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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर लगा सहारा-बिरला घूस का मामला खत्म हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ कॉमन कॉज़ की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें प्रधानमंत्री की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाले विशेष जांच दल से करवाने की मांग की गई थी. इसके साथ ही इस मामले में राजनीतिक फायदा उठाने की कांग्रेस और आप की कोशिशें भी दम तोड़ चुकी हैं.
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यों वाली बेंच, जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा और अमिताव रॉय शामिल थे, ने इस मामले में पेश दस्तावेजों को पर्याप्त और ठोस साक्ष्य मानने से इनकार कर दिया. इन दस्तावेजों में प्रधानमंत्री मोदी के साथ अन्य कई नेताओं का नाम शामिल है. अन्य नेताओं में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम प्रमुख हैं.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता प्रशांत भूषण अदालत के इस फैसले से सहमत नहीं हैं. कोर्ट के फैसले पर कठोर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कैच से एक विस्तृत बातचीत में बताया, 'बड़े और ताकतवर लोगों के मामलों की सुनवाई करने वाले जजों के हाथ-पांव फूल जाते हैं.'
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इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच में शुरुआथ में देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर भी शामिल थे. हालांकि उन्होंने मामले की अंतिम सुनवाई से पहले खुद को इस मामले से अलग कर लिया था.
दो सदस्यों वाली बेंच ने अपने निर्णय में कहा, 'अगर इस तरह के अधकचरे सबूतों के आधार पर जांच का आदेश दिया जाएगा तो संवैधानिक पदों पर बैठे लोग काम ही नहीं कर पाएंगे और लोकतंत्र में कुछ भी सुरक्षित नही रह जाएगा.' कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऊंचे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ बिना ठोस सबूत के जांच के आदेश दे दिए गए तो लोकतंत्र में कामकाज रुक जाएगा.
प्रशांत भूषण ने कहा, 'कोर्ट का फैसला देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और ईमानदारी की लड़ाई लड़ रहे लोगों के लिए बड़ा झटका है.' भूषण के मुताबिक इस फैसले के बाद सत्ता में बैठे ताकतवर लोगों के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद उन्हें एक सुरक्षा कवच मिल जाएगा.
भूषण ने एक और दिलचस्प जानकारी कैच से साझा की कि सहारा-बिरला मामले के कुछ दस्तावेज उन्हें उनके पुराने साथी अरविंद केजरीवाल ने भी मुहैया करवाए थे. गौरतलब है कि आप के संस्थापक सदस्य रहे प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव के बाद रिश्ते टूट चुके हैं.
इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच में शुरुआथ में देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर भी शामिल थे. हालांकि उन्होंने मामले की अंतिम सुनवाई से पहले खुद को इस मामले से अलग कर लिया था.
दो सदस्यों वाली बेंच ने अपने निर्णय में कहा, 'अगर इस तरह के अधकचरे सबूतों के आधार पर जांच का आदेश दिया जाएगा तो संवैधानिक पदों पर बैठे लोग काम ही नहीं कर पाएंगे और लोकतंत्र में कुछ भी सुरक्षित नही रह जाएगा.' कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऊंचे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ बिना ठोस सबूत के जांच के आदेश दे दिए गए तो लोकतंत्र में कामकाज रुक जाएगा.
प्रशांत भूषण ने कहा, 'कोर्ट का फैसला देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन और ईमानदारी की लड़ाई लड़ रहे लोगों के लिए बड़ा झटका है.' भूषण के मुताबिक इस फैसले के बाद सत्ता में बैठे ताकतवर लोगों के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद उन्हें एक सुरक्षा कवच मिल जाएगा.
भूषण ने एक और दिलचस्प जानकारी कैच से साझा की कि सहारा-बिरला मामले के कुछ दस्तावेज उन्हें उनके पुराने साथी अरविंद केजरीवाल ने भी मुहैया करवाए थे. गौरतलब है कि आप के संस्थापक सदस्य रहे प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव के बाद रिश्ते टूट चुके हैं.
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