Sunday, August 11, 2013

अमन के नापाक दुश्मन

By शेष नारायण सिंह 
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जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में पांच भारतीय सैनिकों के मारे जाने की घटना को भी जल्दबाजी में पाकिस्तानी हमला मान लेना ठीक नहीं होगा. इस बात की पूरी संभावना है कि पाकिस्तानी फौज ने नई नवाज़ शरीफ सरकार को भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढाने से रोकने के लिए यह काम किया हो. इस बात में तो शक नहीं हो सकता पाकिस्तानी फौज ने ही भारतीय सैनिकों की जघन्य ह्त्या करवाई है लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि पाकिस्तान की सिविलियन सरकार भी इसमें शामिल हो .इसे मुशर्रफ के उस एडवेंचर से मिलाकर देखना चाहिए जब लाहौर बस यात्रा से पैदा हुए माहौल को खराब करने के लिए मुशर्रफ की पाकिस्तानी फौज ने कारगिल कर दिया था.

१९८९ में जब मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी और महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैय्या सईद का अपहरण हुआ तो पाकिस्तानी आतंकवादी निजाम को लगा था कि भारत की सरकार को मजबूर किया जा सकता है. तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी को छुडाने के लिए सरकार ने बहुत सारे समझौते किये जिसके बाद पाकिस्तानी आतंकवादियों के हौसले बढ़ गए थे. नियंत्रण रेखा के रास्ते और अन्य रास्तों से आतंकवादी आते रहे, वारदात को अंजाम देते रहे और सीमा के दोनों तरफ शान्ति को झटका लगता रहा. उसके बाद सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों की जिन्दगी बहुत ही मुश्किल हो गयी. छिटपुट आतंक की घटनाओं का सिलसिला जारी रहा और आखिर में २००३ के नवम्बर महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का समझौता हुआ. इलाके के किसानों से कोई पूछकर देखे तो पता लग जाएगा कि सीजफायर समझौते के पहले बार्डर के गावों में जिंदा रहना कितना मुश्किल हुआ करता था. सीजफायर लाइन के दोनों तरफ के गाँव वालों की ज़िंदगी बारूद के ढेर पर ही मानी जाती थी. दोनों तरफ के गाँव वालों को पता है कि लगातार होने वाली गोलीबारी में कभी किसी का घर तबाह हो जाता था, तो कभी कोई किसान मौत का शिकार हो जाता था. लेकिन नवंबर २००३ के बाद सीमावर्ती इलाकों के सैकड़ों गांवों में शान्ति है .सीमा पर कंटीले तार लगे हुए हैं और इन रास्तों से अब कोई आतंकवादी भारत में प्रवेश नहीं करता. सीजफायर समझौते के बाद यहाँ के गांवों में जो शान्ति का माहौल बना है उसे जारी रखने की दुआ इस इलाके के हर घर में होती ,हर गाँव में लोग यही प्रार्थना करते हैं कि सीमावर्ती इलाकों में फिर से झगडा न शुरू हो जाये जाए.

लेकिन दिल्ली और इस्लामाबाद में रहकर सत्ता का सुख भोगने वाले एक वर्ग को इन गावं वालों से कोई मतलब नहीं है. उनको तो हर हाल में झगडे की स्थिति चाहिए क्योंकि संघस्ढ़ की स्थिति में मीडिया की दुकानें भी चलती हैं और सियासत का कारोबार भी परवाना चढता है. पाकिस्तान में जब भी नवाज़ शरीफ की सरकार बनती है तो पाकिस्तानी फौज में मौजूद उनके पुराने साथियों को लगता है कि अब मनमानी की जा सकेगी लेकिन नवाज शरीफ दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के सपने देखने लगते हैं. नवाज शरीफ की इस कोशिश को आई एस आई और फौज में मौजूद उनके साथी धोखा मानते हैं. पाकिस्तान की राजनीति में नवाज़ शरीफ को स्थापित करने के श्रेय पाकिस्तान के पूर्व फौजी तानाशाह, जनरल जिया उल हक को जाता है. नवाज शरीफ अपने शुरुआती राजनीतिक जीवन में जनरल जिया के बहुत बड़े चेले हुआ करते थे. पाकिस्तानी फौज में भी आजकल टाप पर वही लोग बैठे हैं जो जनरल जिया के वक़्त में नौजवान अफसर होते थे. पाकिस्तानी सेना और समाज का इस्लामीकरण करने की अपनी मुहिम में इन अफसरों का जिया ने पूरी तरह से इस्तेमाल किया था. आज के पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष जनरल अशफाक कयानी और उनके जूनियर जनरलों ने भारत के हाथों पाकितान को १९७१ में बुरी तरह से हारते देखा है.

जब १९७१ में भारत की सैनिक क्षमता के सामने पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेके थे, उसी साल जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने लेफ्टीनेंट के रूप में नौकरी शुरू की थी. उन्होंने बार बार यह स्वीकार किया है कि वे १९७१ का बदला लेना चाहते हैं लेकिन उनकी इस जिद का नतीजा दुनिया के लिए जो भी हो, उनके अपने देश को भी तबाह कर सकता है. यह बात जनरल अशफाक कयानी को मालूम है कि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो वह विश्वशान्ति के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत होगा . शायद इसीलिये वे कोशिश करते रहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी सूरत में रिश्ते सुधरने न पायें और उनको भारत को तबाह करने  के अपने सपने को जिंदा रखने में मदद मिलती रहे.

पाकिस्तानी फौजी लीडरशिप की इसी ज़हनियत की वजह से १९९० के बाद से जब भी कोई सिविलियन सरकार दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की बात करती है तो पाकिस्तानी फौज या तो आतंकवादियों के ज़रिये और या आई एस आई के ज़रिये कोई ऐसा काम कर देती है जिस से सामान्य होने की दिशा में चल पड़े रिश्ते तबाह हो जाएँ या उस प्रक्रिया में पक्के तौर पर अड़चन ज़रूर आ जाए. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस में बैठकर लाहौर गए थे तो पाकिस्तानी फौज ने कारगिल शुरू कर दिया था. अब तो सबको मालूम है कि कारगिल में जो भी हुआ उसके लिए शुद्ध रूप से उस वक़्त के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ज़िम्मेदार थे, प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को तो पता  भी नहीं था. लेकिन उस घटना के बहुत सारी राजनीतिक नतीजे  निकले थे. नवाज़ शरीफ की  गद्दी चली गयी थी, मुशर्रफ ने सत्ता  हथिया ली थी, कारगिल की लड़ाई हुई थी, भारत ने कारगिल के इलाके से पाकिस्तानी फौज को खदेड़ दिया था और अटल बिहारी वाजपेयी १९९९ के चुनावों विजेता के रूप में प्रचार करते हुए पांच साल तक राज करने का जनादेश लाये थे.

पुंछ सेक्टर की ताज़ा घटना  भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों की परीक्षा लेने के लिए तैयार है. पाकिस्तानी आई एस आई और हाफ़िज़ सईद के अधीन काम करनेवाले आतंकवादी संगठन कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेगें कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह के सामान्य सम्बन्ध कायम हों.  इसका एक नतीजा यह भी  होगा कि मुंबई हमलों के गुनाहगार  हाफ़िज़ सईद को पाकिस्तान भारत के हवाले भी कर सकता है. अगर दोनों देशों में दोस्ती  हो गयी तो भारत दाऊद इब्राहीम के प्रत्यर्पण की मांग भी कर सकता है. सबको मालूम है कि दाऊद इब्राहीम और हाफ़िज़ सईद पाकिस्तानी हुक्मरान की नज़र में कितने ताक़तवर हैं. इसलिए यह दोनों अपराधी किसी भी सूरत में दोनों देशों के बीच  दोस्ती नहीं कायम होने देगें .अजीब बात यह है कि भारत में पब्लिक ओपिनियन के करता धरता भी पाकिस्तानी  आतंकवाद के सूत्रधारों के जाल में फंसते जा रहे हैं. भारत के टेलिविज़न चैनलों की चले तो वे आज ही पाकिस्तान पर भारतीय फौजों से हमला करवा दें.
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का रवैया भी पुंछ में  हुई भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या के बाद ऐसा है कि वे पाकिस्तानी आतंकवादियों की मंशा  को पूरी करते नज़र आ रहे हैं.

बीजेपी के एक नेता ने लोकसभा में कह दिया कि कि भारत के पास ताक़त है, भारतीय सेना के पास ताक़त है, भारतीय संसद के पास ताक़त है कि पाकिस्तान को उसी भाषा में जवाब दिया जाए जो उसकी समझ में आती है. इस तरह की बयानबाजी से दोनों देशों के बीच के रिश्ते और खराब होंगें, पाकिस्तानी सेना में मौजूद वे लोग मज़बूत होंगें जो भारत से हर हाल में दुश्मनी रखना चाहते हैं और पाकिस्तान में रहकर भारत के खिलाफ काम करने वाला आतंक का तंत्र बहुत मज़बूत होगा. इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि भारत का मीडिया और राजनीतिक बिरादरी पाकिस्तानी आतंकवादियों के जाल में न फंसे और उनके मंसूबों  को नाकाम करने की कोशिश करे. इस मिशन में पाकिस्तानी सिविलियन  सरकार की विश्वसनीयता बढाने की कोशिश भी की जानी चाहिए.

भारत के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने संसद में बताया कि भारी हथियारों से लैस करीब बीस आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने कुछ लोगों ने पुंछ के इलाके में हमला किया और पांच भारतीय सैनिकों की जानें गयीं. यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि भारत को इस तरह के धोखेबाजी के तरीकों से परेशान नहीं किया जा सकता. पाकिस्तान की सरकार ने कहा है कि भारतीय मीडिया ने आरोप लगाया है कि पुंछ की घटना में पाकिस्तान की सेना का हाथ है जिसे पाकिस्तानी सरकार खारिज करती है. पाकिस्तान सरकार की तरफ से जो बयान आया है उसके मुताबिक सीमा पर ऐसा कोई भी काम नहीं हुआ जिसके कारण दोनों देशों के बीच में तनाव  आये. यह बयान सच्चाई को छुपाता है लेकिन फिर भी यह युद्ध की तरफ बढ़ने वाली कूटनीति को लगाम देने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

भारत के विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि इस घटना से दोनों देशों के बीच सामान्य हो रहे रिश्तों में बाधा ज़रूर पड़ेगी  .पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ की सरकार आने के बाद उम्मीद बढ़ी थी कि रिश्ते सामान्य होंगें. इसी साल जनवरी में एक भारतीय सैनिक का सिर काटे जाने के बाद रिश्तों में बहुत तल्खी आ गयी थी लेकिन पाकिस्तान में आम चुनाव के बाद आयी नवाज़ शरीफ की नई सरकार आने के बाद उम्मीदें थोडा बढ़ी थीं. सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र के सम्मलेन के बहाने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात की संभावना है लेकिन लगता है कि आई एस आई , पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी आतंकवादियों की साज़िश के बाद मामला बिगड सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इसे पाकिस्तानी ज़मीन पर रहकर पाकिस्तानी सरकार की परवाह किये बिना भारत से रिश्ते खराब करने वालों के मंसूबों की जीत माना जायेगा. ज़ाहिर है इससे सीमा के दोनों तरफ रहने वाले शान्तिप्रेमी लोगों इच्छाओं को ज़बरदस्त धक्का लगेगा.

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