कटनी से लखन लाल की रिपोर्ट... (टाइम्स ऑफ क्राइम)
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कटनी. जिला अस्पताल इन दिनों किसी न किसी कारण से अखबार की सुर्खियों में छाया हुआ है। कहीं किसी मरीज को लेकर तो कहीं किसी सामाज सेवा का ढ़ोंग करने वाले दलालों के कारण। सबसे अहम बात तो यह है कि डॉ. अपनी डियूटी से नदारत रहते हैं। सुबह 8:30 से जिस डॉ. की डियूटी होती है वह सुबह आते जरूर है किन्तु ये डॉ. अपनी हाजरी रजिस्टर में दर्शा कर अपनी प्राईवेट क्लिनिक को चलाने में मशगुल हो जाते है। सूत्र तो यह भी कहते हैं कि जो डॉ. डियूटी होते हुये भी नदारत रहते हैं ऐसे सभी डॉ. सीएस को कमीशन भी देते हैं। ताकी इन पर किसी प्रकार की कार्यवाही न हो सके। ऐसे चार-पांच डॉ. हैं जो जिला अस्पताल तो आते हैं किन्तु नाम मात्र के लिए।
जिला अस्पताल में केवल टाइम पास करने आते हैं। अपने क्लिनिक में बैठे कम्पाडउर से हर वक्त मोबाइल के द्वारा मरीजों की जानकरी लेेते रहते हैं कितने मरीज आये है उन्हें बैठाओ हम आ रहे हैं। डियूटी से नदारत होने के कारण ही ऐसे डॉ. सीएस को अपनी सैलरी से कमीशन के तौर पर देते हैं। इन्हें जिला अस्पताल के मरीजों से कोई लेना-देना नहीं रहता कोई मरे या जिये। यही डॉ. यदि मरीज इनकी प्राईवेट क्लिनिक में दिखाने आता है तो पूरी तरह से इलाज किया जाता है अगर इन डॉ. से जिला अस्पताल में कोई मरीज दिखाने आता है तो यही डॉ. ऐसा बरताव करते है जैसे मरीज को कोई लाइलाज बिमारी हो जिसे यह लोग ठीक तरीके से इलाज तो दूर देखना भी पसंद नहीं करते हैं। ऐसे डॉ. का भगवान ही मालिक हैं। न जाने इस कलयूग के डॉक्टरों को भगवान का दर्जा किसने दिया।
शासन की मंशा थी डॉक्टरों को सबक देने की
विगत कुछ दिनों पूर्व शासन की ओर से एक फरमान आया था जिससे ऐसे सारे डॉक्टरों के हालत खराब थी इन धनपषु बने डॉक्टरों को लगा इनकी कमाई बंद हो गई और अब ये क्या करेगें शासन के ऐसे फरमान से हर डॉक्टरों के चेहरे में खौफ साफ झलकता था कि कहीं ऐसा सही न हो जाये। ओर ये सारे डॉक्टर लामबध होकर काली पट्टी बांध कर डियूटी कर रहे थे। इतना कुछ होगा किन्तु इन डॉक्टरों की धन कमाने की लालसा नहीं गई। कई डॉक्टर तो ऐसे हैं जो कि महीनों से छुट्टी के घर पर बैठे लेकिन ऐसा नहीं है कि बिमार या कोई और काम हो ये अपने क्लिनिक में अपनी प्रैकटिस करते नजर आते हैं। ऐसे डॉक्टरों को जरा भी चिंता नहीं है कि सैकड़ों गरीब मरीजों का क्या होगा जिन्हें इनकी जरूरत है। ये तो डॉक्टर ऐसे है जिन्हें धन की लिप्सा ऐेसे कुकरम करने के लिए मजबूर करती है। वैसे भी इन डॉक्टरों को हराम की अपनी सैलरी मतलब से होता है। आज 10-10 वर्षों से अंगद के पैर की तरह जिला अस्पताल में जमें बैठे हैं और इनकी मनमानी के चलते मरीज परेशान होते है। शासन को इनका स्थानांतरण कहीं अन्यंत्र कर देना चाहिये।
समाज सेवा के नाम पर करते हैं दलाली
जिला अस्पताल के अन्दर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो समाज सेवा में तो जुड़े हुये हैं किन्तु समाज सेवा तो केवल दिखावा है। मरीजों से मेल-जोल बढ़ाना और मरीज को कहीं अन्यंत्र किसी प्राईवेट अस्पताल में इलाज कराने की सलाह देना इनका रोज का काम है। इससे डॉक्टरों की भी अलग से कमाई हो जाती है और इन समाज सेवा का ढ़ोंग करने वाले दलालों को भी अच्छी कासी कमीशन पैदा हो जाती है। इन्हीं कई कारणों से रोज की तरह आने वाले मरीज अपना इलाज कराने से वंचित रह जाते है। सूत्र बताते हैं कि ये समाज सेवा का ढ़ोंग रचने वाले दलाल नुमा लोग पहले अपने मिलने-जुलने वालों का इलाज कराने में तत्पर रहते हैं और इन्हें अन्य अस्पताल में इलाज कराने की सलाह देते हैं। ये डॉक्टरों के पास ही बैठते हैं। ऐसा ये खुद नहीं करते जबकि ये तो डॉक्टरों के पढ़ाये हुये रहते हैं।
इन सब बातों के कारण डॉक्टरों का समय बीत जाता है ये उठ कर चले जाते हैं। 1 बजे डॉक्टर का समय होते ही ये डॉक्टर मरीजों को देखना भी पंसद नहीं करते। चिल्ला के कहते हैं हमारा समय हो गाया है कल आना मरीज अपने नं. का इंतजार करते-करते थक हार कर अपने घर जाते हैं दूसरे दिन का इंतजार करते हैं। हर विभाग में समाज सेवा का ढोंग रचने वाले ये दलाल मिल जायेगें चाहे वो ब्लड बैंक हो एक्सरा विभाग हो या फि र सोनो ग्राफ ी विभाग हो। सूत्र तो ये भी कहते हैं कि ये नियत के भी कच्चे हैं महिलाओं के बीच में ज्यादा देखे जाते हैं।च
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