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सुप्रिम कोर्ट के निर्देशों को बनाया पुलिस कप्तान
ने निराकरण का आधार
नोट: पुलिस थानों में जप्त सम्पत्ति का फोटो लगाए
बैतूल। भारत सेन। पुलिस थाने विभिन्न अपराधों में जप्त सम्पत्ति के अंबार लगने से बदहाल हो चुके हैं। करोड़ो की रूपए मूल्य की जप्त सम्पत्ति खुले आसमान के नीचे पड़ी नष्ट होने के कागार पर हैं। पुलिस थानों में जप्त बहुमूल्य धातु सोना, चॉंदी और रूपयों की रखवाली पुलिस के लिए सिर दर्द बन चुकी हैं।
जिला न्यायालय के स्तर पर मामलों में जप्त सम्पत्ति का यथासमय निराकरण नहीं हो पा रहा हैं और न्यायिक प्रक्रियाओं के चलते पुलिस थानों में प्रतिवर्ष जप्त सम्पत्ति के आकड़ों में लगातार वृद्धि दर्ज हो रहीं हैं। कानूनी और न्यायिक बाधाएं अपनी जगह पर आज भी कायम हैं। इस सबके बावजूद पुलिस अधीक्षक बैतूल ने पुलिस थानों में जप्त सम्पत्ति के निराकरण का रास्ता आखिर खोज ही निकाला हैं जो मध्य प्रदेश पुलिस के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण साबित होगा। पुलिस अधीक्षक ना केवल पुलिस थानों की दशा सुधारने जा रहे हैं बल्कि उनके प्रयासों से सरकारी खजाने में करोड़ो रूपए का राजस्व प्राप्त होगा। पुलिस अधीक्षक अगर कामयाब होते हैं तो बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पत्ति की क्षति सदा के लिए रूक जायेंगी जिसका लाभ आम नगरिकों के साथ ही देश को भी होगा।
क्या हैं मामला
पुलिस थानों में विभिन्न अपराधों में जप्त सम्पत्ति और उससे संबंधित मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। जप्त संपत्ति के मालिकों ने कुछ मामलों में रूची त्याग दी हैं, कुछ मामलों में संपत्ति मालिको का पता नहीं चल सका हैं और ज्यादातर मामलों में न्यायालय द्वारा सुपुर्दनामा याचिकाएं गुण दोष पर स्वीकार अथवा खारिज कर देने से पुलिस थानों में जप्त संपत्ति के आकड़े साल दर साल बढ़ते ही चले जा रहे हैं। जप्त संपत्ति जिसमें मोटर यान प्रमुख हैं बंद हालत में खुले आसमान के नीचे कबाड़ में तबदील हो रहे हैं। पुलिस थानों में बहुमूल्य धातुएं जिनमें सोना, चांदी, तांबा जप्त हालत में पड़ा हुआ हैं। पुलिस थानों में जप्त संपत्ति राष्ट्रीय संपत्ति हैं जिसका यथासमय निराकरण नहीं होने से देश को राष्ट्रीय स्तर पर लाखों करोड़ो रूपयों की आर्थिक क्षति हो रहीं हैं वही दूसरी ओर संपत्ति की सुरक्षा पुलिस के लिए परेशानी का कारण हमेशा से ही रहा हैं।
न्यायिक प्रक्रिया का दोष
दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत पुलिस अपराध में प्रयुक्त संपत्ति जप्त कर आरोप पत्र न्यायालय में पेश कर देती हैं। न्यायालय से जप्त संपत्ति को वापस प्राप्त करने के कड़े मापदण्ड हैं। मसलन मोटर यान के मामलो को ही ले तो वाहन चालक के पास लाईसेंस होना चाहिए, पंजीकृत स्वामी होना चाहिए, बीमा होना चाहिए दूसरी सबसे बड़ी शर्त न्यायालय जब कभी आदेश करेंगी तो स्वयं के व्यय पर वाहन प्रस्तुत करना पड़ता हैं। जिला न्यायालय स्तर पर विचार करे तो गुण दोष पर सुपुर्दनामा आवेदन स्वीकार अथवा खारिज होने का नतीजा पुलिस थानों में दिखाई पड़ता हैं। जप्तशुदा वाहन को प्राप्त करने के लिए वाहन स्वामी को हाई कोर्ट तक जाना पड़ता हैं और एक लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता हैं। न्यायालय सुपुर्दनामा याचिका खारिज कर देती हैं तो अपराधिक प्रकरण की सुनवाई पूरी होने तक एक लंबा इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता हैं। तब तक जप्त शुदा वाहन पुलिस थानों में खुले आसमान के नीचे कबाड़ बनता रहता हैं जो बाद में वाहन स्वामी के लिए किसी काम का नहीं रह जाता हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 व 457 के प्रावधानों में विधि निर्माताओं की मंशा पुलिस थानों में वर्षो तक संपत्ति जप्त रखने की नहीं हैं।
सुप्रिम कोर्ट के निर्देश
सुंदरभाई अंबालाल देसाई व अन्य विरूद्ध गुजराज्य,ए.आई.आर 2003 सु.को.638 में सुप्रिम कोर्ट ने पुलिस थानों में जप्त सम्पत्ति के निराकरण के संबंध में व्यापक दिशा निर्देश जारी किए हैं। सुप्रिम कोर्ट के निर्देशानुसार पुलिस थानों में संपत्ति जप्त नहीं रखना हैं जिसमें मोटर यान के मामलो में न्यायालय में संपत्ति प्रस्तुत करने की दिनांक से अधिकतम सीमा 6 मास और अन्य मामलों में 1 मास का समय न्यायिक निराकरण का नियत किया गया हैं। न्यायालय को वाहन स्वामी को, वाहन चालक को अथवा किसी तीसरे व्यक्ति को संपत्ति प्रदान करना हैं और जब कोई दावेदार ना हो तो उस दशा में बीमित वाहन की बीमा कंपनी को सूचित कर जप्त संपत्ति प्रदान करना हैं लेकिन अगर सभी लेने से इंकार कर दे तो जप्त संपत्ति को निलाम करने के आदेश तत्काल कर देना हैं। पुलिस थानों में जप्त संपत्ति नहीं रहेगी बल्कि पुलिस उसका फोटोग्राफ और पंचनामा तैयार कर केवल निलामी में प्राप्त संपत्ति का मूल्य रखेगी। जब कोई दावेदार आता हैं तो पुलिस निलामी में प्राप्त संपत्ति का मूल्य उसे प्रदान करेगी। सुप्रिम कोर्ट ने इन निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए भारत संघ के प्रत्येक राज्य के उच्च न्यायालय के रजिस्टार को निगरानी की जिम्मेदारी सौपी हैं।
सक्रिय हुए पुलिस कप्तान
मप्र राज्य के समस्त जिलो में केवल बैतूल जिले के पुलिस अधीक्षक, ललित शाक्यवार ने पुलिस थानों में जप्त संपत्ति के निराकरण की दिशा में सक्रियता दिखाई हैं। पुलिस अधीक्षक ने जिले के समस्त पुलिस थानों में सुप्रिम कोर्ट के निर्देश प्रसारित करवा दिए हैं। सुप्रिम कोर्ट के निर्देशो के तहत जिले के समस्त थाना प्रभारी जप्त संपत्ति की सूची तैयार कर रहे हैं, जप्त संपत्ति का पंचनामा और फोटोग्राफ लिया जा रहा हैं। इसके बाद शीघ्र निलामी की कार्यवाही होगी जिससे सरकारी खजाने में करोड़ो रूपए का राजस्व आने की प्रबल संभावना हैं। सुप्रिम कोर्ट के निर्देशानुसार पुलिस थानों में संपत्ति जप्त नहीं रखना हैं जिसमें मोटर यान 6 माह से अधिक और अन्य संपत्ति 1 माह से अधिक नहीं रखी जा सकती हैं। पुलिस थानों में अब अगर कुछ रहेगा तो वह केवल जप्त संपत्ति का निलामी में प्राप्त मूल्य।
इनका कहना
सुप्रिम कोर्ट ने पुलिस थानों में जप्त संपत्ति नहीं रखने के आदेश दिए हैं तथा हाई कोर्ट रजिस्टार को निगरानी की जिम्मेदारी सौपी हैं। सुप्रिम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देकर आम नागरिक पुलिस थानों में जप्त संपत्ति का यथा समय निराकरण नहीं हो पाने की शिकायत हाईकोर्ट रजिस्टार, जबलपुर से कर सकता हैं।
.................भारत सेन अधिवक्ता, जिला न्यायालय बैतूल
सुप्रिम कोर्ट के निर्देशों में जप्त सम्पत्ति के समय सीमा के भीतर निराकरण को लेकर न्यायालय और पुलिस दोनो की भूमिका बताई गई हैं। जिले के समस्त पुलिस थानों में सुप्रिम कोर्ट के निर्देश प्रसारित कर दिए गए हैं। सुप्रिम कोर्ट के निर्देशो का पुलिस अक्षरश: पालन कर रहीं हैं जिससे विधि और न्याय दोनो की मंशा पूरी होगी। पुलिस थानों में जप्त पड़ी संपत्ति के लिए पुलिस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता हैं।
...............ललित शाक्यवार, पुलिस अधीक्षक, बैतूल
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