आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ताओं द्वारा 9 माह में
सिर्फ 23 बच्चे ही पहुंचाए गए केंद्र
नरसिंहपुर से सलामत खान की रिपोर्ट..
(टाइम्स ऑफ क्राइम) प्रतिनिधि से संपर्क:- 9424719876
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नरसिंहपुर। कुपोषण मिटाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं धरातल पर दम तोड़ रही हैं, नतीजतन कुपोषण की मार झेल रहे बच्चे जिंदा लाश बन चुके हैं और सरकारी अधिकारी मात्र कागजी घोड़े दौड़ाकर खुद को पोषित करने में लगे हुए हैं। खाद्यान्न के उत्पादन में अग्रणी व कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद नरसिंहपुर जिले में कुपोषित बच्चों की तादाद का लगातार बढऩा चिंता का विषय तो है ही लेकिन सवाल यह उठता है कि जिले में विभिन्न विभागों के माध्यम से शासन द्वारा कुपोषण रोकने के लिए दी जाने वाली राशि आखिर जा कहां रही है।
अधिकारियों द्वारा शालाओं में दिये जाने वाले मध्यान्ह भोजन को पोषण एवं गुणवत्तायुक्त बनाने के लिए बैठकों में बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं लेकिन बच्चों की थाली में हर-हमेशा पनीली दाल व आलू की सब्जी के सिवाये कुछ नजर नही आता, ऐसे भोजन से किस तरह का पोषण मिलता है यह किसी गरीब के झोपड़े में झांकने के बाद पता चल जायेगा। वहीं महिला बाल विकास विभाग के अधीन कार्य करने वाली आंगनवाडिय़ों में भी पोषण आहार वितरण के नाम पर केवल औपचारिकताएं ही की जा रही हैं। आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं की निष्क्रियता का आलम यह है यदि किस्मत से आंगनवाडिय़ां खुली मिल जायें तो यहां बच्चे ही दिखाई नही देते, फिर यहां मिलने वाला पोषण आहार कौन खा रहा है?
पोषण आहार केंद्र में आ रहे कम बच्चे
शासकीय जिला चिकित्सालय में कुपोषित बच्चों को पोषण आहार व समुचित स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के लिए पोषण आहार केंद्र खोला गया है किंतु विडंबना यह है कि आशा कार्यकत्र्ताओं व आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं की निष्क्रियता के कारण इस केंद्र में कुपोषित बच्चों की तादाद इतनी कम रहती है कि यहां के अधिकतर बैड खाली पड़े रहते हैं। आशा कार्यकत्र्ताओं द्वारा फिर भी इस केंद्र में कुपोषित बच्चे पहुंचाये जा रहे हैं लेकिन इस कार्य में आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं की रूचि न के बराबर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 में माह जनवरी से माह अक्टूबर तक कुल 128 बच्चों को पोषण आहार केंद्र में भर्ती किया गया, इन बच्चों में से मात्र 23 बच्चे ही आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं द्वारा केंद्र तक पहुंचाये गये जबकि यहां कुपोषित बच्चे पहुंचाने वालों को प्रति बच्चे के हिसाब से 100 रूपये का तुरंत भुगतान किया जाता है।
पत्र लिख-लिख हारे पर नही चेता विभाग
पोषण आहार केंद्र द्वारा महिला बाल विकास विभाग को अनेक बार पत्र लिखकर आग्रह किया जा चुका है कि आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं को कुपोषित बच्चों की तलाश एवं उन्हे केंद्र तक पहुंचाने के लिए सजग करें लेकिन उनके इन आग्रहों के परिणाम कभी भी सकारात्मक रूप में सामने नही आये, न तो विभागीय अधिकारी इस कार्य में रूचि ले रहे हैं और न ही आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ताओं को कड़े निर्देश दे रहे हैं। केवल विभाग के माध्यम से कुपोषण मिटाने का झूठा ढोल बजाया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषित महिलाओं की तादाद में काी हर दिन इजाफा हो रहा है पर महिला बाल विकास विभाग को निश्ंिचत होकर आंकड़ों की बाजीगरी दिखाने में मशगूल है।
स्टॉफ करता रहता है प्रतीक्षा
पोषण आहार केंद्र में 2 रसोईये, 3 केयर टेकर, 1 स्वीपर, 1 एएनएम व 1 आहार विशेषज्ञ का स्टॉफ सदैव 0 से 5 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों की प्रतीक्षा में रहता है किंतु कई बार तो स्थिति यह रहती है कि जितना स्टॉफ है उतने बच्चे तक नही रहते। इस साल फरवरी माह में मात्र 2 एवं जनवरी व अप्रेल माह में मात्र 8-8 बच्चे ही केंद्र में पहुंचाये गये। गनीमत यह है कि जिला चिकित्सालय में एसएनसीयू खुल जाने के बाद यहां जन्म लेने वाले कुपोषित बच्चों को केंद्र में भर्ती करा दिया जाता है वरना पोषण आहार केंद्र के तो 90 प्रतिशत बैड खाली ही पड़े रहते और यहां का यह नजारा देखने के बाद लगता कि जिले से तो कुपोषण को खदेड़ दिया गया है। जिले में कुपोषण मिटाने की शासकीय योजनाओं से कोई पोषण पा रहा है तो केवल संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारी।
राशन की दुकानें भी नही दे रहीं खुराक
जिले की सरकारी राशन दुकानों में खुलेआम अधिकारियों के संरक्षण में चल रही खाद्यान्नों की काला बाजारी भी कुपोषण का एक प्रमुख कारण है। गरीबों के लिए आवंटित होने वाला अन्न भ्रष्टाचार के फलस्वरूप काला हो जाता है और वह गरीबों के रसोई में न पहुंचकर बड़े-बड़े सेठों के गोदामों में पहुँच रहा है।
माह कुपोषित बच्चे
जनवरी 08
फरवरी 02
मार्च 14
अप्रेल 08
मई 11
जून 15
जुलाई 20
अगस्त 11
सितंबर 23
अक्टूबर 16
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