नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने एक आरटीआई आवेदक से 10 रूपए का शुल्क वसूलने के लिए कथित तौर पर 30,000 रूपए से ज्यादा की राशि खर्च की है और इस पर केन्द्रीय सूचना आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह ‘‘थोड़ा बचाने के चक्कर में बहुत ज्यादा गंवाने’’ जैसा है.
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने अपने आदेश में कहा, 10 रूपए का शुल्क पाने के लिए कानूनी लड़ाई में 30,000 रूपए से ज्यादा खर्च करने की कहानी सुनने के बाद ‘चवन्नी बचाने के चक्कर में रूपया’ गंवाने वाले मुहावरे को ‘रूपया बचाने के चक्कर में हजारों गंवाना’ लिखना सही होगा.
आवेदक ने अदालती स्टांप के रूप में 10 रूपए का शुल्क भरा जिसके बारे में हरित अधिकरण का कहना था कि उसका कार्यालय इस धन को प्राप्त नहीं कर सकता है. इसके बाद अधिकरण ने आवेदक से 10 रूपए शुल्क पोस्ट ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के रूप में जमा करने को कहा.
आवेदक को हरित अधिकरण के कार्यालय से सूचना लेने को भी कहा गया. सुनवायी के दौरान यह बात सामने आयी कि पत्र या सूचना भेजे जाने के संबंध में कोई भी साक्ष्य आयोग के समक्ष पेश नहीं किया गया.
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने अपने आदेश में कहा, 10 रूपए का शुल्क पाने के लिए कानूनी लड़ाई में 30,000 रूपए से ज्यादा खर्च करने की कहानी सुनने के बाद ‘चवन्नी बचाने के चक्कर में रूपया’ गंवाने वाले मुहावरे को ‘रूपया बचाने के चक्कर में हजारों गंवाना’ लिखना सही होगा.
आवेदक ने अदालती स्टांप के रूप में 10 रूपए का शुल्क भरा जिसके बारे में हरित अधिकरण का कहना था कि उसका कार्यालय इस धन को प्राप्त नहीं कर सकता है. इसके बाद अधिकरण ने आवेदक से 10 रूपए शुल्क पोस्ट ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के रूप में जमा करने को कहा.
आवेदक को हरित अधिकरण के कार्यालय से सूचना लेने को भी कहा गया. सुनवायी के दौरान यह बात सामने आयी कि पत्र या सूचना भेजे जाने के संबंध में कोई भी साक्ष्य आयोग के समक्ष पेश नहीं किया गया.
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