अवधेश पुरोहित // Toc News
भोपाल । १९७२ में प्रदेश में जिस उद्देश्य के साथ राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की स्थापना की गई थी लगता है ४४ वर्ष बाद भी राज्य के इस मण्डल द्वारा प्रदेश के नागरिकों के हितों की रक्षा न करते हुए अपने हितों की पूर्ति के लिये कुछ ज्यादा ही गंभीर दिखाई दिया, शायद इसका ही परिणाम है कि राज्य की विधानसभा में १९९७ में रायसेन जिले के सेहतगंज में स्थित सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा नदी में प्रदूषण संबंंधी याचिका क्रमांक २६४४ पर याचिका समिति का ३०वाँ प्रतिवेदन (भाग-दो) जो दिनांक एक मई १९९८ को विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत किया गया था उक्त रिपोर्ट में याचिका समिति के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में राज्य के प्रदूषण निवारण मण्डल के अधिकारियों के बारे में जो निष्कर्ध और अनुशंसाएं याचिका समिति द्वारा अपने प्रतिवेदन में दी गई थीं
वह आज भी १९ वर्ष बाद राज्य के इस बोर्ड के अधिकारियों पर अक्षरश: साबित होता नजर आ रहा है तभी तो राज्य का ग्वालियर जिला आज सर्वाधिक प्रदूषण की श्रेणी में है तो वहीं राज्य के विंध्य क्षेत्र के सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, सिंगरौली और चितरंगी में पैदा होने वाले बच्चे इस स्वर्णिम मध्यप्रदेश की धरती पर जन्म लेने के साथ ही प्रदूषण के कारण तमाम बीमारियां लेकर पैदा हो रहे हैं राज्य के जिस ग्वालियर को प्रदेश का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर घोषित किया गया है,
प्रदेश के अन्य जिले भी ग्वालियर जैसे प्रदूषण की मार झेल रहे हैं जिनमें शहडोल, सिंगरौली, रीवा, सतना, कटनी, मैहर, नीमच, नागदा और दमोह और धार जिले में स्थापित सीमेंट फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले कण की मार इस प्रदेश का मानस झेलता नजर आ रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी राजधानी के निकट मण्डीदीप, पीलूखेड़ी भी प्रदूषण की श्रेणी में आते हैं तो वहीं राजधानी भोपाल के दोनों जलस्त्रोत प्रदूषण की चपेट में हैं जिस भोपाल के ताल की शान में अक्सर लोग यह कहा करते थे कि ताल तो भोपाल ताल बाकी सब तलैया रानी तो कमलापति बाकी हैं
रनईयां, उस ताल की शान को भी प्रदूषण निवारण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली के चलते अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है। यही स्थिति लगभग राज्य के अधिकांश जिलों की है जहाँ फसलों के अपशिष्टों के जलाये जाने से निकनले वाले धुंआ और उद्योग एवं विकास के नाम पर स्थापित चिमनियां इस प्रदेश की आबोहवा को दूषित करने में लगी हुई हैं। तो वहीं राज्य में सल्फरडाइआक्साइड तथा पर्टिकुलेट मेंटर्स की संख्या खतरनाक स्तर को पा करती नजर आ रही है
जिसकी वजह से इन औद्योगिक क्षेत्र और जहरीला धुंआं उगलने वाली चिमनियों के आसपास रहने वाले रहवासियों में दमा, खांसी, इन्फेक्शन और आँखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं की भरमार है तो वहीं वायु प्रदूषण के कारण हजारों लोग प्रतिवष काल के गाल में समा रहे हैं यही नहीं प्रदूषण के कारण कुशल कामगारों के स्वास्थ्य में कमी, कार्यक्षमता घटकर हमारी प्रदेश की अर्थव्यस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर रहा है, तो वहीं शिशु मृत्यु दर एवं मातृ मृत्यु दर भी एक कारण बनता है। यही नहीं हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में इस तरह का खुलासा हुआ है
कि पर्यावरण और प्रकृति के दूषित होने से संक्रामक बीमारियां बढ़ती हैं जिनकी वजह से लोगों में डायबिटीज और कैंसर के साथ-साथ मोटापा जैसी बीमारियों की भरमार हो रही है, यही वजह है कि राज्य में दिनों दिन डायबिटीज और कैंसर जैसे रोगों से ग्रसित मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार पहले कभी जहां डायबिटीज से ६० साल से अधिक के लोगों को डायबिटीज होती थी तो अब वह १५ साल के बच्चों से लेकर ४० साल तक के लोगों को यह बीमारी हो रही है इसके पीछे विशेषज्ञ प्रदूषण के साथ-साथ उचित आहार-विहार न होना भी मान रहे हैं
तो वहीं पर्यावरण और प्राकृति के दूषित होने से इस तरह की संक्रामक बीमारियां बढऩे को मुख्य कारण मान रहे हैं कुल मिलाकर राज्य के पर्यावरण निवारण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर जो चर्चा इन दिनों आम है उससे तो यह साफ जाहिर है कि आनेवाले दिनों में जब प्रदेश के अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की योजना जब धरातल पर उतरेगी तो उसके तहत राज्य में उद्योग एवं विकास के नाम पर औद्योगिक इकाईयों का जो जाल पूरे प्रदेश में फैलेगा उसके बाद तो इस राज्य के नागरिकों की क्या स्थिति होगी इसको लेकर लोग चिंतित हैं
और यह कहते नजर आ रहे हैं कि जब अभी विंध्य क्षेत्र में प्रदूषण के कारण जो बच्चे पैदा हो रहे हैं वह तमाम बीमारियां लेकर आ रहे हैं तो वहीं शहडोल में प्रदूषण के कारण बच्चों में ठिगने होने की बाढ़ सी आ गई है आगे चलकर इसकी चपेट में पूरा प्रदेश होगा तब क्या स्थिति होगी लेकिन मजे की बात यह है कि राज्य के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली में जब वर्तमान में यह स्थिति है तो भविष्य क्या होगा इसको लेकर लोग चिंतित हैं।
भोपाल । १९७२ में प्रदेश में जिस उद्देश्य के साथ राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की स्थापना की गई थी लगता है ४४ वर्ष बाद भी राज्य के इस मण्डल द्वारा प्रदेश के नागरिकों के हितों की रक्षा न करते हुए अपने हितों की पूर्ति के लिये कुछ ज्यादा ही गंभीर दिखाई दिया, शायद इसका ही परिणाम है कि राज्य की विधानसभा में १९९७ में रायसेन जिले के सेहतगंज में स्थित सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा नदी में प्रदूषण संबंंधी याचिका क्रमांक २६४४ पर याचिका समिति का ३०वाँ प्रतिवेदन (भाग-दो) जो दिनांक एक मई १९९८ को विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत किया गया था उक्त रिपोर्ट में याचिका समिति के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में राज्य के प्रदूषण निवारण मण्डल के अधिकारियों के बारे में जो निष्कर्ध और अनुशंसाएं याचिका समिति द्वारा अपने प्रतिवेदन में दी गई थीं
वह आज भी १९ वर्ष बाद राज्य के इस बोर्ड के अधिकारियों पर अक्षरश: साबित होता नजर आ रहा है तभी तो राज्य का ग्वालियर जिला आज सर्वाधिक प्रदूषण की श्रेणी में है तो वहीं राज्य के विंध्य क्षेत्र के सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, सिंगरौली और चितरंगी में पैदा होने वाले बच्चे इस स्वर्णिम मध्यप्रदेश की धरती पर जन्म लेने के साथ ही प्रदूषण के कारण तमाम बीमारियां लेकर पैदा हो रहे हैं राज्य के जिस ग्वालियर को प्रदेश का सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर घोषित किया गया है,
प्रदेश के अन्य जिले भी ग्वालियर जैसे प्रदूषण की मार झेल रहे हैं जिनमें शहडोल, सिंगरौली, रीवा, सतना, कटनी, मैहर, नीमच, नागदा और दमोह और धार जिले में स्थापित सीमेंट फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाले जहरीले कण की मार इस प्रदेश का मानस झेलता नजर आ रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी राजधानी के निकट मण्डीदीप, पीलूखेड़ी भी प्रदूषण की श्रेणी में आते हैं तो वहीं राजधानी भोपाल के दोनों जलस्त्रोत प्रदूषण की चपेट में हैं जिस भोपाल के ताल की शान में अक्सर लोग यह कहा करते थे कि ताल तो भोपाल ताल बाकी सब तलैया रानी तो कमलापति बाकी हैं
रनईयां, उस ताल की शान को भी प्रदूषण निवारण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली के चलते अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है। यही स्थिति लगभग राज्य के अधिकांश जिलों की है जहाँ फसलों के अपशिष्टों के जलाये जाने से निकनले वाले धुंआ और उद्योग एवं विकास के नाम पर स्थापित चिमनियां इस प्रदेश की आबोहवा को दूषित करने में लगी हुई हैं। तो वहीं राज्य में सल्फरडाइआक्साइड तथा पर्टिकुलेट मेंटर्स की संख्या खतरनाक स्तर को पा करती नजर आ रही है
जिसकी वजह से इन औद्योगिक क्षेत्र और जहरीला धुंआं उगलने वाली चिमनियों के आसपास रहने वाले रहवासियों में दमा, खांसी, इन्फेक्शन और आँखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं की भरमार है तो वहीं वायु प्रदूषण के कारण हजारों लोग प्रतिवष काल के गाल में समा रहे हैं यही नहीं प्रदूषण के कारण कुशल कामगारों के स्वास्थ्य में कमी, कार्यक्षमता घटकर हमारी प्रदेश की अर्थव्यस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर रहा है, तो वहीं शिशु मृत्यु दर एवं मातृ मृत्यु दर भी एक कारण बनता है। यही नहीं हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में इस तरह का खुलासा हुआ है
कि पर्यावरण और प्रकृति के दूषित होने से संक्रामक बीमारियां बढ़ती हैं जिनकी वजह से लोगों में डायबिटीज और कैंसर के साथ-साथ मोटापा जैसी बीमारियों की भरमार हो रही है, यही वजह है कि राज्य में दिनों दिन डायबिटीज और कैंसर जैसे रोगों से ग्रसित मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार पहले कभी जहां डायबिटीज से ६० साल से अधिक के लोगों को डायबिटीज होती थी तो अब वह १५ साल के बच्चों से लेकर ४० साल तक के लोगों को यह बीमारी हो रही है इसके पीछे विशेषज्ञ प्रदूषण के साथ-साथ उचित आहार-विहार न होना भी मान रहे हैं
तो वहीं पर्यावरण और प्राकृति के दूषित होने से इस तरह की संक्रामक बीमारियां बढऩे को मुख्य कारण मान रहे हैं कुल मिलाकर राज्य के पर्यावरण निवारण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर जो चर्चा इन दिनों आम है उससे तो यह साफ जाहिर है कि आनेवाले दिनों में जब प्रदेश के अति लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सपनों के स्वर्णिम मध्यप्रदेश की योजना जब धरातल पर उतरेगी तो उसके तहत राज्य में उद्योग एवं विकास के नाम पर औद्योगिक इकाईयों का जो जाल पूरे प्रदेश में फैलेगा उसके बाद तो इस राज्य के नागरिकों की क्या स्थिति होगी इसको लेकर लोग चिंतित हैं
और यह कहते नजर आ रहे हैं कि जब अभी विंध्य क्षेत्र में प्रदूषण के कारण जो बच्चे पैदा हो रहे हैं वह तमाम बीमारियां लेकर आ रहे हैं तो वहीं शहडोल में प्रदूषण के कारण बच्चों में ठिगने होने की बाढ़ सी आ गई है आगे चलकर इसकी चपेट में पूरा प्रदेश होगा तब क्या स्थिति होगी लेकिन मजे की बात यह है कि राज्य के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अधिकारियों की कार्यप्रणाली में जब वर्तमान में यह स्थिति है तो भविष्य क्या होगा इसको लेकर लोग चिंतित हैं।
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