भोपाल// अवधेश पुरोहित
Present by - ins news
भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुखिया सहित तमाम नेताओं द्वारा इस लोकसभा उपचुनाव के दौरान झाबुआ के विकास के बड़े-बड़े दावे व वायदे किये जा रहे हैं लेकिन स्थिति यह है कि चाहे कांग्रेस का शासन काल हो या भाजपा का दोनों ही पार्टी की सरकारों के कार्यकाल के दौरान झाबुआ के विकास के लिये जितनी धनराशि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस जिले के विकास के लिये आवंटित की गई यदि उस सबको लेखा-जोखा तैयार किया जाए और उस बजट राशि के अनुपात पर खर्च किये जाने का जोड़भाग लगाया जाए तो यही सामने आएगा कि झाबुआ के विकास के नाम पर चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही सरकार के कर्ताधर्ताओं ने झाबुआ के विकास और खासकर आदिवासियों के उत्थान के लिये कोई ईमानदारी से प्रयास नहीं किये हैं, झाबुआ के लोगों का इस संबंध में यह कहना है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के नेता भले ही झाबुआ के विकास के बड़े-बड़े दावे करें लेकिन उसकी जमीनी हकीकत यह है कि झाबुआ में विकास के नाम पर दोनों ही पार्टी के नेताओं ने और खासकर इस जिले में अभी तक पदस्थ अधिकारियों ने जिले के विकास और खासकर आदिवासियों के विकास के नाम पर अपना तो विकास किया है लेकिन आज इस जिले के लोगों की स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।
इन लोगों का यह भी दावा है कि यदि आजादी के बाद से झाबुआ जिले के विकास के नाम पर जितनी राशि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस जिले के लिये दी गई है यदि वह राशि यहां के लोगों को नगद दे दी जाती तो शायद कुछ विकास नजर आता, मगर जिले की मूलभूत सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान करने के नाम पर केवल और केवल फर्जीवाड़ा ही हुआ है, तभी तो यह स्थिति है कि इस जिले का आदिवासी यहां से पलायन करने को मजबूर है।
सरकार भले ही यह दावा करे कि जिले में रोजगार गारंटी योजना के तहत अधिकांश लोगों को काम दिया जा रहा है लेकिन सरकारी रोजगार गारंटी योजना की यह स्थिति है कि ना तो उससे इन लोगों को पर्याप्त मजदूरी मिलती और ना ही समय पर पैसा, जबकि इसी जिले के सीमावर्ती प्रांत गुजरात में इन्हीं आदिवासियों को ठेकेदारों द्वारा रोजगार गारंटी की तुलना में कहीं अधिक मजदूरी दी जाती है और वह वहां खुशी-खुशी मजदूरी करने के लिये जाते हैं। रोजगार गारंटी के तहत सालभर में दस हजार रुपये की सरकारी मजदूरी दी जाती है जबकि गुजरात में एक माह में यहां मजदूरी करने जाने वाले परिवारों को दस हजार से ज्यादा मजदूरी के मिलते हैं।
मजदूरी की इस विसंगति के चलते कोई भी व्यक्ति रोजगार गारंटी का काम करने के लिये तैयार नहीं होता, क्योंकि सरकारी रोजगार गारंटी में काम मिलने पर न तो समय पर पैसा मिलता है और वहीं जितनी मेहनत वह करते हैं उतनी राशि उन्हें मजदूरी की नहीं मिलती। यही वजह है कि मध्यप्रदेश सरकार की रोजगार की कोई भी योजना में झाबुआ के निवासियों को कोई दिलचस्पी नहीं है इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि रोजगार गारंटी जैसे मामले में लोगों को रोजगार देने के जो आंकड़ें हैं उनमें कहीं न कहीं फर्जीवाड़ा नजर आता है।
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भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुखिया सहित तमाम नेताओं द्वारा इस लोकसभा उपचुनाव के दौरान झाबुआ के विकास के बड़े-बड़े दावे व वायदे किये जा रहे हैं लेकिन स्थिति यह है कि चाहे कांग्रेस का शासन काल हो या भाजपा का दोनों ही पार्टी की सरकारों के कार्यकाल के दौरान झाबुआ के विकास के लिये जितनी धनराशि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस जिले के विकास के लिये आवंटित की गई यदि उस सबको लेखा-जोखा तैयार किया जाए और उस बजट राशि के अनुपात पर खर्च किये जाने का जोड़भाग लगाया जाए तो यही सामने आएगा कि झाबुआ के विकास के नाम पर चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही सरकार के कर्ताधर्ताओं ने झाबुआ के विकास और खासकर आदिवासियों के उत्थान के लिये कोई ईमानदारी से प्रयास नहीं किये हैं, झाबुआ के लोगों का इस संबंध में यह कहना है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के नेता भले ही झाबुआ के विकास के बड़े-बड़े दावे करें लेकिन उसकी जमीनी हकीकत यह है कि झाबुआ में विकास के नाम पर दोनों ही पार्टी के नेताओं ने और खासकर इस जिले में अभी तक पदस्थ अधिकारियों ने जिले के विकास और खासकर आदिवासियों के विकास के नाम पर अपना तो विकास किया है लेकिन आज इस जिले के लोगों की स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी हुई है।
इन लोगों का यह भी दावा है कि यदि आजादी के बाद से झाबुआ जिले के विकास के नाम पर जितनी राशि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा इस जिले के लिये दी गई है यदि वह राशि यहां के लोगों को नगद दे दी जाती तो शायद कुछ विकास नजर आता, मगर जिले की मूलभूत सुविधाएं सरकार द्वारा प्रदान करने के नाम पर केवल और केवल फर्जीवाड़ा ही हुआ है, तभी तो यह स्थिति है कि इस जिले का आदिवासी यहां से पलायन करने को मजबूर है।
सरकार भले ही यह दावा करे कि जिले में रोजगार गारंटी योजना के तहत अधिकांश लोगों को काम दिया जा रहा है लेकिन सरकारी रोजगार गारंटी योजना की यह स्थिति है कि ना तो उससे इन लोगों को पर्याप्त मजदूरी मिलती और ना ही समय पर पैसा, जबकि इसी जिले के सीमावर्ती प्रांत गुजरात में इन्हीं आदिवासियों को ठेकेदारों द्वारा रोजगार गारंटी की तुलना में कहीं अधिक मजदूरी दी जाती है और वह वहां खुशी-खुशी मजदूरी करने के लिये जाते हैं। रोजगार गारंटी के तहत सालभर में दस हजार रुपये की सरकारी मजदूरी दी जाती है जबकि गुजरात में एक माह में यहां मजदूरी करने जाने वाले परिवारों को दस हजार से ज्यादा मजदूरी के मिलते हैं।
मजदूरी की इस विसंगति के चलते कोई भी व्यक्ति रोजगार गारंटी का काम करने के लिये तैयार नहीं होता, क्योंकि सरकारी रोजगार गारंटी में काम मिलने पर न तो समय पर पैसा मिलता है और वहीं जितनी मेहनत वह करते हैं उतनी राशि उन्हें मजदूरी की नहीं मिलती। यही वजह है कि मध्यप्रदेश सरकार की रोजगार की कोई भी योजना में झाबुआ के निवासियों को कोई दिलचस्पी नहीं है इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि रोजगार गारंटी जैसे मामले में लोगों को रोजगार देने के जो आंकड़ें हैं उनमें कहीं न कहीं फर्जीवाड़ा नजर आता है।
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