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असल मकसद संविधान के बदले मनुस्मृति विधान लागू करने का है! संभव है कि भीम ऐप के बाद शायद नोट पर गांधी को हटाकर मोदी के बजाय बाबासाहेब की तस्वीर लगा दी जाये!
पलाश विश्वास
याद करें कि नोटबंदी की शुरुआत में ही हमने लिखा था कि नोटबंदी का मकसद नोट से गांधी और अशोक चक्र हटाना है।
हमारे हिसाब से आता जाता कुछ नहीं है।गांधी की तस्वीर को लेकर जो तीखी प्रतिक्रिया आ रही हैं,जनविरोधी नीतियों के बारे में कोई प्रतिक्रिया सिरे से गायब है।
तस्वीर को लेकर हंगामा बरपा है
कत्लेआम से बेपरवाह सियासत है
बैंक से कैश निकालने पर टैक्स लगाने की योजना नोटबंदी का अगला कैसलैस डिजिटल चरण है जबकि ट्रंप सुनामी से तकनीक का हवा हवाई किला ध्वस्त होने को है।इसके साथ ही तमाम कार्ड खारिज करके आधार पहचान के जरिये लेनदेन लागू करने का तुगलकी फरमान है,जिसपर राजनीति आधार योजना सन्नाटा दोहरा रही है।
सीएनबीसी-आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम को लागू करने में आ रही बड़ी अड़चन दूर हो गई है। आधार बेस्ड फिंगर प्रिंट स्कैनर के जरिये पेमेंट लेने वाले व्यापारियों को 0.25-1 फीसदी तक का कमीशन मिलेगा। यूआईडीएआई के मुताबिक आधार बेस्ड ट्रांजैक्शन अपनाने के लिए दुकानदारों को कोई चार्ज नहीं देना पड़ेगा, ना ही उन्हें पीओएस मशीन का खर्च लगेगा।सूत्रों के मुताबिक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईडीएफसी बैंक और इंडसइंड बैंक ने आधार पर आधारित पेमेंट सिस्टम तैयार कर लिया है जबकि आईसीआईसीआई बैंक और पीएनबी समेत 11 और बैंक भी इसकी तैयारी में लगे हैं। आधार सिस्टम के जरिये पेमेंट करने के लिए सिर्फ आधार नंबर और बैंक चुनने की जरूरत होगी।
सरकारी पेमेंट एप्लिकेशन भीम को मिल रहे बढ़िया रिस्पांस से उत्साहित सरकार आधार पे सिस्टम को जल्द से जल्द लागू करना चाहती है। सीएनबीसी-आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आधार पे सिस्टम को अलग से नहीं बल्कि भीम के प्लेटफॉर्म पर ही इस महीने के आखिर तक लॉन्च किया जाएगा।
जब डिजिटल कैशलैस के लिए भीमऐप है तो गांधी को हटाकर अंबेडकर की तस्वीर लगाकर संघ परिवार को बहुजनों का सफाया करने से कौन रोकेगा?
बहुजनों को केसरिया फौज बनाने के लिए जैसे कैशलैस डिजिटल इंडिया में भीमऐप लांच किया गया है,वैसे ही बहुत संभव है कि जब गांधी के नाम वोट बैंक या चुनावी समीकरण में कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं है तो भीम ऐप के बाद शायद नोट पर गांधी को हटाकर मोदी के बजाय बाबासाहेब की तस्वीर लगा दी जाये।
बाबासाहेब के मंदिर भी बन रहे हैं।बाबासाहेब गांधी के बदले नोट पर छप भी जाये तो गांधी और अशोकचक्र से छेड़छाड़ का मतलब भारतीय संविधान के बदले मनुस्मृति विधान लागू करने का आरएसएस का एजंडा ग्लोबल कारपोरट हिंदुत्व का है।राजनीतिक विरासत की इस लड़ाई पर नजर डालें तो नेहरू, इंदिरा की विरासत को दरकिनार करने की कोशिश नजर आती है। मोदी सरकार ने अपनी इस निति के तहत आंबेडकर पर जोरशोर से कार्यक्रम किए। वल्लभ भाई पटेल की याद में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की योजना है। बीजेपी का जेपी की जयंती बड़े पैमाने पर मनाने फैसला है। नेहरू संग्रहालय की काया-पलट करने की योजना है।
बंगाल में भी बहुजनों का केसरिया हिस्सा इस उम्मीद में है कि यूपी जीतने के बाद नोटों से गांधी हट जायेंगे और वहां बाबासाहेब विराजमान होंगे।बहुजनों को गांधी से वैसे ही एलर्जी है जैसे वामपक्ष को अंबेडकर से अलर्जी रही है।
बंगाल में बहुजनों के दिमाग को दही बनाने के लिए मोहन भागवत पधारे हैं।
गांधी के बदले नोट पर अंबेडकर छापने की बात को अबतक हम मजाक समझ रहे थे।यूपी में यह ख्वाब चालू है या नहीं,हम नहीं जानते।मगर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता अनिल विज के बयान से साफ जाहिर है कि नोट से गांधी की तस्वीर हटने ही वाली है,चाहे नई तस्वीर मोदी की हो या अंबेडकर की।
अंबेडकर की तस्वीर लगती है तो बहुजन वोटबैंक का बड़ा हिस्सा एक झटके से केसरिया हो जाने वाला है।संघ सरकार के मंत्री यूं ही कोई शगूफा छोड़ते नहीं है।
हर शगूफा का एक मकसद होता है।मोदी की तस्वीर लगे या न लगे,साफ है कि करेंसी से गांधी हटेंगे और उसके बाद अशोकचक्र भी खारिज होगा।फिर हिंदू राष्ट्र के लिए सबसे बड़े सरदर्द भारत के संविधान का हिसाब किताब बराबर किया जाना है।जिसके लिए संघ परिवार ने नोटबंदी का गेमचेंजर चलाया हुआ है और तुरुप का पत्ता समाजवादी सत्ता विमर्श है।
महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने एकदम सही कहा है कि भ्रष्ट नेता गलत कामों में जिस तरह से रुपयों का इस्तेमाल करते हैं उससे तो अच्छा ही है कि अगर नोटों से बापू की तस्वीर हटा दी जाए।उनकी यह टिप्पणी हरियाणा के उन्हीं स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता अनिल विज उस विवादित बयान पर आई है, जिसमें उन्होंने आज कहा है कि जब से महात्मा गांधी की फोटो नोट पर लगी है, तब से नोट की कीमत गिरनी शुरू हो गई।
गौरतलब है कि विज ने अपने बयान में कहा कि महात्मा गांधी का नाम खादी से जुड़ने के कारण इसकी दुर्गति हुई। खादी के बाद अब धीरे-धीरे नोटों से भी गांधी जी की तस्वीर हट जाएगी।उन्होंने मोदी को गांधी से बड़ा ब्रांड बताते हुए खादी से हटाने के बाद नोट से बी गांधी को हटाकर मोदी की तस्वीर लगाने की बात भी कह दी है। विज ने कहा है कि खादी के बाद अब धीरे-धीरे नोटों पर से भी गांधी जी की तस्वीर हटाई जाएगी। उन्होंने कहा कि गांधी जी के चलते रूपये की कीमत गिर रही है। साथ ही विज ने कहा कि गांधी के नाम से खादी पेटेंट नहीं है बल्कि खादी के साथ गांधी का नाम जुड़ने से खादी डूब गई है। वहीं उन्होंने कहा है कि खादी के लिए पीएम मोदी ज्यादा बड़े ब्रैंड एंबेसडर हैं।हालांकि उनके बयान से भाजपा ने किनारा कर लिया है और उसे उनका व्यक्तिगत बयान करार दिया। विवाद बढ़ता देख विज ने अपना बयान वापस ले लिया।
मीडिया केमुताबिक खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर में महात्मा गांधी की जगह पीएम मोदी की तस्वीर लगाने पर केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने सफाई दी है। कलराज मिश्र ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि केलेंडर में पीएम का फोटो कैसे लगी। गांधी की बराबरी कोई नहीं कर सकता। इधर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि मोदी की तस्वीर को लेकर बेकार का विवाद पैदा किया जा रहा है। बीजेपी की सफाई है कि कैलेंडर पर गांधी की तस्वीर 7 बार पहले भी नहीं छपी है। पीएम मोदी ने खादी को बढ़ावा दिया है। पीएम ने खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन का नारा दिया। यूपीए के दौर में खादी की बिक्री में औसतन 5 फीसदी बढ़ी जबकि मोदी सरकार आने के बाद बिक्री 35 फीसदी बढ़ी है। मोदी सरकार गांधी दर्शन को घर-घर पहुंचा रही है।
इससे पहले तुषार गांधी ने खादी ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के डायरी-कैलेंडर विवाद के बीच शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “प्रधानमंत्री पॉलीवस्त्रों के प्रतीक हैं जबकि बापू ने अपने बकिंघम पैलेस के दौरे के दौरान खादी पहनी थी न कि 10 लाख रुपये का सूट।”
उन्होंने केवीआईसी को बंद करने की मांग करते हुए कहा, “हाथ में चरखा, दिल में नाथूराम। टीवी पर ईंट का जवाब पत्थर से देने में कोई बुराई नहीं है।”
तुषार गांधी अपने ट्वीट में बापू की 1931 की ब्रिटेन यात्रा का हवाला दे रहे थे जब उन्होंने ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी से मुलाकात की थी उन्होंने खादी की धोती और शॉल पहन रखा था।मोदी ने इसकी तुलना में भारत में राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा के दौरान विवादास्पद 10 लाख रुपये का सूट पहना था।
तुषार ने इससे पहले ट्वीट कर कहा था, “तेरा चरखा ले गया चोर, सुन ले ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम। पहले, 200 रुपये के नोट पर बापू की तस्वीर गायब हो गई, अब वह केवीआईसी की डायरी और कैलेंडर से नदारद हैं। उनकी जगह 10 लाख रुपये का सूट पहनने वाले प्यारे प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है।”
गौरतलब है कि केवीआईसी के 2017 के डायरी और कैलेंडर पर गांधी की जगह मोदी की तस्वीर छापे जाने पर सरकार और केवीआईसी को तमाम राजनीतिक दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
हम नोटबंदी के बाद भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के खतरों से आपको लगातार आगाह करते रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) ने भी बेरोजगारी बढ़ने का अंदेशा जता दिया है।अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली को हिंदुत्व के ग्लोबल एजंडे और मनुस्मृति संविधान के लिए जिस तरह दांव पर लगाया गया है,रोजगार खोकर भारत की जनता को उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
2017-2018 के बीच भारत में बेरोजगारी में मामूली इजाफा हो सकता है और रोजगार सृजन में बाधा आने के संकेत हैं। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) ने 2017 में वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक दृष्टिकोण पर गुरुवार को अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है और इसमें पूरे 2017 के दौरान बेरोजगारी बढऩे तथा सामाजिक असमानता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई है। वर्ष 2017 और 2018 में भारत में रोजगार सृजन की गतिविधियों के गति पकडऩे की संभावना नहीं है क्योंकि इस दौरान धीरे-धीरे बेरोजगारी बढ़ेगी और प्रतिशत के संदर्भ में इसमें गतिहीनता दिखाई देगी।
भारतीय पेशेवरों को लगेगा झटका
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इमिग्रेशन पॉलिसी में बदलाव के संकेत का असर उनका टर्म शुरू होने के पहले दिन से ही दिखने वाला है। इससे सबसे ज्यादा झटका अमरीका में जॉब्स की मंशा रखने वाले भारतीयों को लगेगा। ट्रम्प 20 जनवरी को अमरीका के राष्ट्रपति का पद संभालेंगे। ट्रम्प ने एच1बी वीजा के नियमों को कड़ा करने की पैरवी करने वाले जेफसेसंस को अटॉर्नी जनरल की पोस्ट के लिए चुना है। ट्रम्प के शपथ ग्रहण करने से पहले 2 अमरीकी सांसदों ने एक बिल पेश किया है जिसमें वीजा प्रोग्राम में बदलाव की मांग की है। इस बिल में कुछ ऐसे प्रस्ताव हैं जिनका सीधा असर इंडियन वर्कर्स पर हो सकता है। अमरीकी सांसदों द्वारा पेश किए गए बिल ‘प्रोटैक्ट एंड ग्रो अमरीकन जॉब्स एक्ट’ में एच1बी वीजा के लिए एलिजिबिलिटी में कुछ बदलाव का प्रस्ताव है।
बिल में क्या बदलाव होने हैं
ह्यबिल में एच1बी एप्लीकेशन के लिए मास्टर डिग्री में छूट को हटाने की मांग की गई है। इससे मास्टर या इसी जैसी दूसरी डिग्री होने पर एडीशनल पेपरवर्क से राहत मिलेगी। अमरीका जाने वाले ज्यादातर आई.टी. प्रोफैशनल्स के पास मास्टर डिग्री होती है। ह्य50 इम्प्लाइज से ज्यादा वाली कम्पनियों में अगर 50 प्रतिशत एच1बी या एल1 वीजा वाले हैं तो ऐसी कम्पनियों को ज्यादा हायरिंग से रोका जाए। एच1बी वीजा की मिनिमम सैलरी एक लाख डॉलर सालाना होनी चाहिए। अभी यह 60,000 डॉलर सालाना है। एच1बी वीजा वर्कर के लिए मिनिमम सैलरी 1 लाख डॉलर सालाना करने से अमरीका में कम्पनियां भारतीय आई.टी. प्रोफैशनल्स की हायरिंग कम करेंगी। इनकी जगह वे अमरीकी वर्कर्स को ही तरजीह देंगी।भारतीयों पर पड़ेगा असरह्य85,000 से ज्यादा एच1बी वीजा सालाना जारी करता है अमरीका70 से 75 हजार ऐसे वीजा भारतीय आई.टी. पेशेवरों को मिलते हैंह्य1 लाख डॉलर के सालाना वेतन की अनिवार्यता की विदेशी कर्मियों के लिए।
2017 में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ रहेगी
रिपोर्ट के अनुसार आशंका है कि पिछले साल के 1.77 करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल 1.8 करोड़ हो सकती है। प्रतिशत के संदर्भ में 2017-18 में बेरोजगारी दर 3.4 प्रतिशत बनी रहेगी। वर्ष 2016 में रोजगार सृजन के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन थोड़ा अच्छा था। रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि 2016 में भारत की 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर ने पिछले साल दक्षिण एशिया के लिए 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने में मदद की है। रिपोर्ट के अनुसार विनिर्माण विकास ने भारत के हालिया आर्थिक प्रदर्शन को आधार मुहैया कराया है।
वैश्विक श्रम बल में लगातार बढ़ौत्तरी
वैश्विक बेरोजगारी दर और स्तर अल्पकालिक तौर पर उच्च बने रह सकते हैं क्योंकि वैश्विक श्रम बल में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। विशेषकर वैश्विक बेरोजगारी दर में 2016 के 5.7 प्रतिशत की तुलना में 2017 में 5.8 प्रतिशत की मामूली बढ़त की संभावना है। आई.एल.ओ. के महानिदेशक गाइ राइडर ने कहा कि इस वक्त हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण उत्पन्न क्षति एवं सामाजिक संकट में सुधार लाने और हर साल श्रम बाजार में आने वाले लाखों नव आगंतुकों के लिए गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के निर्माण की दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं। आई.एल.ओ. के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के मुख्य लेखक स्टीवेन टॉबिन ने कहा कि उभरते देशों में हर 2 श्रमिकों में से एक जबकि विकासशील देशों में हर 5 में से 4 श्रमिकों को रोजगार की बेहतर स्थितियों की आवश्यकता है। इसके अलावा विकसित देशों में बेरोजगारी में भी गिरावट आने की संभावना है और यह दर 2016 के 6.3 प्रतिशत से घटकर 6.2 प्रतिशत तक हो जाने की संभावना है।
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