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कृष्ण पाल सिंह उर्फ़ स्वामी चिन्मयानंद को शुकदेवानंद ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी पद से हटा दिया गया है। इस ट्रस्ट के द्वारा ही परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और परमार्थ आश्रम हरिद्वार संचालित किये जाते हैं। ट्रस्टियों ने दबाव देकर कथित संत चिन्मयानंद से त्यागपत्र ले लिया था, लेकिन लोगों को इस खबर की भनक तक नहीं लगने दी गई।
सांसद और भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री रह चुके स्वामी चिन्मयानंद उस वक्त विवादों में आ गये थे जब उन पर एक साध्वी ने यह कहते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने उनका दैहिक और मानसिक शोषण किया है। साध्वी चिदर्पिता नामक इस सन्यासिन हालांकि बाद में अपने आरोपों से मुकर गई थी और स्वामी चिन्मयानंद के हरिद्वार स्थित आश्रम लौट आयी थी लेकिन वापस वह दोबारा अपने पति के पास चली गई।
कथित संत चिन्मयानंद के विरुद्ध इस लड़की ने ही 30 नवंबर 2011 को शाहजहांपुर की सदर कोतवाली में मुकदमा लिखाते हुए स्वामी चिन्मयानंद पर आरोप लगाया था। साध्वी के करीबी कहते हैं कि कथित संत चिन्मयानंद ने पद-पैसा और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग कर इस लड़की को भी तोड़ने का प्रयास किया, पर अभी तक सफल नहीं हुआ है। यह प्रकरण फिलहाल हाईकोर्ट इलाहाबाद में विचाराधीन है।
बताया जाता है इस प्रकरण में स्वामी चिन्मयानंद लगातार कमजोर पड़ते गये हैं और मामले के इस तरह से सार्वजनिक हो जाने के बाद से ही चिन्मयानंद को हटाने की कवायद शुरू हो गई थी। संभवत: इसी घटना के मद्देनजर स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने दबाव देकर इनसे मैनेजिंग ट्रस्टी की जिम्मेदारी वापस ले ली है।
स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट के द्वारा ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन और हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम संचालित किये जाते हैं। इसमें परमार्थ निकेतन ऋषिकेष का प्रबंधन चिदानंद मुनि के हाथ में है तो हरिद्वार का आश्रम स्वामी चिन्मयानंद के जिम्मे था। हालांकि परमार्थ आश्रम के अलावा स्वामी चिन्मयानंद के अपने दो आश्रम हैं। इनमें से एक शाहजहांपुर में मुमुक्षु आश्रम है तो दूसरा वृन्दावन स्थित परमार्थ निकुंज। ये दोनों ही आश्रम स्वामी चिन्मयानंद के अपने नियंत्रण में हैं। स्वामी चिन्मयानंद न केवल भारतीय जनता पार्टी के सांसद रह चुके हैं बल्कि वे विश्व हिन्दू परिषद के भी वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं।
कृष्ण पाल सिंह उर्फ़ स्वामी चिन्मयानंद को शुकदेवानंद ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी पद से हटा दिया गया है। इस ट्रस्ट के द्वारा ही परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और परमार्थ आश्रम हरिद्वार संचालित किये जाते हैं। ट्रस्टियों ने दबाव देकर कथित संत चिन्मयानंद से त्यागपत्र ले लिया था, लेकिन लोगों को इस खबर की भनक तक नहीं लगने दी गई।
सांसद और भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री रह चुके स्वामी चिन्मयानंद उस वक्त विवादों में आ गये थे जब उन पर एक साध्वी ने यह कहते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने उनका दैहिक और मानसिक शोषण किया है। साध्वी चिदर्पिता नामक इस सन्यासिन हालांकि बाद में अपने आरोपों से मुकर गई थी और स्वामी चिन्मयानंद के हरिद्वार स्थित आश्रम लौट आयी थी लेकिन वापस वह दोबारा अपने पति के पास चली गई।
कथित संत चिन्मयानंद के विरुद्ध इस लड़की ने ही 30 नवंबर 2011 को शाहजहांपुर की सदर कोतवाली में मुकदमा लिखाते हुए स्वामी चिन्मयानंद पर आरोप लगाया था। साध्वी के करीबी कहते हैं कि कथित संत चिन्मयानंद ने पद-पैसा और प्रतिष्ठा का दुरुपयोग कर इस लड़की को भी तोड़ने का प्रयास किया, पर अभी तक सफल नहीं हुआ है। यह प्रकरण फिलहाल हाईकोर्ट इलाहाबाद में विचाराधीन है।
बताया जाता है इस प्रकरण में स्वामी चिन्मयानंद लगातार कमजोर पड़ते गये हैं और मामले के इस तरह से सार्वजनिक हो जाने के बाद से ही चिन्मयानंद को हटाने की कवायद शुरू हो गई थी। संभवत: इसी घटना के मद्देनजर स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने दबाव देकर इनसे मैनेजिंग ट्रस्टी की जिम्मेदारी वापस ले ली है।
स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट के द्वारा ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन और हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम संचालित किये जाते हैं। इसमें परमार्थ निकेतन ऋषिकेष का प्रबंधन चिदानंद मुनि के हाथ में है तो हरिद्वार का आश्रम स्वामी चिन्मयानंद के जिम्मे था। हालांकि परमार्थ आश्रम के अलावा स्वामी चिन्मयानंद के अपने दो आश्रम हैं। इनमें से एक शाहजहांपुर में मुमुक्षु आश्रम है तो दूसरा वृन्दावन स्थित परमार्थ निकुंज। ये दोनों ही आश्रम स्वामी चिन्मयानंद के अपने नियंत्रण में हैं। स्वामी चिन्मयानंद न केवल भारतीय जनता पार्टी के सांसद रह चुके हैं बल्कि वे विश्व हिन्दू परिषद के भी वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं।
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