तारकेश कुमार ओझा // TOC NEWS
बचपन में स्कूल की किताबों में स्वतंत्रता सेनानी लाल - बाल - पाल के बारे में खूब पढ़ा था। जिज्ञासा हो ने पर पता चला कि तीनों महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिनका आजादी के आंदोलन में बड़ा योगदान था। कॉलेज तक पहुंचने पर देश के सबसे बड़े सूबे के उस राजनैतिक परिवार के बारे में जानकारी हुई जिनके कुनबे में अनेक पाल नाम धारी थे। एक बार फिर जिज्ञासा जागने पर पता चला कि वे सभी तत्कालीन मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्य और राजनीति में सेटेलड माननीय थे। उस दौर में सोशलिस्ट और समाजवादी नाम की अनेक पा र्टियां थी।
तब समाजवाद के बारे में मेरी समझ महज इतनी थी कि समाजवाद यानी सब कुछ समाज का, अपना कुछ भी नहीं। लेकिन समय के साथ मेरा आश्चर्य और कौतूहल बढ़ता गया। जिसकी कुछ ठोस वजहें भी थी। मेरे गृहप्रदेश पश्चिम बंगाल में पाल एक उपनाम हैं। लेकिन देश के सबसे बड़े सूबे में एक ही कुनबे में इतने लोगों के नाम के साथ पाल जुड़ा होना मेरे कौतूहल का कारण बन गया। खैर समय के साथ पाल ब्रदर्स का सत्ता में प्रताप बढ़ता गया।
क्या संयोग रहा कि जिस दिन टेलीविजन पर मेरे प्रदेश के एक पाल नामधारी माननीय की चिटफंड घोटाले में गिरफ्तारी हुई उसी दौरान सुर्खिय़ों में फिर उन्हीं पाल ब्रदर्स की धमा - चौड़की शुरू हो गई। रोमांच और रहस्य इस कदर कि छात्र जीवन में देखा गया रामायण और महाभारत सीरियल भी इसके सामने कुछ नहीं। मनोरंजन की लगातार और इतनी बड़ी खुराक तो क्रिकेट और बालीवुड के लिए भी देना संभव नहीं है। ब्रेकिंग न्यूज - ब्रेकिंग न्यूज की झिलमिलाहट के बीच इन पाल बंधुओं की खबरें लगातार मिलती रही। कभी बताया जाता कि अमुक पाल को पा र्टी से निकाल दिया गया है। एक दूसरे पाल पा र्टी के शिखर पुरुष के साथ बैठक कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद बताया जाता कि शिखर पुरुष उन बर्खास्त पाल को फिर से पा र्टी में लेने को राजी हो गए हैं। चैनलों पर महंगी विदेशी कारों का काफिला दौड़ता नजर आता।
रफ्तार कम होने पर कुनबे के एक पाल की झलक दिखला दी जाती। जो हाथ हिला कर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए नजर आते। टेलीविजन के प र्दे पर नजर आता कि कैमरा लेकर दौड़ रहे मीडियाकर्मी भागते - हांफते उनसे कुछ पूछने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भीतर बैठा माननीय बेरुखी से बगैर कुछ कहे आगे निकल जाता। नजर आता कि जिस वाहन में जनाब बैठे हैं, उसकी रफ्तार अचानक तेज हो गई है। कुछ घंटों में पाल ब्रदर्स के पा र्टी से निकाले जाने और फिर से वापस लौट आने की इतनी खबरें आती रही कि मैं सचमुच कंफ्यूज्ड हो गया कि जिनके बारे में बताया जा रहा है कि वे पा र्टी में है या नहीं। इस बीच चैनलों के प र्दे पर सारी खबरें मानो रुक गई या रोक दी गई। सुर्खियां बस उस पा र्टी या परिवार की । इस बीच टेलीविजन के पर्दे पर बिल्कुल दक्षिण भारतीय शैली में घटनाक्रम से विचलित कार्यकर्ताओं की भाव - भंगिमाएं दिखाई जाती रही। कोई रो रहा है तो कोई खुशियां मना रहा है। एक महिला बिलखते हुई कहती है ...
हमे नेताजी भी चाहिए और भैया भी... जो हुआ बहुत गलत हुआ। अचानक फिर ब्रेकिंग न्यूज की झिलमिलाहट हुई। बताया गया कि उस पा र्टी के और बड़े नेता जिनके नाम के साथ पाल तो नहीं जुड़ा है लेकिन वे भी मुख्यमंत्री के चाचा मंडली के सदस्य हैं ने विदेश से कुछ बयान दिया है। वह समाजवाद के नाम पर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हो गए है। पल में तोला तो पल में माशा की तर्ज पर समाजवादी महारथियों के पा र्टी से निकाले जाने और फिर वापस लिए जाने की खबरें लगातार टेलीविजन के पर्दे पर दौड़ती रही। इन घटनाक्रमों से देश या प्रदेश का कुछ भला होगा या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन इतना कह सकता हूं कि समाजवादी सेना के चलते पुराने साल की विदाई और नए साल के स्वागत भरे कुछ दिन आश्चर्य , कौतूहल , रहस्य और रोमांच से भरपूर रहे। मेरी मांग है कि समाजवादी सेना को वर्ष 2016 -17 का बेस्ट एंटरटेनर एवार्ड जल्द से जल्द दिया जाए।
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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