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आरटीआई की जानकारी देने ठेकेदार को लिख रहे पत्र
विभाग के पास निर्माण कार्य के दस्तावेज उपलब्ध नहीं
फॉर्मेलिटी पूरी किये बिना हो रहा ठेकेदार को बेरोक टोक भुगतान
श्रम नियमो का नहीं हो रहा पालन
ठेकेदार ने जिले के नेतओ और पत्रकारो पर लगाये पैसे मांगने के आरोप।
कवर्धा
मुख्यमंत्री के गृह जिले में जल संसाधन विभाग का एक और कारनामा सामने आया है। विभाग के पास रौचन जलाशय के मरम्मत, जीर्णोद्धार एवं पूर्णोद्धार के कार्य संबंधी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।
यह खुद विभाग का कहना है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी पर विभाग ने संबंधित ठेकेदार को बार बार पत्र लिखकर जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दे रहे है।
जबकि सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी पर विभाग को कार्यायल में उपलब्ध दस्तावेज व जानकारी की सत्यापित प्रति देनी होती है न कि जानकारी तैयार कर देनी होती है।
कवर्धा के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने रौचन जलाशय में चल रहे निर्माण कार्य में विभाग की ओर से नियुक्त अधिकृत अधिकारी और मजूदरों की उपस्थिति पंजी के साथ अधिकारी द्वारा सत्यापित पंजी एवं अधिकारी की उपस्थिति में मजदूरों को किए गए भुगतान के प्रमाणपत्र व तत्सम्बन्ध में ठेकेदार को जारी किये गए प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति एवं लेबर लाइसेंस की जानकारी मांगी गई थी। इस पर विभाग ने पहले तो जानकारी देने के लिए आनाकानी की।
इसके बाद विभाग ने उक्त सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ठेकेदार को पत्र लिखा। विभाग ने यह कारनामा एक बार या दो बार नहीं, बल्कि कई बार किया है। बावजूद इसके विभाग के पास अब तक इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
जबकि विभाग ठेकेदार के सभी बिलो का भुगतान भी करते आ रहा है।
जब ठेकेदार के द्वारा दस्तावेज विभाग को जमा ही नहीं किये गए तो विभाग ने ठेकेदार को भुगतान किस आधार पर किया जाँच का विषय है, इसमें विभागीय अधिकारियो की भूमिका संदिग्ध बानी हुई है ।
ज्ञातव्य हो की सूचना के अधिकार कानून के तहत आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के एवज में आवेदक को कार्यालय में उपलब्ध दस्तावेजों की सत्यापित प्रति 30 दिवस में उपलब्ध कराना होता है। अन्य कार्यालय से संबंधित होने पर उस विभाग को आवेदन अंतरित कर दिया जाता है और इसकी सूचना आवेदक को दी जाती है।
जबकि जल संसाधन विभाग में ऐसा कुछ नहीं हुआ है उलटे विभाग ने जानकारी के लिए ठेकेदार को पत्र लिख साबित कर दिया की विभाग के पास दस्तावेज नहीं है और अब वह अपनी गलती छुपाने दस्तावेज तैयार करवा रहा है ।
सूचना का अधिकार विभाग के गले की हड्डी बन गया है।
रौचन जलाशय के मरम्मत, जीर्णोद्धार एवं पूर्णोद्धार के लिए लगाई गई आरटीआई जल संसाधन विभाग के लिए गले की हड्डी साबित हो रही है।
विभाग ने ठेकेदार को पत्र लिखकर समस्त दस्तावेज जुटाने का प्रयास किया, जो सरासर गलत है।
यही नहीं विभाग द्वारा लिखे गए पत्र के जवाब में ठेकेदार ने जानकारी देने के बजाय विभाग को पत्र लिखकर जिले के नेताओं और पत्रकारों पर पैसे मांगने का आरोप लगा दिया। इस बीच पूरा मामला उलझ गया है।
आरटीआई आवेदक चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि इस संबंध में जानकारी के लिए मैंने वर्ष 2013-14 में जल संसाधन विभाग के पास आवेदन किया है, लेकिन अब तक विभाग जानकारी उपलब्ध कराने में असफल है।
विभाग ने इस बीच कई बार संबंधित ठेकेदार को पत्र लिखकर जानकारी जुटाने का प्रयास किया है, जो की सरासर नियम के विपरीत है।
यह मामला राज्य सूचना आयोग में लंबित है।
आरटीआई की जानकारी देने ठेकेदार को लिख रहे पत्र
विभाग के पास निर्माण कार्य के दस्तावेज उपलब्ध नहीं
फॉर्मेलिटी पूरी किये बिना हो रहा ठेकेदार को बेरोक टोक भुगतान
श्रम नियमो का नहीं हो रहा पालन
ठेकेदार ने जिले के नेतओ और पत्रकारो पर लगाये पैसे मांगने के आरोप।
कवर्धा
मुख्यमंत्री के गृह जिले में जल संसाधन विभाग का एक और कारनामा सामने आया है। विभाग के पास रौचन जलाशय के मरम्मत, जीर्णोद्धार एवं पूर्णोद्धार के कार्य संबंधी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है।
यह खुद विभाग का कहना है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी पर विभाग ने संबंधित ठेकेदार को बार बार पत्र लिखकर जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दे रहे है।
जबकि सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी पर विभाग को कार्यायल में उपलब्ध दस्तावेज व जानकारी की सत्यापित प्रति देनी होती है न कि जानकारी तैयार कर देनी होती है।
कवर्धा के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने रौचन जलाशय में चल रहे निर्माण कार्य में विभाग की ओर से नियुक्त अधिकृत अधिकारी और मजूदरों की उपस्थिति पंजी के साथ अधिकारी द्वारा सत्यापित पंजी एवं अधिकारी की उपस्थिति में मजदूरों को किए गए भुगतान के प्रमाणपत्र व तत्सम्बन्ध में ठेकेदार को जारी किये गए प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति एवं लेबर लाइसेंस की जानकारी मांगी गई थी। इस पर विभाग ने पहले तो जानकारी देने के लिए आनाकानी की।
इसके बाद विभाग ने उक्त सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ठेकेदार को पत्र लिखा। विभाग ने यह कारनामा एक बार या दो बार नहीं, बल्कि कई बार किया है। बावजूद इसके विभाग के पास अब तक इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
जबकि विभाग ठेकेदार के सभी बिलो का भुगतान भी करते आ रहा है।
जब ठेकेदार के द्वारा दस्तावेज विभाग को जमा ही नहीं किये गए तो विभाग ने ठेकेदार को भुगतान किस आधार पर किया जाँच का विषय है, इसमें विभागीय अधिकारियो की भूमिका संदिग्ध बानी हुई है ।
ज्ञातव्य हो की सूचना के अधिकार कानून के तहत आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के एवज में आवेदक को कार्यालय में उपलब्ध दस्तावेजों की सत्यापित प्रति 30 दिवस में उपलब्ध कराना होता है। अन्य कार्यालय से संबंधित होने पर उस विभाग को आवेदन अंतरित कर दिया जाता है और इसकी सूचना आवेदक को दी जाती है।
जबकि जल संसाधन विभाग में ऐसा कुछ नहीं हुआ है उलटे विभाग ने जानकारी के लिए ठेकेदार को पत्र लिख साबित कर दिया की विभाग के पास दस्तावेज नहीं है और अब वह अपनी गलती छुपाने दस्तावेज तैयार करवा रहा है ।
सूचना का अधिकार विभाग के गले की हड्डी बन गया है।
रौचन जलाशय के मरम्मत, जीर्णोद्धार एवं पूर्णोद्धार के लिए लगाई गई आरटीआई जल संसाधन विभाग के लिए गले की हड्डी साबित हो रही है।
विभाग ने ठेकेदार को पत्र लिखकर समस्त दस्तावेज जुटाने का प्रयास किया, जो सरासर गलत है।
यही नहीं विभाग द्वारा लिखे गए पत्र के जवाब में ठेकेदार ने जानकारी देने के बजाय विभाग को पत्र लिखकर जिले के नेताओं और पत्रकारों पर पैसे मांगने का आरोप लगा दिया। इस बीच पूरा मामला उलझ गया है।
आरटीआई आवेदक चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि इस संबंध में जानकारी के लिए मैंने वर्ष 2013-14 में जल संसाधन विभाग के पास आवेदन किया है, लेकिन अब तक विभाग जानकारी उपलब्ध कराने में असफल है।
विभाग ने इस बीच कई बार संबंधित ठेकेदार को पत्र लिखकर जानकारी जुटाने का प्रयास किया है, जो की सरासर नियम के विपरीत है।
यह मामला राज्य सूचना आयोग में लंबित है।
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