जी हां ये कोई फि़ल्मी कहानी नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है, दरअसल मामला शहडोल जिला अस्पताल का है जहां पर अस्पताल की सुन्दरता पर तो लाखों रुपये खर्च किये गये हंै लेकिन लोगों की जान माल को लेकर सम्बंधित अधिकारी गंभीर नहीं, आश्चर्य की बात तो ये है की मात्र 4 महीने का आकड़ा देखें तो 128 शिशुओं की मौत हुई इसका मतलब लगभग हर रोज एक शिशु की मौत. जबकि आदिवासी बहुल शहडोल जिले में शिशुओं की मृत्युदर को कम करने के लिये शासन के द्वारा करोड़ो रुपये खर्च किये जा रहे हैं पर रिजल्ट जस का तस ही. अप्रैल माह में 424 प्रसव हुए जिनमे 24 शिशुओं की मौत हुई, मई माह में 464 प्रसव हुए जिसमें 23 की मौत हुई, जून में 504 प्रसव हुए जिसमें 35 शिशुओं की और इसी तरह माह जुलाई का देखे तो 505 प्रसव हुए जिसमें 30 शिशुओं की मौत हुई,क्षेत्रिय लोगों तो यहाँ तक बोलते हैं कि शहडोल जिला अस्पताल मौत का घर बन चुका है यहां यमराज का साया छाया हुआ है। जिला चिकित्सालय प्रबंधन की लापरवाही के कारण शहडोल वासियों को प्रतिदिन प्रसव के दौरान एक शिशु का मौत से सामना हो रहा है। यही हाल रहा तो शिवराज सरकार के स्वास्थ्य विभाग की चिकित्सालयों में बेबस जनता अपना प्रसव कराने नहीं आएंगी। आखिर कब तक चलेगा यमराज का खेल....कौन जाने...



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