. अखबार मालिकों के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज में कांग्रेस के बड़े नेताओं की मौजूदगी से जाहिर हो जा रहा है कि उनकी पक्षधरता किस ओर है.
यहां यह जानना भी कम रोचक नहीं है कि कपिल सिब्बल जहां जागरण प्रकाशन की पैरवी कर रहे हैं, वहीं उनके पुत्र अमित सिब्बल दैनिक भास्कर की पैरवी कर रहे हैं।

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