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नई दिल्ली. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने गंभीरता से ध्यान दिया है। पीसीआई की तरफ से गठित एक सब-कमेटी ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक कानून बनाने की सिफारिश की है। जिससे किसी भी पत्रकार पर हमले को एक संज्ञेय अपराध माना जाए, जिसके लिए कठोर और निवारक दंड का प्रावधान हो।
सब कमेटी के सिफारिशों को पीसीआई ने स्वीकार कर लिया है। सिफारिशों मे कहा गया है कि पत्रकारों पर होने वाले घातक और सभी तरह के हमलों के मामलों को विशेष अदालतों मे भेजा जाए। जिनमें अदालत प्रतिदिन सुनवाई कर सके और ट्रायल, आरोप पत्र दाखिल होने के एक साल के भीतर पूरा किया जा सके।
बता दें, यह सब कमेटी 2011 में स्थापित की गई थी। जिसने 11 राज्यों मे जाकर शीर्ष सरकारी अधिकारियों और पत्रकार संघों से चर्चा की। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से 2015 के बीच भारत मे 80 पत्रकारों की हत्या हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से लगभग सभी मामले या तो अभी भी कोर्ट मे लंबित हैं या उनमें पुलिस ने अभी तक चार्जशीट ही दाखिल नहीं की। केवल 2013 शक्ति मिल मामले मे ही कोर्ट ने एक साल के भीतर दोषियों को सजा सुनाई। जो एक अपवादस्वरूप मामला है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि इसमें कठोर संशोधित बलात्कार कानून के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट मे सुनवाई हुई थी।
इसके अलावा समिति ने सिफारिश की है कि इन सभी मामलों की जांच पीसीआई या अदालत की देखरेख मे स्पेशल टास्क फोर्स से कराई जाए। इन मामलों में जांच एक महीने में पूरी करने का सुझाव दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर किसी भी पत्रकार की हत्या होती है, तो मामले को सीधे ही सीबीआई या अन्य किसी राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी को सौंपा जाए। इसकी जांच तीन महीने में पूरी की जाए।
इसके साथ ही रिपोर्ट मे सिफारिश की गई है कि अगर पत्रकार की हत्या होती है तो राज्य सरकार 10 लाख रुपए दे। हमले की स्थिति मे गंभीर चोटें आने पर 5 लाख रुपए दिए जाएं। साथ ही इलाज का सारा खर्चा भी संबंधित राज्य सरकार ही करे। कमेटी ने इस हालत में समाचार संस्थान को घायल पत्रकार को छुट्टी देने और इसके बदले ड्यूटी पर रहने के बराबर वेतन देने की सिफारिश की है।
सब कमेटी ने कहा है कि पीसीआई को सभी राज्यों को उच्च शक्ति वाली समितियां बनाने का निर्देश देना चाहिए। जिनमें पत्रकारों की संस्थाओं का प्रतिनिधित्व हो और वे पत्रकारों पर हमलों के इन सभी मामलों पर हो रही जांच पर निगरानी रखें।
पीसीआई के चेयरमैन, जस्टिस (रिटायर्ड) चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने भी कहा कि पीसीआई ने भी पत्रकारों पर होने वाले हमले के मामलों को गंभीरता से लेने का निर्णय किया है।
नई दिल्ली. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने गंभीरता से ध्यान दिया है। पीसीआई की तरफ से गठित एक सब-कमेटी ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक कानून बनाने की सिफारिश की है। जिससे किसी भी पत्रकार पर हमले को एक संज्ञेय अपराध माना जाए, जिसके लिए कठोर और निवारक दंड का प्रावधान हो।
सब कमेटी के सिफारिशों को पीसीआई ने स्वीकार कर लिया है। सिफारिशों मे कहा गया है कि पत्रकारों पर होने वाले घातक और सभी तरह के हमलों के मामलों को विशेष अदालतों मे भेजा जाए। जिनमें अदालत प्रतिदिन सुनवाई कर सके और ट्रायल, आरोप पत्र दाखिल होने के एक साल के भीतर पूरा किया जा सके।
बता दें, यह सब कमेटी 2011 में स्थापित की गई थी। जिसने 11 राज्यों मे जाकर शीर्ष सरकारी अधिकारियों और पत्रकार संघों से चर्चा की। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से 2015 के बीच भारत मे 80 पत्रकारों की हत्या हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से लगभग सभी मामले या तो अभी भी कोर्ट मे लंबित हैं या उनमें पुलिस ने अभी तक चार्जशीट ही दाखिल नहीं की। केवल 2013 शक्ति मिल मामले मे ही कोर्ट ने एक साल के भीतर दोषियों को सजा सुनाई। जो एक अपवादस्वरूप मामला है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि इसमें कठोर संशोधित बलात्कार कानून के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट मे सुनवाई हुई थी।
इसके अलावा समिति ने सिफारिश की है कि इन सभी मामलों की जांच पीसीआई या अदालत की देखरेख मे स्पेशल टास्क फोर्स से कराई जाए। इन मामलों में जांच एक महीने में पूरी करने का सुझाव दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर किसी भी पत्रकार की हत्या होती है, तो मामले को सीधे ही सीबीआई या अन्य किसी राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसी को सौंपा जाए। इसकी जांच तीन महीने में पूरी की जाए।
इसके साथ ही रिपोर्ट मे सिफारिश की गई है कि अगर पत्रकार की हत्या होती है तो राज्य सरकार 10 लाख रुपए दे। हमले की स्थिति मे गंभीर चोटें आने पर 5 लाख रुपए दिए जाएं। साथ ही इलाज का सारा खर्चा भी संबंधित राज्य सरकार ही करे। कमेटी ने इस हालत में समाचार संस्थान को घायल पत्रकार को छुट्टी देने और इसके बदले ड्यूटी पर रहने के बराबर वेतन देने की सिफारिश की है।
सब कमेटी ने कहा है कि पीसीआई को सभी राज्यों को उच्च शक्ति वाली समितियां बनाने का निर्देश देना चाहिए। जिनमें पत्रकारों की संस्थाओं का प्रतिनिधित्व हो और वे पत्रकारों पर हमलों के इन सभी मामलों पर हो रही जांच पर निगरानी रखें।
पीसीआई के चेयरमैन, जस्टिस (रिटायर्ड) चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने भी कहा कि पीसीआई ने भी पत्रकारों पर होने वाले हमले के मामलों को गंभीरता से लेने का निर्णय किया है।
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