झूठ का पर्दाफाश रोज रोज,पढ़े लिखे लोग सच के हक में क्यों नहीं है?
अब समझ लीजिये कि हिंदुत्व का एजंडा कितना हिदुत्व का है और कितना कारपोरेट का।जाहिर है कि कारपोरेट कारिंदों की बोलती बंद है।
पलाश विश्वास // toc news
खेती खत्म हुई और ढोर डंगर शहरों में बस गये हैं।गोबर ही गोबर चारों तरफ और सारे बैल बधिया हैं।सारे सींग गायब हैं।बाकी सबकुछ पूंछ है।मूंछ भी इन दिनों पूंछ है।अब बारी पिछवाड़े झाड़ू की है।गले में मटका हो नहो,गोमाता की तर्ज पर कानों में आधार नंबर टैग है।कैशलैस डिजिटल इंडिया की यह तस्वीर विचित्र किंतु सत्य है।
शुतुरमुर्ग रेत की तूफां गुजर जाने के बाद फिरभी सर खड़ा कर लें भले,इस कयामती फिजां में देह से रीढ़ गायब है।
आसमान जल रहा है।न आग है, न धुआं है।
रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया कि नोटबंदी की सिफारिश प्रधानमंत्री के आदेश से की गयी थी।इससे पहले आरटीआई सवाल से साफ हो चुका है कि राष्ट्र के नाम संबोधन से ऐन पहले यह सिफारिश की गयी।
यह भी साफ हो चुका है कि राष्ट्र के नाम यह संबोधन रिकार्डेड था।
सरकारी दावा भी बजरिये मीडिया यही था कि प्रधानमंत्री ने अकेले दम अपनी खास टीम को लेकर नोटबंदी को अंजाम दिया।
उस टीम में वित्तमंत्री या रिजर्व बैंक के गवर्नर के नाम कहीं नजर नहीं आये। महीनों पहले से अखबारों में नोट रद्द करने की खबर थी और नोटबंदी से पहले संघियों के हाथों में बगवे ध्वज की तरह नये नोट लहरा रहे थे।
जाहिर है कि वित्तमंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर को अंधेरे में रखकर नोटबंदी का फैसला हुआ और नोटबंदी के लिए आरबीआई कानून के तहत रिजर्वबैंक की अनिवार्य सिफारिश भी रिजर्व बैंक की सिफारिश नहीं थी,यह प्रधानमंत्री के फरमान पर खानापूरी करके कायदे कानून को ताक पर रखने का बेनजीर कारनामा है।
रिजर्व बैंक जाहिर है कि यह बताने की हालत में नहीं है कि नोटबंदी की सिफारिश आखिरकार किन महान अर्थशास्त्रियों या विशेषज्ञों ने की है।
हम शुरु से लिख रहे हैं।हस्तक्षेप पर के पुराने तमाम आलेख 8 नवंबर से पढ़ लीजियेः
नोटबंदी का फैसला बगुलाछाप संघी विशेषज्ञों ने किया है।
राष्ट्र के नाम संबोधन रिकार्डेड था।
रिजर्व बैंक के गवर्नर,मुख्य आर्थिक सलाहकार और वित्तमंत्री को भी कोई जानकारी नहीं थी और न जनता की दिक्कतों को सुलझाने के लिए किसी किस्म की कोई तैयारी थी।
कालाधन निकालने के लिए नहीं,हिंदुत्व के कारपोरेट एजंडे के तहत डिजिटल कैशलैस इंडिया बनाकर कारपोरेट कंपनी माफिया राज कायम करने के लिए नस्ली नरसंहार का यह कार्यक्रम है।
कतारों में कुछ ही लोग मरे हैं लेकिन कतारों से बाहर करोड़ों लोगों को बेमौत मार दिया है फासिज्म के राजकाज ने।
राजनीतिक मकसद यूपी दखल है।यह आम जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है।कार्पेट बमबारी है।रामंदिर आंदोलन रिलांच है।आरक्षण विरोधी आंदोलन भी रिलांच है।यूपी जीतकर संविधान के बदले मनुस्मृति लागू करने के लिए यह नोटबंदी बहुजनों का सफाया है।
इससे उत्पादन प्रणाली तहस नहस होनी है।
अर्थव्यवस्था का बाजा बजना है और विकास गति गिरनी है।कारोबार से करोड़ों लोग बेदखल होंगे।हाट बाजार के बदले शापिंग माल मालामाल होंगे।
नोटबंदी पहले से लीक कर दिये जाने से सारा कालधन सफेद हो गया है और देश गोरों के कब्जे में डिजिटल सकैशलैस है।
करोडो़ं लोग बेरोजगार होंगे और अनाज की पैदावार कम होने से भुखमरी के हालात होगें।देश में कारोबार उद्योग तहस नहस होने,हाट बाजार खत्म होने से आगे भारी मंदी है।
हम लगातार आपको रियल टाइम में हर उपलब्ध जानकारी और उनका विश्लेषण पेश कर रहे हैं।
सरकार ने नोटबंदी लागू करने के लिए रिजर्व बैंक से सिफारिश वसूली है।
अब रिजर्व बैंक ने माना है कि नोटबंदी के ठीक एक दिन पहले सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोट की कानूनी वैधता खत्म करने के बारे में उसे विचार करने को कहा था। केंद्रीय बैंक के इस रुख का जिक्र संसद की लोक लेखा समिति यानी पीएसी के सामने पेश किए दस्तावेज में किया गया है। हालांकि सरकार अभी तक कहती रही है कि रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की संस्तुति के आधार पर ही कैबिनेट ने नोटबंदी के प्रस्ताव पर मुहर लगायी। नोटबंदी को लेकर रोज नए तथ्य सामने आ रहे हैं। ताजा मामला रिजर्व बैंक की ओर से संसद की लोक लेखा समिति के सामने पेश किए गए बैंकग्राउंड नोट्स से जुड़ा है।
नोटबंदी पर रिजर्व बैंक द्वारा संसद की एक समिति को भेजे पत्र में कहा गया है कि यह सरकार थी जिसने उसे 7 नवंबर को 500 और 1000 का नोट बंद करने की सलाह दी थी। केंद्रीय बैंक के बोर्ड ने इसके अगले दिन ही नोटबंदी की सिफारिश की। रिजर्व बैंक ने संसद की विभाग संबंधी वित्त समिति को भेजे सात पृष्ठ के नोट में कहा है कि सरकार ने रिजर्व बैंक को 7 नवंबर, 2016 को सलाह दी थी कि जाली नोट, आतंकवाद के वित्तपोषण तथा कालेधन, इन तीन समस्याओं से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल को 500 और 1000 के ऊंचे मूल्य वाले नोटों को बंद करने पर विचार करना चाहिए।हुक्म उदूली की हिम्मत किसे थी?
हर झूठ का पर्दाफाश हो रहा है।फिरभी देश के सबसे पढ़े लिखे लोग,स्टार सुपरस्टार खामोश हैं और सत्ता हित में बजरंगी बनकर जनता के खिलाफ मोर्चाबंद हैं।
नोटबंदी सिरे से फ्लाप है और बेशर्म फरेबी छत्तीस इंच के सीने का अब भी दावा है कि भारत दुनिया का ग्रोथ इंजन है और जल्द ही ये दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल इकॉनोमी बनकर उभरेगा।
कालाधन कितना निकला है,नोटबंदी की तैयारियां क्यों नहीं थी और आम जनता को इतनी दिक्कतें क्यों दो महीने पूरे होने के बावजूद जारी हैं,इन सारे सवालों का जवाब डिजिटल कैशलैस इंडिया है।
सपनों के सौदागर की बाजीगरी की बलिहारी,आम जनता अर्थव्यवस्था और संविधान नहीं समझती,कानूनी बारीकियों से भी वे अनजान हैं,वोट डालते हैं लेकिन राजनीति भी नहीं समझती है आम जनता।
जो लोग समझते हैं, आखिर वे क्यों खामोश हैं?
जबाव कुछ इस प्रकार हैःरिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी अगुवाई में देश तेजी से बदल रहा है। रतन टाटा ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में देश तरक्की कर रहा है और वाइब्रेंट समिट से गुजरात देश को नई राह दिखा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने बताया कि गुजरात तेजी से डिजिटल होने की तरफ बढ़ रहा है।इधर अदानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदानी ने गुजरात में 49,000 करोड़ रुपये निवेश का एलान किया है। गौतम अदानी के मुताबिक अगले 5 साल में 49,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे और इससे 25,000 लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं, वाइब्रेंट समिट में शिरकत करने आए सुजुकी के सीईओ तोशीहीरो सुजुकी ने कहा है कि गुजरात उनके लिए काफी अहम है। कंपनी अपने गुजरात प्लांट की क्षमता भी बढ़ाएगी।
अब समझ लीजिये कि हिंदुत्व का एजंडा कितना हिदुत्व का है और कितना कारपोरेट का।जाहिर है कि कारपोरेट कारिंदों की बोलती बंद है।
आधार को अनिवार्य बनाने पर सुप्रीम कोर्ट का निषेध है।सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी,2017 के अपने आदेश में प्राइवेट और विदेशी एजंसियों के नागरिकों के बायोमैट्रीक डैटा बटोरने पर रोक लगा दी है।इससे पहले अनिवार्य सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने पर भी सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा जारी है।लेकिन नोटबंदी के बाद नागरिकों की बायोमेट्रीक आधार पहचान के जरिये लेनदेन का फतवा जारी हो गया है।यह सारा लेन देन इंटरनेट की विदेशी कतंपनियों के अलावा देशी कारपोरेट कंपनियों के प्लेटफार्म से होगा।जबकि डिजिटल लेनदेन पर गुगल अभी काम कर ही रहा है ,इसी बीच डिजिटल लेनदेन के लिए चालू एटीएम,डेबिट और क्रेडिट कार्ड को 2020 तक खत्म करने का ऐलान भी हो गया है।
गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद जिस तरह से केंद्र सरकार डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा दे रही है। उसमें आधार का एक अहम रोल बनता नजर आ रहा है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी आधार आधारित भुगतान प्रणाली के तहत ‘आधार पे’ एप से भुगतान करते वक्त सिर्फ बैंक का नाम बताना होगा। इसके बाद अपना आधार नंबर बताकर आसानी से कैशलेस भुगतान कर सकेंगे। अंतिम चरण में आप थंब इंप्रेशन लगा कर भुगतान सुनिश्चित कर सकते हैं। अंगूठे के निशान का मिलान होते ही बताये गये बैंक के खाते से पैसा दुकानदार के अकाउंट में डेबिट हो जायेगा।
पता नहीं,इसके बाद क्या क्या हो जायेगा।
जान माल की कोई गारंटी नहीं है।
सुरक्षा इंतजाम ठीकठाक है और पूरी देश गैस चैंबर है।
कतार में मर रहे रहे हैं लोग।
खेतों और कारखानों में मर रहे हैं लोग।
चायबागानों में मर रहे हैं लोग।
समुंदर और हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर मर रहे हैं लोग।
अब मरने के सिवाय क्या करेंगे लोग?
मौतों का जिम्मेदार कौन है?
उत्तर में सारे देव देवी मौन हैं।
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का जलवा यह है कि मोबाइल नंबर के लिए आधार, पासपोर्ट के लिए आधार, पेमेंट के लिए आधार, सब्सिडी के लिए आधार और बैंक अकाउंट के लिए भी आधार....यहां तक कि एग्जाम में बैठने के लिए भी आधार जरूरी है। इसके अलावा अब तो कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने अपने 50 लाख पेंशनभोगियों और करीब 4 करोड़ अंशधारकों के लिए इस महीने यानी जनवरी के आखिर तक आधार संख्या उपलब्ध कराना अनिवार्य कर दिया है। जिन अंशधारकों या पेंशनभोगियों के पास आधार नहीं है, उन्हें महीने के आखिर तक सबूत देना होगा कि उन्होंने इसके लिए आवेदन कर दिया है। कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस), 1995 के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए पेंशनरों और इसके मौजूदा सदस्यों के लिए आधार कार्ड प्रस्तुत करना अब अनिवार्य कर दिया गया है।
यही नहीं,अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को मनरेगा में रोजगार पाने के लिए अपना आधार कार्ड दिखाना होगा। नई दिल्ली। अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को मनरेगा में रोजगार पाने के लिए अपना आधार कार्ड दिखाना होगा। 1 अप्रेल से महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में काम करने के लिए सभी को आधार नंबर दर्ज करवाना जरूरी होगा। 31 मार्च तक मनरेगा कर्मचारियों को देना होगा आधार कार्ड. जितने भी लोगों का नाम मनरेगा में दर्ज है उन सभी को 31 मार्च तक अपना आधार कार्ड नंबर बताना होगा।
गौरतलब है कि 2020 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का संघ परिवार का एजंडा है।इसके मुताबिक डिजिटल कैशलैस इंडिया ही संघ परिवार का हिंदू राष्ट्र है,जिसमें आजीविका,रोजगार, संसाधनों उद्योग कारोबार, बिजनेस ,इंडस्ट्री,इकोनामी पर कारपोरेट नस्ली एकाधिकार और बहुसंख्य जनगण का नस्ली नरसंहार का कार्यक्रम है।
राजनीति तो जनता के विरुद्ध हैं।राजनीतिक वर्ग करोड़पतियों,अरबपतियों और खरब पतियों का सत्ता वर्ग है।
अराजनीतिक लोग क्या हैं?
हमारे स्टार सुपरस्टार असल में क्या हैं?
लेखक कवि कलाकार वैज्ञानिक अर्थशास्त्री वकील डाक्टर प्रोफेसर नौकरीपेशा तमाम भद्रजन,रंगक्रमी वगैरह वगैरह क्यों खामोश हैं?
किताबों की तस्वीर,अलबम पोस्ट करने वाले लोग नोटबंदी पर खामोश क्यों हैं?
नमो बुद्धाय,जयभीम का जाप करने वाले खामोश क्यों हैं?
बाबासाहेब का अलाप खामोश क्यों है?
जब समांतर और कला फिल्मों,संगीत,चित्रकला,थिएटर के जनप्रतिबद्ध रचानकर्म और सामाजिक यथार्थ को गरीबी का कारोबार या सवर्ण कलाकर्म कहा जाता है,तो देशभक्त और बहुजन बिरादरी क्यों चुप हैं?
दिवंगत कलाकार ओमपुरी की सेना संबंधी टिप्पणी पर बवाल मचा था।जो लोग सेना को देशबक्ति और त्याग का पैमाना मानते हैं,सलवा जुड़ुम और आफ्सा से लेकर रक्षा सौदों में दलाली तक को राष्ट्रवाद की पवित्रता से जोड़ते हैं,वे लोग रक्षा आंतरिक सुरक्षा के निजीकरण और विनिवेश पर भी खामोश रहे हैंं।अब बीएसएफ के जवान तेजबहादुर ने खुला पत्र लिखकर,वीडियो जारी करके जवानों के साथ हो रहे बर्ताव का जो कच्चा चिट्ठा खोल दिया है,उसपर भी वे लोग खामोश क्यों हैं?
वैसे तो जय जवान जय किसान का नारा हिंदुस्तान की सरजमीं पर बुलंद है।जवान की तस्वीर देख कर ही हम में देशप्रेम जाग उठता है। लेकिन जब ऐसा ही एक जवान ने बेबस होकर अपनी आवाज उठाए तो उसके अफसरों को अचानक एक शराबी, अनुशासनहीन, दिमाग से हिला हुआ आदमी दिखने लगा । तेज बहादुर यादव ने बड़ा रिस्क लेकर देश को बताया कि सीमा पर पोस्टिंग के दौरान किस घटिया स्तर का खाना मिलता है। इस बहादुरी के बदले आज बीएसएफ हर तरह से तेज बहादुर की रेप्यूटेशन खराब करने में लगी है।
किसानों और व्यापारियों का बेड़ गर्क हो गया है।अर्थव्यवस्था पटरी से बाहर है।विकास दर तेजी से घटने लगी है सिर्फ शेयर बाजार उछल रहा है।मेहनतखसों के हाथ पांव काट दिये गये हैं।बच्चों की नौकरियां खतरे में हैं।ऐसे में साफ जाहिर है कि फासिज्म की सरकार और उसके भक्त बजरंगी समुदाय और सत्ता से नत्थी भद्रलोक पेशेवर दुनिया को न किसानों से कुछ लेना देना है और न वीर जवानों से।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर खाने की क्वालिटी की नुक्ताचीनी करते बीएसएफ जवान के वायरल वीडियो ने हड़कंप मचा दिया है। गृह मंत्रालय तक हरकत में आ गया और आज आईजी ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस पर सफाई दी। बीएसएफ के आईजी, डी के उपाध्याय ने कहा कि प्राथमिक जांच में कोई सच्चाई नहीं मिली है। फिर भी जांच होगी और कार्रवाई भी होगी। 31 जनवरी को वॉलेंटरी रिटायरमेंट पर जा रहे तेज बहादुर का अनुशासनहीनता के चलते 2010 में कोर्ट मार्शल हो चुका है। परिवार की स्थिति को देखते हुए उसके साथ नरमी बरती गई थी। बीएसएफ में शिकायत करने के अंदरुनी रास्ते भी हैं। उनका इस्तेमाल किए बगैर सीधा फेसबुक पर वीडियो पोस्ट करना जवान की नीयत पर सवाल खड़े करता है।
गौरतलब है कि तेज बहादुर यादव बीएसएफ के जवान वीडियो बनाते वक्त कश्मीर सीमा पर अपने देश की रक्षा कर रहे थे। अपार बहादुरी दिखा कर तेज बहादुर ने सोशल मीडिया के जरिए बीएसएफ की वो सच्चाई दिखा दी जो आज तक छुपी थी।तेज बहादुर यादव ने सरल सा सवाल पूछा कि क्या ऐसा खाना खाकर क्या कोई जवान 11 घंटों की ड्यूटी कर सकता है। लेकिन इनका असली आरोप तो और भी संगीन है। तेज बहादुर का कहना है कि सरकार से राशन तो आता है जवानों के लिए। लेकिन बीच में ही ये गायब हो जाता है।
गौरतलब है कि हालीवूड की अत्यंत लोकप्रिय अभिनेत्री मेरील स्ट्रीप ने ग्लोब पुरस्कार समारोह के मौके पर अमेरिका के प्रेसीडेंट इलेक्ट रंगभेदी फतवे का विरोध जिस तरह किया है,उसके मद्देनजर हमारे स्टार सुपरस्टार मुक्त बाजार या केंद्र सरकार या राज्य सरकार के दल्ले से बेहतर कोई हैसियत रखते हैं या नहीं,इस पर जरुर गौर करना चाहिए।मेरील स्ट्रीप ने हॉलीवुड की समृद्ध विविधता को रेखांकित करने के लिए भारतीय मूल के अभिनेता देव पटेल जैसे कलाकारों का जिक्र किया।
स्ट्रीप ने अपने इस भाषण में ट्रंप का नाम तो नहीं लिया लेकिन ताकतवर लोगों द्वारा दूसरों को प्रताड़ित करने के लिए पद का इस्तेमाल करने के खिलाफ चेतावनी दी।रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या से पहले इसी किस्म की असहिष्णुता के खिलाफ कलाकारों साहित्यकारों की बगावत को राष्ट्रद्रोह कहा गया था और राष्ट्रवाद की यह भगवा झंडा देश के तमाम विश्वविद्यालयों में लहराने के लिए छात्रों और युवाओं तक को मनुस्मृति शासन ने राष्ट्रद्रोही का तमगा बांटा था।
ऐसे राष्ट्रवादियों की पितृभूमि अमेरिका में मेरील स्ट्रीप जैसी विश्वविख्यात अभिनेत्री के बयान पर अमेरिका में किसी ने उन्हें राष्ट्रद्रोही नहीं कहा है।
कानून,संसद ,संविधान और सुप्रीम कोर्ट की खुली अवमानना करने वालों के खिलाफ राष्ट्रवादी देशभक्त क्यों चुप हैं?
देशभक्ति के मामले में सबसे मुखर हमारे स्टार सुपरस्टार ने जिस गति और वेग से नोटबंदी के समर्थन में बयान जारी किये,जिसतरह डिजिटल कैशलैस स्वच्छ भारत के विशुध आयुर्वेदिक एंबेैसैडर बन गये,उन्हें क्या कानून,संविधान,संसद और सुप्रीम कोर्ट की कोई परवाह नहीं है?
असहिष्णुता के खिलाफ पुरस्कार लौटाने वाले अब क्यों खामोश हैं?
मेरील स्ट्रीप भी पेशेवर कलाकार हैं।
स्ट्रीप ने कहा कि हम सब कौन हैं और हॉलीवुड क्या है?
स्ट्रीप ने कहा कि यह एक ऐसी जगह है, जहां अन्य जगहों से लोग आए हैं। हॉलीवुड की समृद्ध विविधता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि एमी एडम्स इटली में जन्मी, नताली पोर्टमैन का जन्म यरूशलम में हुआ। इनके जन्म प्रमाण पत्र कहां हैं? देव पटेल का जन्म केन्या में हुआ, पालन-पोषण लंदन में हुआ और यहां वह तसमानिया में पले-बढ़े भारतीय की भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने कहा कि हॉलीवुड बाहरी और विदेशी लोगों से भरा पड़ा है और यदि आप हम सबको बाहर निकाल देते हैं तो आपके पास फुटबॉल और मिक्स्ड मार्शल आर्ट के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिलेगा और ये दोनों ही कला नहीं हैं। कई पुरस्कार जीत चुकी अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप हॉलीवुड में एक सम्मानित हस्ती हैं। उन्होंने कहा कि इस साल जो प्रस्तुति सबसे अलग रही, वह किसी अभिनेता की नहीं बल्कि ट्रंप की थी। यह प्रस्तुति उन्होंने एक विकलांग पत्रकार का सार्वजनिक तौर पर मजाक उड़ाते हुए दी थी।
सारे नोट बैंकों में वापस आ गये हैं।15 लाख करोड़ से ज्यादा।अब बता रहे हैं कि नोटबंदी के बाद बैंकों में बड़ी मात्रा में कालाधन जमा हुआ है। सरकार को पता चला है कि अलग-अलग बैंक खातों में 3 से 4 लाख करोड़ रुपये की अघोषित आय जमा हुई है। आईटी विभाग इन खातों की जांच करने के बाद खाताधारकों को नोटिस भेज रहा है और अगर खाताधारक इस रकम का स्त्रोत बताने में नाकाम रहते हैं तो उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। नोटबंदी से कालाधन बाहर आया है। नोटबंदी के दौरान लंबे समय से बंद पड़े खातों में 25000 करोड़ रुपये जमा हुए हैं।जांच से पता चला है कि पूर्वोत्तर राज्यों में 10700 करोड़ रुपये की अघोषित आय जमा हुई है जबकि सहकारी बैंकों में 16,000 करोड़ रुपये जमा हुए हैं। ये भी पता चला है कि नोटबंदी के बाद 80,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल लोन रीपेमेंट किया गया है। वहीं उत्तर भारत में अलग-अलग बैंकों में 10700 करोड़ रुपये जमा किए गए।
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