खतना पर SC का सवालः पति को खुश करने के लिए पत्नी ऐसा करे तो क्या ये पुरुष वर्चस्व नहीं दर्शाता ? |
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नई दिल्ली । दाउदी बोहरा मुसलमानों में महिलाओं के खतना प्रथा को सुप्रीम कोर्ट स्वास्थ्य, नैतिकता और व्यवस्था के लिहाज से तय संवैधानिक सिद्धांतों पर परखेगा। कोर्ट ने प्रथा पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा कि ये प्रचलन महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाता है। पति को खुश करने के लिए महिला ऐसा करे तो क्या इससे पुरुष वर्चस्व नहीं झलकता?
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ये टिप्पणियां दाउदी बोहरा समाज में मुस्लिम महिलाओं की खतना प्रथा पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कीं। कोर्ट इस मामले पर अगले सोमवार फिर सुनवाई करेगा।
सोमवार को दाउदी समुदाय की ओर से प्रचलन की तरफदारी करते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस की। सिंघवी ने कहा कि दाउदी बोहरा समाज में यह प्रथा पिछले 1400 वर्षो से लगातार चली आ रही है और महिलाओं के खतना का यह प्रचलन धर्म का अभिन्न हिस्सा है। इसे संविधान के धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 25, 26 और 29 में संरक्षण मिलना चाहिए। सिंघवी की इस दलील पर सुनवाई कर रही पीठ के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी प्रचलन के 1400 साल यानी लंबे समय से चलता रहना उसके धर्म के अभिन्न हिस्सा माने जाने का आधार नहीं हो सकता। ये एक सामाजिक दायरा हो सकता है। इस प्रचलन को स्वास्थ्य, नैतिकता और पब्लिक आर्डर के संवैधानिक मूल्यों पर परखा जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश ने प्रचलन को स्वास्थ्य और नैतिकता के संवैधानिक सिद्धांत पर परखने की बात करते हुए कहा कि जब किसी महिला की गरिमा प्रभावित होती है तो ये मुद्दा उठाता है क्योंकि महिला की गरिमा को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। पीठ की टिप्पणियों पर सिंघवी ने कहा कि नैतिकता और मर्यादा की धारणा अलग अलग लोगों के लिए भिन्न हो सकती है। उन्होंने कहा कि दाउदी बोहरा मुसलमानों में 99 फीसद महिलाएँ इस प्रचलन का समर्थन करती हैं। हालांकि पीठ उनके इस तर्क से सहमत नहीं दिखी। मामले पर अगले सोमवार को फिर सुनवाई होगी।
मुख्य न्यायाधीश ने प्रचलन को स्वास्थ्य और नैतिकता के संवैधानिक सिद्धांत पर परखने की बात करते हुए कहा कि जब किसी महिला की गरिमा प्रभावित होती है तो ये मुद्दा उठाता है क्योंकि महिला की गरिमा को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। पीठ की टिप्पणियों पर सिंघवी ने कहा कि नैतिकता और मर्यादा की धारणा अलग अलग लोगों के लिए भिन्न हो सकती है। उन्होंने कहा कि दाउदी बोहरा मुसलमानों में 99 फीसद महिलाएँ इस प्रचलन का समर्थन करती हैं। हालांकि पीठ उनके इस तर्क से सहमत नहीं दिखी। मामले पर अगले सोमवार को फिर सुनवाई होगी।
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