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भोपाल. आज 11 जनवरी 2017 की सुबह 11 बजे के करीब वो सांसें छोड़ चुका था, करीब 15 दिन सरकारी हमीदिया अस्पताल में बिमारी के दौरान बेसहारा की तरह पड़ा रहा, मात्र एक दो पत्रकार ने ही सुध ली और आज दोपहर खबर फैल गई की पत्रकार भवन भोपाल की कण कण की सुरक्षा और हर पत्रकार की सेवा में निशुल्क निस्वार्थ खड़ा रहने वाला कक्का नही रहे उनका अंतिम संस्कार होना है सभी पत्रकार भवन पहुंच जाये.
कक्का रमेश ठाकुर वो मानस रहे जो केवल 20 वर्ष की आयु में उस समय जब पत्रकार भवन भोपाल की नींव की पहली गेती चलाने और नींव का पहला पत्थर से लेकर आज पत्रकार भवन के खण्डहर होने तक के साक्षी रहा, सन 1969 से वो लगातार अपनी सेवायें देते रहे. सभी पत्रकार उन्हें कक्का कह कर बुलाते थे, कक्का का नाम रमेश ठाकुर था, पर वो कहा का रहने वाला था यह कोई नही जानता, उसके परिवार कहा है कौन है कोई नही ठीक से जानता, परन्तु कक्का का परिवार पत्रकार और निवास पत्रकार भवन और उसकी चार दिवार ही थी इससे आगे शायद वह कही गया भी नही. बस दिनरात पत्रकार भवन में आने जाने वालों को जानकारी और उनकी सेवा करना ही कक्का का काम था, पत्रकार भवन से लगाव इतना रहा की सरकारी नौकरी लगने के बाद भी वो उसे भी त्याग कर चला आया. जिसने पत्रकारों विरादरी की तीन पीढ़ी देखी. भोपाल का कौन सा बडे से छोटा पत्रकार होगा जो नही जानता कक्का को और कक्का उनको. पर जब अंत आया तो बेगानों की तरह बिना किसी को पेरशान किये कुछ 15 दिन के करीब अस्पताल में बेहोशी की हालत में गुजारे और आज अंतिम यात्रा के साथ चंद घंटो में विलीन हो गये.
शाम 4 बजे शव पत्रकार भवन से भदभदा विश्रामघाट ले जाया गया, पत्रकार भवन के बगल में ही दुकान चलाने वाले पप्पू चाय वाले ने पूरे विधि विधान से मुखाग्नि दी और उसके साथ चार लोगों ने कंधा दिया.
13 जनवरी को होशंगाबाद में अस्थ विसर्जन एवम् 23 जनवरी को पत्रकार भवन में आत्मशांति हेतु प्रसादी रखी गई है।
शव दाह के समय जन सम्वेदना के श्री आर एस अग्रवाल, पत्रकार भवन के डायरेक्टर श्री अवधेश भार्गव, पत्रकार भवन के उपाध्यक्ष विनय जी डेविड़, दैनिक सुबह सबेऱे के आशीष दुबे, म.प्र.श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रतिनिधि अरशद अली खान, शिशुपाल तोमर, आइसना के जितिन त्रिवेदी, जितेन्द्र भार्गव, एस आर पत्रिका के एम डी संजय रायजादा, पत्रकार विनोद श्रीवास्तव, पत्रकार आर डी सक्सेना, व रमेश कक्का पांच के सहयोगी में शामिल हुये।
रमेश कक्का के अंत के समय एक पत्रकार न होता तो कक्का को ये सम्मान भी न मिलता और लावारिश की तरह कक्का कही यू्ंही घूम हो जाते, कोई तो है जिसने उस कर्ज को फर्ज समझकर अदा किया और कर रहा है एेसी सच्ची शक्ति को मेरा नमन.
पर वक्त देखिये अब सब होगा पर कक्का जैसा सेवक नही होगा जिसने पूरी जिंदगी सबको चाय पानी पान गुटको का सेवन ला लाकर कराया, उसने कक्का को अंत समय में एक कप चाय और एक घूंट पानी भी नही पिलाया...
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