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1993 के मुम्बई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन को 30 जुलाई को फांसी दी जाएगी कि खबरें एक सप्ताह से मीडिया में सुर्खियां बनी हुई हैं। मुझे इस बात का पहले दिन से ही डर था कि अब कोई ना कोई याकूब की पैरवी के लिए सामने आ जाएगा। मेरा कयास था कि पाकिस्तान में बैठा हाफिज सईद या कश्मीर के अलगवावादी नेता जरूर याकूब की फांसी का विरोध करेंगे। लेकिन सईद और अलगाववादियों ने तो अभी तक विरोध नहीं जताया था पर एमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने साफ कहा कि याकूब को मुस्लिम होने की सजा मिल रही है।
सब जानते हैं कि ओवैसी अपने ही देश के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। ओवैसी के बयान के बाद अनेक मुस्लिम विद्वानों ने भी याकूब की फांसी का विरोध किया। अब तर्क दिए जा रहे हैं कि जब पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह और देश के पूर्व सीएम राजीव गांधी के हत्यारे फांसी से बच सकते हैं तो याकूब मेनन क्यों नहीं? जिस तरह से याकूब की फांसी को धर्म से जोड़ दिया गया है,उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अब याकूब को फांसी नहीं लगेगी। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 257 निर्दोष लोगों की हत्या का जिम्मेदार याकूब को माना हो।
स्वाभाविक है कि जब ओवैसी जैसे मुस्लिम नेता आग उगलने वाले बयान देंगे तो साक्षी महाराज जैसे कब चुप रहेंगे। कोई माने या नहीं याकूब की फांसी को लेकर देश में एक बार तनाव की सी स्थिति हो गई है। जो लोग इफ्तार पार्टी कर हिन्दू-मुसलमान के भाईचारे की बात करते हैं, वे यह बताएं कि 257 लोगों की हत्या के जिम्मेदार व्यक्ति को फांसी पर विवाद क्यों हो रहा है। क्या ऐसे व्यक्ति को फांसी नहीं मिलनी चाहिए। मौत के घाट उतार दिए गए 257 व्यक्तियों के परिजन से जाकर कोईपूछे कि उनका क्या दर्द है। सवाल यह नहीं है कि किसी हिन्दू या मुसलमान को फांसी दी जा रही है। सवाल एक हत्यारे का है। कोई माने या नहीं याकूब की फांसी पर देश में जो हालात उत्पन्न हुए है, वह बेहद खतरनाक हैं। इससे उन तत्वों को मदद मिलेगी, जो कश्मीर में आतंकी संगठन आईएस के झंडे लहरा रहे हैं।
सरकार भी मान रही है कि भारत में आईएस तेजी से पैर पसार रहा है। यह वही आईएस है जो सीरिया, इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि मुस्लिम देशों में नमाज पढ़ते लोगों की हत्या कर रहा है। जब हम इफ्तार की दावत के पिंड खजूर एक जाजम पर बैठ कर खा सकते हैं तो क्या आईएएस जैसे संगठनों का मुकाबला एकजुट होकर नहीं कर सकते। इस मुद्दे पर सभी को गंभीरता के साथ सोचना होगा। जो लोग हिन्दू और मुसलमानों को आपस में लड़ा कर राजनीति कर रहे हैं, उनसे सावधन रहने की जरुरत है।
1993 के मुम्बई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन को 30 जुलाई को फांसी दी जाएगी कि खबरें एक सप्ताह से मीडिया में सुर्खियां बनी हुई हैं। मुझे इस बात का पहले दिन से ही डर था कि अब कोई ना कोई याकूब की पैरवी के लिए सामने आ जाएगा। मेरा कयास था कि पाकिस्तान में बैठा हाफिज सईद या कश्मीर के अलगवावादी नेता जरूर याकूब की फांसी का विरोध करेंगे। लेकिन सईद और अलगाववादियों ने तो अभी तक विरोध नहीं जताया था पर एमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने साफ कहा कि याकूब को मुस्लिम होने की सजा मिल रही है।
सब जानते हैं कि ओवैसी अपने ही देश के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। ओवैसी के बयान के बाद अनेक मुस्लिम विद्वानों ने भी याकूब की फांसी का विरोध किया। अब तर्क दिए जा रहे हैं कि जब पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह और देश के पूर्व सीएम राजीव गांधी के हत्यारे फांसी से बच सकते हैं तो याकूब मेनन क्यों नहीं? जिस तरह से याकूब की फांसी को धर्म से जोड़ दिया गया है,उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अब याकूब को फांसी नहीं लगेगी। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 257 निर्दोष लोगों की हत्या का जिम्मेदार याकूब को माना हो।
स्वाभाविक है कि जब ओवैसी जैसे मुस्लिम नेता आग उगलने वाले बयान देंगे तो साक्षी महाराज जैसे कब चुप रहेंगे। कोई माने या नहीं याकूब की फांसी को लेकर देश में एक बार तनाव की सी स्थिति हो गई है। जो लोग इफ्तार पार्टी कर हिन्दू-मुसलमान के भाईचारे की बात करते हैं, वे यह बताएं कि 257 लोगों की हत्या के जिम्मेदार व्यक्ति को फांसी पर विवाद क्यों हो रहा है। क्या ऐसे व्यक्ति को फांसी नहीं मिलनी चाहिए। मौत के घाट उतार दिए गए 257 व्यक्तियों के परिजन से जाकर कोईपूछे कि उनका क्या दर्द है। सवाल यह नहीं है कि किसी हिन्दू या मुसलमान को फांसी दी जा रही है। सवाल एक हत्यारे का है। कोई माने या नहीं याकूब की फांसी पर देश में जो हालात उत्पन्न हुए है, वह बेहद खतरनाक हैं। इससे उन तत्वों को मदद मिलेगी, जो कश्मीर में आतंकी संगठन आईएस के झंडे लहरा रहे हैं।
सरकार भी मान रही है कि भारत में आईएस तेजी से पैर पसार रहा है। यह वही आईएस है जो सीरिया, इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि मुस्लिम देशों में नमाज पढ़ते लोगों की हत्या कर रहा है। जब हम इफ्तार की दावत के पिंड खजूर एक जाजम पर बैठ कर खा सकते हैं तो क्या आईएएस जैसे संगठनों का मुकाबला एकजुट होकर नहीं कर सकते। इस मुद्दे पर सभी को गंभीरता के साथ सोचना होगा। जो लोग हिन्दू और मुसलमानों को आपस में लड़ा कर राजनीति कर रहे हैं, उनसे सावधन रहने की जरुरत है।
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