अवधेश पुरोहित
भोपाल । २०१४ में लोकसभा चुनाव के पूर्व लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के मुकाबले प्रदेश के लोकप्रिय, जनप्रिय चुनाव में जीत के रणनीतिकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की पहल की थी, लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के दबाव में लालकृष्ण आडवाणी के सपनों की हवा निकाल दी गई और मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए गए जिसको लेकर आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघन सिन्हा जैसे पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं के मन में इस बात को लेकर अपना मन मसोस कर रह गये
शिवराज के मुकाबले हालांकि नरेन्द्र मोदी भी गुजरात में लगातार तीन बार सत्ता पर काबिज रहे लेकिन बिहार चुनाव ने यह साबित कर दिया कि वह जीत के अच्छे रणनीतिकार नहीं हैं जबकि लालकृष्ण आडवाणी जैसे पारखी वह राजनेता जिन्होंने भाजपा को दो सीटों से आज इस स्थिति में पहुंचा दिया कि उन्हीं की बदौलत आज नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में हैं लेकिन बिहार चुनाव में नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की नीतियों की करारी हार के बाद अब पार्टी में शिवराज की कार्यप्रणाली और रणनीति को लेकर चर्चाएं गर्म हैं।
मोदी की तुलना में लोग शिवराज को अच्छा रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं, शायद यही वजह है कि दिल्ली में बुजुर्ग नेताओं द्वारा मोदी के खिलाफ फूंके गए बिगुल के परिणाम अब शिवराज सिंह चौहान को पार्टी के राष्ट्री परिदृश्य पर स्थापित करके मानेंगे। यह सक कब होगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन बिहार चुनाव के साथ ही शिवराज की कार्यकुशलता, रणनीति, हर परिस्थितियों से जूझते हुए उसकी समस्या का समाधान करने की क्षमता का पार्टी के कई लोग लोहा मानते हैं।
यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव के पूर्व बहुमत के आधार पर शिवराज को प्रधानमंत्री बनाने के आडवाणी के सपने की हवा किनलाने का काम कर दिया गया हो लेकिन बिहार चुनाव के बाद यह लगने लगा है कि अब वह समय आ गया है कि शिवराज को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के आडवाणी के सपने को पंख लगने की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं।
भोपाल । २०१४ में लोकसभा चुनाव के पूर्व लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के मुकाबले प्रदेश के लोकप्रिय, जनप्रिय चुनाव में जीत के रणनीतिकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की पहल की थी, लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के दबाव में लालकृष्ण आडवाणी के सपनों की हवा निकाल दी गई और मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए गए जिसको लेकर आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघन सिन्हा जैसे पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं के मन में इस बात को लेकर अपना मन मसोस कर रह गये
शिवराज के मुकाबले हालांकि नरेन्द्र मोदी भी गुजरात में लगातार तीन बार सत्ता पर काबिज रहे लेकिन बिहार चुनाव ने यह साबित कर दिया कि वह जीत के अच्छे रणनीतिकार नहीं हैं जबकि लालकृष्ण आडवाणी जैसे पारखी वह राजनेता जिन्होंने भाजपा को दो सीटों से आज इस स्थिति में पहुंचा दिया कि उन्हीं की बदौलत आज नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में हैं लेकिन बिहार चुनाव में नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की नीतियों की करारी हार के बाद अब पार्टी में शिवराज की कार्यप्रणाली और रणनीति को लेकर चर्चाएं गर्म हैं।
मोदी की तुलना में लोग शिवराज को अच्छा रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं, शायद यही वजह है कि दिल्ली में बुजुर्ग नेताओं द्वारा मोदी के खिलाफ फूंके गए बिगुल के परिणाम अब शिवराज सिंह चौहान को पार्टी के राष्ट्री परिदृश्य पर स्थापित करके मानेंगे। यह सक कब होगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन बिहार चुनाव के साथ ही शिवराज की कार्यकुशलता, रणनीति, हर परिस्थितियों से जूझते हुए उसकी समस्या का समाधान करने की क्षमता का पार्टी के कई लोग लोहा मानते हैं।
यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव के पूर्व बहुमत के आधार पर शिवराज को प्रधानमंत्री बनाने के आडवाणी के सपने की हवा किनलाने का काम कर दिया गया हो लेकिन बिहार चुनाव के बाद यह लगने लगा है कि अब वह समय आ गया है कि शिवराज को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के आडवाणी के सपने को पंख लगने की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं।
No comments:
Post a Comment