Toc News @ Jabalpur
जबलपुर। हाईकोर्ट ने मप्र की दवा नीति पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि मप्र की दवा नीति में मनमाना परिवर्तन क्यों किया जा रहा है। संचालक लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है।
प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस सुशील कुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी समाजसेवी संजीव पाण्डेय का पक्ष अधिवक्ता संजय के अग्रवाल ने रखा।
मरीजों के हित पर कुठाराघात उन्होंने दलील दी कि राज्य केबिनेट ने 2009 में विधिवत प्रस्ताव पारित करके तय किया था कि 80 प्रतिशत दवा खरीदी मुख्यालय स्तर पर सेंट्रलाइज ई-टेंडर प्रोसेस से की जाएगी। जबकि 20 फीसदी दवा खरीदी के लिए जिला स्तर पर ठेका दिया जाएगा।
अक्टूबर 2014 में संचालक लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ने एक मनमानी सर्कुलर जारी कर दिया। इसके जरिए व्यवस्था दी गई कि 20 फीसदी दवा खरीदी जो जिला स्तर पर की जानी है वह भी सेंट्रलाइज ई-टेंडर के जरिए होगी। चूंकि ई-टेंडर में देश स्तर पर दवा कंपनियां निविदा में शामिल होती हैं, अतः यह एक लंबी प्रक्रिया हो जाती है। जिससे सबसे ज्यादा नुकसान उन मरीजों का होता है जिन्हें जिला स्तर पर दवा खरीदी होने पर अपेक्षाकृत शीघ्र व सुविधाजनक तरीके से दवाएं मुहैया हो जातीं।
जबलपुर। हाईकोर्ट ने मप्र की दवा नीति पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि मप्र की दवा नीति में मनमाना परिवर्तन क्यों किया जा रहा है। संचालक लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है।
प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस सुशील कुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी समाजसेवी संजीव पाण्डेय का पक्ष अधिवक्ता संजय के अग्रवाल ने रखा।
मरीजों के हित पर कुठाराघात उन्होंने दलील दी कि राज्य केबिनेट ने 2009 में विधिवत प्रस्ताव पारित करके तय किया था कि 80 प्रतिशत दवा खरीदी मुख्यालय स्तर पर सेंट्रलाइज ई-टेंडर प्रोसेस से की जाएगी। जबकि 20 फीसदी दवा खरीदी के लिए जिला स्तर पर ठेका दिया जाएगा।
अक्टूबर 2014 में संचालक लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ने एक मनमानी सर्कुलर जारी कर दिया। इसके जरिए व्यवस्था दी गई कि 20 फीसदी दवा खरीदी जो जिला स्तर पर की जानी है वह भी सेंट्रलाइज ई-टेंडर के जरिए होगी। चूंकि ई-टेंडर में देश स्तर पर दवा कंपनियां निविदा में शामिल होती हैं, अतः यह एक लंबी प्रक्रिया हो जाती है। जिससे सबसे ज्यादा नुकसान उन मरीजों का होता है जिन्हें जिला स्तर पर दवा खरीदी होने पर अपेक्षाकृत शीघ्र व सुविधाजनक तरीके से दवाएं मुहैया हो जातीं।
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