toc news internet channel
प्रदेश टुडे को कोई फरक नही पड़ता ये प्रदेश टुडे वाले रुपयो की हवस मे अपनी ओलादो को भी नही छोड़ेगें.. बेंच देंगे, ये बाल श्रम के कानून का सरे बाज़ार बलात्कार है दुनिया में सबसे अधिक बाल श्रमिक भारत में है। ओर भोपाल में सुबसे ज़्यादा सांध्य दैनिक प्रदेश टुडे समाचार पत्र वाले ही धज़ियाँ उड़ा रहे है इनके द्वारा तय किए गये, छोटे छोटे बच्चे भोपाल की गलियों चोरहो पर रोज दोपहर को मिल जाएगें .
बाल श्रम अनुचित या शोषित माना जाता है यदि निश्चित उम्र से कम में कोई बच्चा घर के काम या स्कूल के काम को छोड़कर कोई अन्य काम करता है. किसी भी नियोक्ता को एक निश्चित आयु से कम के बच्चे को किराए पर रखने की अनुमति नहीं है
बाल-श्रम का मतलब ऐसे कार्य से है जिसमे की कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है. इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संघटनों ने शोषित करने वाली माना है. अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली सार्वभौमिक शिक्षा शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों श्रम अधिकार और बच्चों के अधिकारों बच्चों के अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमे जनविवाद प्रवेश कर गया. बाल श्रम अभी भी कुछ देशों में आम है.
भारत में बाल श्रम के खिलाफ कानून और नीतियां
भारत में बाल श्रम को रोकने के लिए कई प्रावधान किए गए। भारत का संविधान (26 जनवरी 1950) मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिध्दांत की विभिन्न धाराओं के माध्यम से कहता है-
14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा (धारा 24)।
राज्य अपनी नीतियां इस तरह निर्धारित करेंगे कि श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं का स्वास्थ्य तथा उनकी क्षमता सुरक्षित रह सके और बच्चों की कम उम्र का शोषण न हो तथा वे अपनी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल काम में आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रवेश करें (धारा 39-ई)।
बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर तथा सुविधाएं दी जाएंगी और बचपन व जवानी को नैतिक व भौतिक दुरुपयोग से बचाया जाएगा (धारा 39-एफ)।
संविधान लागू होने के 10 साल के भीतर राय 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे (धारा 45)।
बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राय सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं। दोनों स्तरों पर कई कानून बनाए भी गए हैं
प्रमुख राष्ट्रीय कानून में शामिल हैं -
बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशा और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिध्द बनाता है। इन पेशाओं और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में है।
फैक्ट्री कानून 1948 - यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिध्द करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
भारत में बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई में महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप 1996 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से आया, जिसमें संघीय और राय सरकारों को खतरनाक प्रक्रियाओं और पेशों में काम करनेवाले बच्चों की पहचान करने, उन्हें काम से हटाने और उन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने यह आदेश भी दिया था कि एक बाल श्रम पुनर्वास सह कल्याण कोष की स्थापना की जाए, जिसमें बाल श्रम कानून का उल्लंघन करनेवाले नियोक्ताओं के अंशदान का उपयोग हो।
भारत निम्नलिखित संधियों पर हस्ताक्षर कर चुका है-
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन बलात श्रम सम्मेलन (संख्या 29)
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन बलात श्रम सम्मेलन का उन्मूलन (संख्या 105)
बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीआरसी)
No comments:
Post a Comment