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नई दिल्ली : सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि मीडिया उद्योग को बार काउंसिल द्वारा आयोजित परीक्षा की तर्ज पर पत्रकारों के लिए साझा परीक्षा आयोजित करने पर विचार करना चाहिए, जिसके बाद उन्हें इस पेशे के लिए लाइसेंस दिया जा सके। तिवारी ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि मुझे लगता है कि अच्छा शुरुआती बिन्दु यह होगा कि पाठ्यक्रम तय करके संस्थानों को आदर्श बनाने के बजाय, संभवत: मीडिया उद्योग कम से कम साझा परीक्षा कराने के बारे में सोच सकता है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि बार काउंसिल, मेडिकल या अन्य पेशेवर संस्थानों की परीक्षाएं होती हैं, जिसमें परीक्षा के बाद लाइसेंस जारी किया जाता है, जो आपको पेशे में काम करने के सक्षम बनाता है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों और वकीलों को पेशे के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है और ऐसा मीडिया उद्योग को आदर्श स्तर पर लाने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह विभिन्न पेशे के लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि विविध क्षेत्रों के पेशेवर लोग साक्षा परीक्षा के विचार का विरोध नहीं करेंगे। सीएमएस अकादमी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए तिवारी ने यहां कहा कि यह मीडिया क्षेत्र में कुछ हद तक आदर्श स्थिति लेकर आएगा।
इससे पहले भारतीय प्रेस परिषद के प्रमुख न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने पत्रकारों के लिए न्यूनतम योग्यता का मुद्दा उठाया था। तिवारी ने कहा कि ट्राई को डिजिटलीकरण का अंतिम चरण पूरा होने तक 12 मिनट की विज्ञापन सीमा लागू करने के लिए समयसीमा बढ़ाने की समाचार चैनलों की मांग पर गौर करना चाहिए। तिवारी ने कहा कि उपभोक्ताओं के हित संरक्षित करने के अलावा ट्राई को उद्योग की स्थिति पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेट टाप बाक्स बनाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है और डिजिटलीकरण मध्यम एवं छोटे उद्योग के लिए एक ऐसा बड़ा अवसर साबित हुआ, जिसे गंवा दिया गया।
नई दिल्ली : सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि मीडिया उद्योग को बार काउंसिल द्वारा आयोजित परीक्षा की तर्ज पर पत्रकारों के लिए साझा परीक्षा आयोजित करने पर विचार करना चाहिए, जिसके बाद उन्हें इस पेशे के लिए लाइसेंस दिया जा सके। तिवारी ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि मुझे लगता है कि अच्छा शुरुआती बिन्दु यह होगा कि पाठ्यक्रम तय करके संस्थानों को आदर्श बनाने के बजाय, संभवत: मीडिया उद्योग कम से कम साझा परीक्षा कराने के बारे में सोच सकता है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि बार काउंसिल, मेडिकल या अन्य पेशेवर संस्थानों की परीक्षाएं होती हैं, जिसमें परीक्षा के बाद लाइसेंस जारी किया जाता है, जो आपको पेशे में काम करने के सक्षम बनाता है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों और वकीलों को पेशे के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है और ऐसा मीडिया उद्योग को आदर्श स्तर पर लाने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह विभिन्न पेशे के लोगों को आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि विविध क्षेत्रों के पेशेवर लोग साक्षा परीक्षा के विचार का विरोध नहीं करेंगे। सीएमएस अकादमी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए तिवारी ने यहां कहा कि यह मीडिया क्षेत्र में कुछ हद तक आदर्श स्थिति लेकर आएगा।
इससे पहले भारतीय प्रेस परिषद के प्रमुख न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने पत्रकारों के लिए न्यूनतम योग्यता का मुद्दा उठाया था। तिवारी ने कहा कि ट्राई को डिजिटलीकरण का अंतिम चरण पूरा होने तक 12 मिनट की विज्ञापन सीमा लागू करने के लिए समयसीमा बढ़ाने की समाचार चैनलों की मांग पर गौर करना चाहिए। तिवारी ने कहा कि उपभोक्ताओं के हित संरक्षित करने के अलावा ट्राई को उद्योग की स्थिति पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेट टाप बाक्स बनाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है और डिजिटलीकरण मध्यम एवं छोटे उद्योग के लिए एक ऐसा बड़ा अवसर साबित हुआ, जिसे गंवा दिया गया।
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