अवधेश पुरोहित
Present by - Toc News
भोपाल। पता नहीं आजकी राजनीति के चलते अब राजनेता न्यायालय को भी राजनीति का एक पार्ट बनाने के चक्कर में लगे हुए हैं। ताव में आकर और चूंकि मामला समाचार पत्रों की सुर्खियों में न रहे इसलिये कोई भी नेता किसी भी नेता के खिलाफ न्यायालय में मामला प्रस्तुत कर देता है, लेकिन बाद में वह अपने विपक्षी नेता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सिद्ध नहीं कर पाता अभी तक ऐसे कई मामले सामने आए, भाजपा के सांसद और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के खिलाफ न्यायालय में एक मामला दायर किया था लेकिन मजे की बात यह है कि इस मामले को न्यायालय में पेश करने के बाद ना तो वह कभी न्यायालय में गए और ना ही उनकी वकील यानि मुवक्किल और वकील दोनों ही पूरे मामले में अनुपस्थित रहे तो मामला न्यायालय ने स्वयं खारिज कर दिया।
ऐसा ही कुछ एक अन्य मामले में हुआ जिसमें नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे द्वारा माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में हुई अवैध नियुक्तियों का आरोप लगाते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ इस बात को लेकर मामला दायर किया गया कि इन नियुक्तियों में हुई गड़बडिय़ों को लेकर मुख्यमंत्री पर एफआईआर दर्ज की जाए लेकिन मामला तो बड़ा जोरशोर से प्रस्तुत कर दिया गया, लेकिन इस मामले के कई दिनों तक चलने के बाद कटारे द्वारा लगाये गये आरोपों के संबंध में वह मुख्यमंत्री के खिलाफ दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके और आखिरकार जैसा कि न्यायालय में होता है कि सबूत के अभाव में मामले को अदालत ने नामंजूर कर दिया।
सवाल यह उठता है कि आखिर राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए न्यायालयों का समय क्यों बर्बाद करने में लगे हुए हैं और यदि जब मामला किसी नेता के ऊपर आरोप लगाते हुए न्यायालय की शरण लेते हैं तो फिर पुख्ता दस्तावेज होना चाहिए, लेकिन ऐसा अभी तक नजर नहीं आ रहा है,
हाँ यह जरूर है कि छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर बड़े ही जोर शोर से न्यायालय की शरण में चले जाते हैं और आखिर कुछ दिनों बाद लगाए गये आरोपों से संबंधित दस्तावेज पेश नहीं कर पाते हैं और फिर मामला कुछ दिनों समाचार पत्रों में सुर्खियों में रहने के बाद यह मामला अस्वीकार कर दिया जाता है हालांकि कटारे के इस मामले को लेकर राजनीतिक हल्कों में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
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भोपाल। पता नहीं आजकी राजनीति के चलते अब राजनेता न्यायालय को भी राजनीति का एक पार्ट बनाने के चक्कर में लगे हुए हैं। ताव में आकर और चूंकि मामला समाचार पत्रों की सुर्खियों में न रहे इसलिये कोई भी नेता किसी भी नेता के खिलाफ न्यायालय में मामला प्रस्तुत कर देता है, लेकिन बाद में वह अपने विपक्षी नेता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सिद्ध नहीं कर पाता अभी तक ऐसे कई मामले सामने आए, भाजपा के सांसद और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के खिलाफ न्यायालय में एक मामला दायर किया था लेकिन मजे की बात यह है कि इस मामले को न्यायालय में पेश करने के बाद ना तो वह कभी न्यायालय में गए और ना ही उनकी वकील यानि मुवक्किल और वकील दोनों ही पूरे मामले में अनुपस्थित रहे तो मामला न्यायालय ने स्वयं खारिज कर दिया।
ऐसा ही कुछ एक अन्य मामले में हुआ जिसमें नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे द्वारा माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में हुई अवैध नियुक्तियों का आरोप लगाते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ इस बात को लेकर मामला दायर किया गया कि इन नियुक्तियों में हुई गड़बडिय़ों को लेकर मुख्यमंत्री पर एफआईआर दर्ज की जाए लेकिन मामला तो बड़ा जोरशोर से प्रस्तुत कर दिया गया, लेकिन इस मामले के कई दिनों तक चलने के बाद कटारे द्वारा लगाये गये आरोपों के संबंध में वह मुख्यमंत्री के खिलाफ दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके और आखिरकार जैसा कि न्यायालय में होता है कि सबूत के अभाव में मामले को अदालत ने नामंजूर कर दिया।
सवाल यह उठता है कि आखिर राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए न्यायालयों का समय क्यों बर्बाद करने में लगे हुए हैं और यदि जब मामला किसी नेता के ऊपर आरोप लगाते हुए न्यायालय की शरण लेते हैं तो फिर पुख्ता दस्तावेज होना चाहिए, लेकिन ऐसा अभी तक नजर नहीं आ रहा है,
हाँ यह जरूर है कि छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर बड़े ही जोर शोर से न्यायालय की शरण में चले जाते हैं और आखिर कुछ दिनों बाद लगाए गये आरोपों से संबंधित दस्तावेज पेश नहीं कर पाते हैं और फिर मामला कुछ दिनों समाचार पत्रों में सुर्खियों में रहने के बाद यह मामला अस्वीकार कर दिया जाता है हालांकि कटारे के इस मामले को लेकर राजनीतिक हल्कों में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
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