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राजस्थान में शराबबंदी के लिए अनशन कर रहे गुरुशरण छाबड़ा का 3 नवम्बर की सुबह 4 बजे जयपुर के एसएमएस अस्पताल में निधन हो गया। छाबड़ा गत 23 अक्टूबर से आमरण अनशन पर थे और तबीयत बिगडऩे के बाद ही सरकार ने छाबड़ा को सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था। छाबड़ा ने अपना अनशन अस्पताल में भी जारी रखा और वे तब तक अनशन पर रहे जब तक उनकी सांस खत्म नहीं हुई। जो लोग आमरण अनशन का मतलब समझना चाहते है उन्हें छाबड़ा की मौत से समझना चाहिए।
आमरण अनशन व्यक्ति का अन्तिम हथियार होता है, इसलिए जब कोई व्यक्ति अपनी मांगों के लिए आमरण अनशन शुरू करता है तो प्रशासन और सरकार के नुमाइंदे अनशन स्थल पर जाकर संवाद करते हैं, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि गत 2 अक्टूबर से अनशन पर बैठे छाबड़ा से वसुंधरा राजे की सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने जाकर बात नहीं की। छाबड़ा अपनी घरेलू मांगों को लेकर अनशन पर नहीं थे बल्कि उनकी मांग सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई थी। पूर्व में जब शराबबंदी को लेकर छाबड़ा ने अनशन किया था तब सरकार ने एक लिखित समझौता किया। इस समझौते में भरोसा दिलाया गया कि प्रदेश में चरणबद्ध शराबबंदी की जाएगी। वसुंधरा सरकार को इस समझौते पर गत 3 सितम्बर से अमल शुरू करना था, लेकिन वसुंधरा सरकार अपने वायदे से मुकर गई। फलस्वरूप छाबड़ा को 2 अक्टूबर को फिर से आमरण अनशन पर बैठना पड़ा।
सरकार की असंवेदनशीलता देखिए कि सरकार ने किसी भी स्तर पर छाबड़ा से संवाद नहीं किया। गत विधानसभा के चुनाव में वसुंधरा राजे ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा था कि कांग्रेस की सरकार संवेदनहीन है। अब सवाल उठता है कि संवेदनहीन सरकार कांग्रेस की थी या वसुंधरा राजे की है। यह माना कि सरकार की कमाई सबसे ज्यादा शराब की बिक्री से ही होती है, लेकिन शराब की बिक्री के बाद जो बुराईयां उत्पन्न होती है उससे निपटने के लिए सरकार को कई गुना धनराशि खर्च करनी होती है। यदि सरकार शराबबंदी के लिए चरणबद्ध कार्यक्रम भी शुरू करती तो यह प्रदेश की जनता के हित में होता। एक माह में अनशनकारी छाबड़ा से कोई संवाद नहीं कर सरकार ने यह दर्शा दिया कि उसकी रूचि शराब को और बढ़ावा देने में है।
राठौड़ का बेतुका बयान :
छाबड़ा की मौत पर संवेदना प्रकट करने के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी को भेजा गया। इस अवसर पर राठौड़ ने कहा कि छाबड़ा का निधन आमरण अनशन की वजह से नहीं हुआ, बल्कि उनके दिमाग की नसों में खून जम जाने की वजह से निधन हुआ है। अपनी बात के सबूत में राठौड़ ने सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की रिपोर्ट भी दिखाई। समझ में नहीं आता कि राठौड़ स्वयं को बेवकूफ समझते है या प्रदेश की जनता को।
छाबड़ा पिछले एक माह से अनशन पर थे इसलिए तो शरीर में दूसरे रोग उत्पन्न हुए। मौत का कारण दिमाग की नस में खून जमना हो सकता है लेकिन यह रोग भूखे रहने की वजह से ही हुआ। राठौड़ के इस रवैये से भी यह जाहिर होता है कि छाबड़ा के निधन के बाद भी सरकार को कोई अफसोस नहीं है। खुद सीएम वसुंधरा राजे ने भी सुबह कोई संवेदना प्रकट करने के बजाए राजस्थान रिसर्जेट की तैयारियों में ही अपना ध्यान लगाया। राजे अपने निवास से एक सजे धजे ऑटो में बैठी और एसएमएस कन्वेन्सन हॉल तक पहुंची। राजे के लिए छाबड़ा की मौत कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए तो रिसर्जेट राजस्थान बेहद जरूरी है।
होना चाहिए जन आंदोलन :
छाबड़ा ने शराबबंदी के लिए जो अपना बलिदान दिया है उसको लेकर प्रदेश भर में जन आंदोलन होना चाहिए। इस जन आंदोलन के माध्यम से ही सरकार पर शराबबंदी के लिए दबाव डाला जाए। वसुंधरा राजे की सरकार किसी सत्याग्रह अथवा आमरण अनशन से समझने वाली नहीं है। छाबड़ा के बाद और समाजसेवी भी मर जाएं तो सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जन आंदोलन होगा तो वसुंधरा राजे को सीएम की कुर्सी खतरे में नजर आएगी, तभी इस सरकार पर कोई असर पड़ सकता है।
(एस.पी. मित्तल)
राजस्थान में शराबबंदी के लिए अनशन कर रहे गुरुशरण छाबड़ा का 3 नवम्बर की सुबह 4 बजे जयपुर के एसएमएस अस्पताल में निधन हो गया। छाबड़ा गत 23 अक्टूबर से आमरण अनशन पर थे और तबीयत बिगडऩे के बाद ही सरकार ने छाबड़ा को सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था। छाबड़ा ने अपना अनशन अस्पताल में भी जारी रखा और वे तब तक अनशन पर रहे जब तक उनकी सांस खत्म नहीं हुई। जो लोग आमरण अनशन का मतलब समझना चाहते है उन्हें छाबड़ा की मौत से समझना चाहिए।
आमरण अनशन व्यक्ति का अन्तिम हथियार होता है, इसलिए जब कोई व्यक्ति अपनी मांगों के लिए आमरण अनशन शुरू करता है तो प्रशासन और सरकार के नुमाइंदे अनशन स्थल पर जाकर संवाद करते हैं, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि गत 2 अक्टूबर से अनशन पर बैठे छाबड़ा से वसुंधरा राजे की सरकार के किसी भी प्रतिनिधि ने जाकर बात नहीं की। छाबड़ा अपनी घरेलू मांगों को लेकर अनशन पर नहीं थे बल्कि उनकी मांग सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई थी। पूर्व में जब शराबबंदी को लेकर छाबड़ा ने अनशन किया था तब सरकार ने एक लिखित समझौता किया। इस समझौते में भरोसा दिलाया गया कि प्रदेश में चरणबद्ध शराबबंदी की जाएगी। वसुंधरा सरकार को इस समझौते पर गत 3 सितम्बर से अमल शुरू करना था, लेकिन वसुंधरा सरकार अपने वायदे से मुकर गई। फलस्वरूप छाबड़ा को 2 अक्टूबर को फिर से आमरण अनशन पर बैठना पड़ा।
सरकार की असंवेदनशीलता देखिए कि सरकार ने किसी भी स्तर पर छाबड़ा से संवाद नहीं किया। गत विधानसभा के चुनाव में वसुंधरा राजे ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा था कि कांग्रेस की सरकार संवेदनहीन है। अब सवाल उठता है कि संवेदनहीन सरकार कांग्रेस की थी या वसुंधरा राजे की है। यह माना कि सरकार की कमाई सबसे ज्यादा शराब की बिक्री से ही होती है, लेकिन शराब की बिक्री के बाद जो बुराईयां उत्पन्न होती है उससे निपटने के लिए सरकार को कई गुना धनराशि खर्च करनी होती है। यदि सरकार शराबबंदी के लिए चरणबद्ध कार्यक्रम भी शुरू करती तो यह प्रदेश की जनता के हित में होता। एक माह में अनशनकारी छाबड़ा से कोई संवाद नहीं कर सरकार ने यह दर्शा दिया कि उसकी रूचि शराब को और बढ़ावा देने में है।
राठौड़ का बेतुका बयान :
छाबड़ा की मौत पर संवेदना प्रकट करने के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी को भेजा गया। इस अवसर पर राठौड़ ने कहा कि छाबड़ा का निधन आमरण अनशन की वजह से नहीं हुआ, बल्कि उनके दिमाग की नसों में खून जम जाने की वजह से निधन हुआ है। अपनी बात के सबूत में राठौड़ ने सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की रिपोर्ट भी दिखाई। समझ में नहीं आता कि राठौड़ स्वयं को बेवकूफ समझते है या प्रदेश की जनता को।
छाबड़ा पिछले एक माह से अनशन पर थे इसलिए तो शरीर में दूसरे रोग उत्पन्न हुए। मौत का कारण दिमाग की नस में खून जमना हो सकता है लेकिन यह रोग भूखे रहने की वजह से ही हुआ। राठौड़ के इस रवैये से भी यह जाहिर होता है कि छाबड़ा के निधन के बाद भी सरकार को कोई अफसोस नहीं है। खुद सीएम वसुंधरा राजे ने भी सुबह कोई संवेदना प्रकट करने के बजाए राजस्थान रिसर्जेट की तैयारियों में ही अपना ध्यान लगाया। राजे अपने निवास से एक सजे धजे ऑटो में बैठी और एसएमएस कन्वेन्सन हॉल तक पहुंची। राजे के लिए छाबड़ा की मौत कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए तो रिसर्जेट राजस्थान बेहद जरूरी है।
होना चाहिए जन आंदोलन :
छाबड़ा ने शराबबंदी के लिए जो अपना बलिदान दिया है उसको लेकर प्रदेश भर में जन आंदोलन होना चाहिए। इस जन आंदोलन के माध्यम से ही सरकार पर शराबबंदी के लिए दबाव डाला जाए। वसुंधरा राजे की सरकार किसी सत्याग्रह अथवा आमरण अनशन से समझने वाली नहीं है। छाबड़ा के बाद और समाजसेवी भी मर जाएं तो सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जन आंदोलन होगा तो वसुंधरा राजे को सीएम की कुर्सी खतरे में नजर आएगी, तभी इस सरकार पर कोई असर पड़ सकता है।
(एस.पी. मित्तल)
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