मध्य प्रदेश में भाजपा आदिवासी समुदाय के वोट नहीं मिलने से ही हारेगी
भारत का आदिवासी सीधा साफ कठोर परिश्रमी सत्यनिष्ठ प्रकृति प्रेमी स्वछंद अपने भगवान देवता के प्रति पूर्ण आस्थावान और अत्याचार का प्रतिकार करने वाला किन्तु मां पत्नी और पुत्री के प्रति गहन प्रेम और स्नेह रखने वाला है।
भारतीय आदिवासी इतिहास में राष्ट्र और राज्य के प्रति प्राण देकर भी उसकी रक्षा करने वाला आदिवासी समुदाय आज इतना खूंखार और कठोर क्यों हो गया ? क्या उसके अस्तित्व को खतरा पैदा होता जा रहा है ? क्या प्रकृति प्रेमी पर्यावारण का रक्षक क्यों हथियार उठाने को मजबूर हो गया ? देश के प्रत्येक राज्य में आदिवासी अपनी संस्कृति के प्रति धर्म की निष्ठा के लिये पया जाता है,परन्तु आज नक्सलवाद के नाम पर बदनामी कुछ आदिवासी वर्ग को बदनाम कर रही है।
आंग्रेजों के समय से ही आदिवासियों को उनके बनाये कानूनों से प्रताडि़त किया गया तो उसने भारत के 1857 से पहले ही स्वतंत्रता की लड़ाई शुरूआत कर दी थी। विरसा मुन्डा हो या सिद्दी मांझी ने अंग्रेजों अत्याचारों का उनके द्वारा बनाये गये कानूनों से मुकाबला किया। आदिवासी हमेश प्रकृति प्रेमी रक्षक और पूजक रहे हैं। आज भी उनके गोत्रों को पेड़ पौधो और पशुओं के नाम पाये जाते हैं।
बस्तर आदिवासी निवासियों का गहन और घना क्षेत्र है, जो आज भी अपने पिछड़ेपन को मिटा नहीं पा रहा है। देश स्वतंत्र हुआ परन्तु मध्य देश के आदिवासियों को दुसरी गुलामी भोगना पड़ रहा है। नई सरकार के नये आये अधिकारियों ने आदिवासी युवतियों के साथ बलात्कार किया और उनसे बैगार ली गई।
आजादी के बाद जितना अत्याचार मध्य देश के प्रान्तों में किया गया वह काला इतिहास आज भी आदिवासियों को कसक और पीड़ा दे रहा है। मध्य प्रदेश के कांग्रेस मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के कार्यकाल में इसी बस्तर के राजा प्रवीणचंद्र भंजदेव और भूखे प्यासे आदिवासियों को जिस बेरहमी से गोलियों से भून डाला गया था इसकी तुलना अमृतसर के जलियांवाला हत्याकांड से की जा सकती है। देश भर के आदिवासी समुदाय इस हत्याकांड को भूल नहीं सकता है।
बस्तर के पूर्व महाराज प्रवचीणचन्द्र भंजदेव एक शिक्षित युवा थें एवं बस्तर के विधायक भी रह चुके थें। बस्तर के आदिवासी उनको अपना भगवान,बड़ा महादेव कोयतूर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में मानते थें। इसलिये उन्होंने एक पुस्तक मे्रं बस्तर का भगवान (आई एम गॉड ऑफ बस्तर) लिखी थी, जिसमें बस्तर की कठिनाईयों के बारे में लिखा था। उनकी आस्था और प्रेम राजा के प्रति अटूट थी। यह पुस्तक ही बस्तर हत्याकांड का कारण बनी थी। वर्तमान मुयमंत्री श्री डी0पी0 मिश्र के ईशारे पर भूखे आदिवासी समुदाय को जो मात्र अनाज मांग रहा था उसे बस्तर राजमहल के पुलिस अर्धसेनिक बल जिला कलेक्टर एस0पी0 की मोजूदगी में मार डाला गया । बस्तर के आदिवासी का नेतृत्व करने वाले राजा प्रवीण चन्द्र भंजदेव के बलिदान को बस्तर का शिक्षित और अशिक्षित आदिवासी आज भी नहीं भूल पाया है। इसके बाद 10 वर्षों तक वन विभाग, पुलिस विभाग तथा प्रशासन के अधिकारी कर्मचारियों ने आदिवासी महिलाओं और पुरूषों पर अत्याचार भी किसी को नजर नहीं आए। क्योंकि जब कानून के रक्षक ही अत्याचार करेंगे तो प्रशासन पंगु बन जाता है।
जब ब्रह्मदेव शर्मा कलेक्टर बनकर बस्तर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि आधिकारी और कर्मचारी युवतियों के साथ बिना विवाह करे उनको रखैल की तरह भोग रहे है। उस दशक में गरीब आदिवासी युवतियों और बालिकाओं की अस्मत का सौदा चन्द रूपयों में किया जाता था। मेंलों व हाट बाजारों में खुले आम गरम गोश्त के सोदागर शिकार देखकर बाघ की तरह झपट कर शिकार करते थे। बस्तर के सरकारी रेस्ट हाउस और आफिस में दिन दहाड़े शराब और शवाब के अड्डे बन गये थे।
कलेक्टर डा0 ब्रह्मदेव शर्मा ने इस प्रकार अनाचार को रोकने की कार्यवाही की और अय्याष अधिकारी और कर्मचारियों को उन आदिवासी महिलाओं से शादी करने पर मजबूर कर दिया था, क्योंकि उनकी दो-तीन बच्चे पैदा होने से वह भी रखैलों की तरह जीने को मजबूर होगई थी।
बस्तर में होने वाले अत्याचारों को देखकर डा0 ब्रह्मदेव शर्मा शासकीय सेवा से निवृत होने के बाद आजीवन उन की ‘‘जल,जंगल और जमीन’’ की लड़ाई में शामिल हो गये हैं।
देश के अनेक प्रांतों में बड़े-बड़े बांध के निर्माण से लाखों आदिवासी विस्थापित हो गये किंतु उनकी समस्याओं का समाधान आज तक नहीं हो पा रहा है। बस्तर का अदिवासी भी आज पूर्व वर्षो से आदिवासियों के नाम पर केन्द्र व राज्य सरकारें अरबों, करोड़ों रूपये खर्च कर चुकी है, जिससे भ्रष्टाचार पैदाकर ठेकेदार व्यापारी और अधिकारी कर्मचारी करोड़पति बन गये। बस्तर के विकास के नाम पर अब नये लोग भी करोड़पति बन गये है।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार आदिवासी का असतित्व समाप्त करने में लगी है। राजनीति की चाल में फंसकर वह खिलोना बन रहा है। लोकसभा में 1999 के भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में दिसंबर माह में अंतिम सत्र के अंतिम दिवस में बहुत कम आदिवासी सासंद उपस्थित थे, ऐसे में संविधान संशोधन विधेयक पारित किया ,जिससे कि देश की अनेक अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण सूची से हटा दिया गया। इनका कोई भी मजबूत सामाजिक संगठन नहीं था। कई जातियों का कोई भी सांसद लोकसभा में नहीं था। यह अत्याचार सारे देश के कमजोर आदिवासी जनजातिपर पड़ा। यहां तक कि अनेक राज्यों में विधायक तक नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी ने उस संशोधन विधेयक को बहुमत से पास कराया जिससे अनेक छोटी और कम जनसंख्या वाली जातियां जोकि बदलते समय अनुसार हिन्दुधर्म के कर्मकांड तथा पूजा पाठ करने लगी हैं। तुलसी की पूजा रामचरित मानस का पाठ करना और भगवान श्री राम की आराधना करने लगी थी। सर्वे में यह पाया गया कि इन जातियों में अब जनजाति के गुण रहन सहन शदी ब्याह और आदिवासियों के धार्मिक रीति रिवाज नहीं पाये जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में भी उस समय भारतीय जनता पार्टी का शासन था ओर केन्द्र में भी भरतीय जनता पार्टी की सरकार बैठी थी। उसी समय उस संशोधन विधेयक के पारित होने से भोपाल सीहोर और रायसेन जिले की कीर जनजाति को आरक्षण की सूची में से हटा दिया गया। इसका कारण यह था कि मध्य प्रदेश की जनजाति के बारे में पूर्व में ही यह मध्यप्रदेश शासन ने यह रिपोर्ट भेजी थी कि यह जनजाति तुलसी की पूजा रामायण का पाठ और अखंड रामचरित्र मानस का पाठ करती है। रामचंद्र भगवान का मंदिर पवित्र नर्मदा के तट पर पूजती पाई गई है। यह रिपोर्ट मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के समय केन्द्र शासन को भेजी गई थी और जब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और जनजाती आयोग के अध्यक्ष श्री दिलीप सिंह भूरिया के रहते जो भाजपा के बड़े नेता हैं उनके होते हुए यह कार्यवाही हुई। उस समय मध्यप्रदेश भाजपा के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी कल्याण मंत्री थे। इससे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों छोटी जनसंख्या वाली जातियों को आरक्षण की सूची से निकाल बाहर करना चाहती थी। यह दोनों पार्टियों की मिलीभगत से हटाया गया है।
इसी तरह विदिश जिले के सिरोंज तहसील जो राजस्थान राज्य से सटा हुआ जिला है। उसकी मीना जनजाति को भी इसी तरह जनजाति की सूची से बाहर कर दिया क्योंकि यह जाति भी हिन्दू संस्कार को मानने लगी थी। पारधी एक घुम्मकड़ जाती है जिनको ब्रिटिश शासन काल में प्रतिबंधित जातियों की सूची में पेशेवर अपराधी के रूप में शामिल कर रखा थां। आजादी के बाद अनुसुचित जनजाति की सूची में शामिल की गई थी। उसे भी भोपाल सीहोर एवं रायसेन की सूची से निकाल दिया था। इस तरह देखा गया है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी कांग्रेस की आदिवासी विरोधी की तरह काम करती है।
भारत की राजनीति में जातीय गणित महत्वपूर्ण महत्व रखता है। इसी कारण मध्यपदेश के आगामी विधान सभा चुनाव से पूर्व ही केन्द्रीय मंत्री श्री कांतिलाल भूरिया कों मध्यप्रदेश का कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाकर प्रदेश के आदिवासियों को पुनः जोड़ने के लिये पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा भी आदिवासियों के बीच पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है।
राजेंद्र सिंह कश्यप
एम.आई.जी. 11/4 गीतांजली कांपलेक्स
पी.एंड.टी.चैराहा हजेला अस्पताल के पीछे
भोपाल।
मा.क्र. 9753041701
- राजेंद्र सिंह कश्यप
toc news internet channel
भारत का आदिवासी सीधा साफ कठोर परिश्रमी सत्यनिष्ठ प्रकृति प्रेमी स्वछंद अपने भगवान देवता के प्रति पूर्ण आस्थावान और अत्याचार का प्रतिकार करने वाला किन्तु मां पत्नी और पुत्री के प्रति गहन प्रेम और स्नेह रखने वाला है।
भारतीय आदिवासी इतिहास में राष्ट्र और राज्य के प्रति प्राण देकर भी उसकी रक्षा करने वाला आदिवासी समुदाय आज इतना खूंखार और कठोर क्यों हो गया ? क्या उसके अस्तित्व को खतरा पैदा होता जा रहा है ? क्या प्रकृति प्रेमी पर्यावारण का रक्षक क्यों हथियार उठाने को मजबूर हो गया ? देश के प्रत्येक राज्य में आदिवासी अपनी संस्कृति के प्रति धर्म की निष्ठा के लिये पया जाता है,परन्तु आज नक्सलवाद के नाम पर बदनामी कुछ आदिवासी वर्ग को बदनाम कर रही है।
आंग्रेजों के समय से ही आदिवासियों को उनके बनाये कानूनों से प्रताडि़त किया गया तो उसने भारत के 1857 से पहले ही स्वतंत्रता की लड़ाई शुरूआत कर दी थी। विरसा मुन्डा हो या सिद्दी मांझी ने अंग्रेजों अत्याचारों का उनके द्वारा बनाये गये कानूनों से मुकाबला किया। आदिवासी हमेश प्रकृति प्रेमी रक्षक और पूजक रहे हैं। आज भी उनके गोत्रों को पेड़ पौधो और पशुओं के नाम पाये जाते हैं।
बस्तर आदिवासी निवासियों का गहन और घना क्षेत्र है, जो आज भी अपने पिछड़ेपन को मिटा नहीं पा रहा है। देश स्वतंत्र हुआ परन्तु मध्य देश के आदिवासियों को दुसरी गुलामी भोगना पड़ रहा है। नई सरकार के नये आये अधिकारियों ने आदिवासी युवतियों के साथ बलात्कार किया और उनसे बैगार ली गई।
आजादी के बाद जितना अत्याचार मध्य देश के प्रान्तों में किया गया वह काला इतिहास आज भी आदिवासियों को कसक और पीड़ा दे रहा है। मध्य प्रदेश के कांग्रेस मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के कार्यकाल में इसी बस्तर के राजा प्रवीणचंद्र भंजदेव और भूखे प्यासे आदिवासियों को जिस बेरहमी से गोलियों से भून डाला गया था इसकी तुलना अमृतसर के जलियांवाला हत्याकांड से की जा सकती है। देश भर के आदिवासी समुदाय इस हत्याकांड को भूल नहीं सकता है।
बस्तर के पूर्व महाराज प्रवचीणचन्द्र भंजदेव एक शिक्षित युवा थें एवं बस्तर के विधायक भी रह चुके थें। बस्तर के आदिवासी उनको अपना भगवान,बड़ा महादेव कोयतूर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में मानते थें। इसलिये उन्होंने एक पुस्तक मे्रं बस्तर का भगवान (आई एम गॉड ऑफ बस्तर) लिखी थी, जिसमें बस्तर की कठिनाईयों के बारे में लिखा था। उनकी आस्था और प्रेम राजा के प्रति अटूट थी। यह पुस्तक ही बस्तर हत्याकांड का कारण बनी थी। वर्तमान मुयमंत्री श्री डी0पी0 मिश्र के ईशारे पर भूखे आदिवासी समुदाय को जो मात्र अनाज मांग रहा था उसे बस्तर राजमहल के पुलिस अर्धसेनिक बल जिला कलेक्टर एस0पी0 की मोजूदगी में मार डाला गया । बस्तर के आदिवासी का नेतृत्व करने वाले राजा प्रवीण चन्द्र भंजदेव के बलिदान को बस्तर का शिक्षित और अशिक्षित आदिवासी आज भी नहीं भूल पाया है। इसके बाद 10 वर्षों तक वन विभाग, पुलिस विभाग तथा प्रशासन के अधिकारी कर्मचारियों ने आदिवासी महिलाओं और पुरूषों पर अत्याचार भी किसी को नजर नहीं आए। क्योंकि जब कानून के रक्षक ही अत्याचार करेंगे तो प्रशासन पंगु बन जाता है।
जब ब्रह्मदेव शर्मा कलेक्टर बनकर बस्तर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि आधिकारी और कर्मचारी युवतियों के साथ बिना विवाह करे उनको रखैल की तरह भोग रहे है। उस दशक में गरीब आदिवासी युवतियों और बालिकाओं की अस्मत का सौदा चन्द रूपयों में किया जाता था। मेंलों व हाट बाजारों में खुले आम गरम गोश्त के सोदागर शिकार देखकर बाघ की तरह झपट कर शिकार करते थे। बस्तर के सरकारी रेस्ट हाउस और आफिस में दिन दहाड़े शराब और शवाब के अड्डे बन गये थे।
कलेक्टर डा0 ब्रह्मदेव शर्मा ने इस प्रकार अनाचार को रोकने की कार्यवाही की और अय्याष अधिकारी और कर्मचारियों को उन आदिवासी महिलाओं से शादी करने पर मजबूर कर दिया था, क्योंकि उनकी दो-तीन बच्चे पैदा होने से वह भी रखैलों की तरह जीने को मजबूर होगई थी।
बस्तर में होने वाले अत्याचारों को देखकर डा0 ब्रह्मदेव शर्मा शासकीय सेवा से निवृत होने के बाद आजीवन उन की ‘‘जल,जंगल और जमीन’’ की लड़ाई में शामिल हो गये हैं।
देश के अनेक प्रांतों में बड़े-बड़े बांध के निर्माण से लाखों आदिवासी विस्थापित हो गये किंतु उनकी समस्याओं का समाधान आज तक नहीं हो पा रहा है। बस्तर का अदिवासी भी आज पूर्व वर्षो से आदिवासियों के नाम पर केन्द्र व राज्य सरकारें अरबों, करोड़ों रूपये खर्च कर चुकी है, जिससे भ्रष्टाचार पैदाकर ठेकेदार व्यापारी और अधिकारी कर्मचारी करोड़पति बन गये। बस्तर के विकास के नाम पर अब नये लोग भी करोड़पति बन गये है।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार आदिवासी का असतित्व समाप्त करने में लगी है। राजनीति की चाल में फंसकर वह खिलोना बन रहा है। लोकसभा में 1999 के भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में दिसंबर माह में अंतिम सत्र के अंतिम दिवस में बहुत कम आदिवासी सासंद उपस्थित थे, ऐसे में संविधान संशोधन विधेयक पारित किया ,जिससे कि देश की अनेक अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण सूची से हटा दिया गया। इनका कोई भी मजबूत सामाजिक संगठन नहीं था। कई जातियों का कोई भी सांसद लोकसभा में नहीं था। यह अत्याचार सारे देश के कमजोर आदिवासी जनजातिपर पड़ा। यहां तक कि अनेक राज्यों में विधायक तक नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी ने उस संशोधन विधेयक को बहुमत से पास कराया जिससे अनेक छोटी और कम जनसंख्या वाली जातियां जोकि बदलते समय अनुसार हिन्दुधर्म के कर्मकांड तथा पूजा पाठ करने लगी हैं। तुलसी की पूजा रामचरित मानस का पाठ करना और भगवान श्री राम की आराधना करने लगी थी। सर्वे में यह पाया गया कि इन जातियों में अब जनजाति के गुण रहन सहन शदी ब्याह और आदिवासियों के धार्मिक रीति रिवाज नहीं पाये जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में भी उस समय भारतीय जनता पार्टी का शासन था ओर केन्द्र में भी भरतीय जनता पार्टी की सरकार बैठी थी। उसी समय उस संशोधन विधेयक के पारित होने से भोपाल सीहोर और रायसेन जिले की कीर जनजाति को आरक्षण की सूची में से हटा दिया गया। इसका कारण यह था कि मध्य प्रदेश की जनजाति के बारे में पूर्व में ही यह मध्यप्रदेश शासन ने यह रिपोर्ट भेजी थी कि यह जनजाति तुलसी की पूजा रामायण का पाठ और अखंड रामचरित्र मानस का पाठ करती है। रामचंद्र भगवान का मंदिर पवित्र नर्मदा के तट पर पूजती पाई गई है। यह रिपोर्ट मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के समय केन्द्र शासन को भेजी गई थी और जब केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और जनजाती आयोग के अध्यक्ष श्री दिलीप सिंह भूरिया के रहते जो भाजपा के बड़े नेता हैं उनके होते हुए यह कार्यवाही हुई। उस समय मध्यप्रदेश भाजपा के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते आदिवासी कल्याण मंत्री थे। इससे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों छोटी जनसंख्या वाली जातियों को आरक्षण की सूची से निकाल बाहर करना चाहती थी। यह दोनों पार्टियों की मिलीभगत से हटाया गया है।
इसी तरह विदिश जिले के सिरोंज तहसील जो राजस्थान राज्य से सटा हुआ जिला है। उसकी मीना जनजाति को भी इसी तरह जनजाति की सूची से बाहर कर दिया क्योंकि यह जाति भी हिन्दू संस्कार को मानने लगी थी। पारधी एक घुम्मकड़ जाती है जिनको ब्रिटिश शासन काल में प्रतिबंधित जातियों की सूची में पेशेवर अपराधी के रूप में शामिल कर रखा थां। आजादी के बाद अनुसुचित जनजाति की सूची में शामिल की गई थी। उसे भी भोपाल सीहोर एवं रायसेन की सूची से निकाल दिया था। इस तरह देखा गया है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी कांग्रेस की आदिवासी विरोधी की तरह काम करती है।
भारत की राजनीति में जातीय गणित महत्वपूर्ण महत्व रखता है। इसी कारण मध्यपदेश के आगामी विधान सभा चुनाव से पूर्व ही केन्द्रीय मंत्री श्री कांतिलाल भूरिया कों मध्यप्रदेश का कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाकर प्रदेश के आदिवासियों को पुनः जोड़ने के लिये पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा भी आदिवासियों के बीच पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है।
राजेंद्र सिंह कश्यप
एम.आई.जी. 11/4 गीतांजली कांपलेक्स
पी.एंड.टी.चैराहा हजेला अस्पताल के पीछे
भोपाल।
मा.क्र. 9753041701
No comments:
Post a Comment