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नई दिल्ली: गंभीर अपराध के आरोपियों को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज सुनवाई शुरू की. सरकार ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट का काम कानून की व्याख्या करना है, कानून बनाना नहीं. कोर्ट ने कहा, "राजनीति से अपराधियों को दूर रखना पूरे देश की मांग है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, उनमें मांग की गई है कि गंभीर आपराधिक मामलों में आरोप तय हो जाने के बाद किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए. सरकार के सबसे बड़े वकील एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा, "इस मांग को पूरा करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में चुनाव लड़ने की नई अयोग्यता जोड़नी होगी. ऐसा सिर्फ संसद कर सकती है. कोर्ट के आदेश के ज़रिए कानून में नई धारा नहीं जोड़ी जा सकती."
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां अपराधियों को राजनीति से बाहर करने को लेकर गंभीर नहीं हैं. लगभग 34 फीसदी जनप्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. ये लोग इस तरह का कानून कभी पास नहीं होने देंगे. इसलिए कोर्ट का दखल ज़रूरी है.
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने माना कि याचिका में कही गयी बातें पहली नज़र में सही लगती हैं. कोर्ट ने कहा, "क्या जिस व्यक्ति पर गंभीर अपराध के आरोप हों, वो संविधान की शपथ लेने के योग्य है. क्या वो उस शपथ का पालन कर पाने लायक है? ये देखने की ज़रूरत है."
जवाब में एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट का ध्यान इस न्यायिक अवधारणा की तरफ दिलाया कि दोष साबित होने तक हर आरोपी को बेगुनाह माना जाता है. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ये बात इस हद तक तो ठीक है कि दोष साबित होने तक किसी को जेल न भेजा जाए. लेकिन यहां बात लोकतंत्र के मंदिर में बैठने की योग्यता पर रही है. इसे गंभीरता से देखने की ज़रूरत है.
कोर्ट ने कहा, "संविधान ने सबके लिए लक्ष्मण रेखा तय की है. हमें देखना होगा कि हम क्या कर सकते हैं." एटॉर्नी जनरल ने सुझाव दिया कि कोर्ट भले ही कानून में बदलाव नहीं कर सकता लेकिन जनप्रतिनिधियों और चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे लोगों के मुकदमों के तय समय में निपटारे की बात कह सकता है. अगर कोई दोषी साबित हो जाएगा तो मौजूदा कानून के हिसाब से चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएगा. कोर्ट इस सुझाव पर सहमत नज़र आया. सुनवाई मंगलवार को जारी रहेगी.
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