भोपाल @ अवधेश पुरोहित
Present by Toc News
राजनीति और क्रिकेट में कब क्या हो जाए यह कहा नहीं जा सकता ऐसा ही कुछ इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में होता दिखाई दे रहा है
कल तक नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की शान में कसीदे पडऩे वाले भाजपा के नेता अब बिहार चुनाव में हुई भाजपा की करारी हार के बाद मोदी और शाह के खिलाफ बयानबाजी करने लगे हैं, मजे की बात यह है कि जिन लालकृ ष्ण आडवाणी ने लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र मोदी क ा नाम आने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्मयंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम को आगे बढ़ाते हुए पहल की लेकिन उस समय संघ और तमाम मोदी समर्थक नेताओं के दबाव के चलते आडवाणी की योजना को ग्रहण लग गया, लेकिन जैसे ही बिहार चुनाव के परिणामों के आते ही इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से जिस तरह से मोदी मंत्रीमण्डल के सहयोगी नरेन्द्र तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान सहित हर छोटे-बड़े नेता जो इन दिनों प्रदेश में होने वाले उप चुनाव में सक्रिय हैं। सभी के द्वारा पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में की जा रही आमसभा या चौक-चौपाल, नुक्कड़ सभाओं में जो भाषण इन दिनों दिये जा रहे हैं
उनमें नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का नाम लेने तक में परहेज किया जा रहा है, ठीक इसके कुछ ही घंटों बाद दिल्ली में पार्टी के लोह पुरुष और मोदी की उपेक्षा के शिकार लालकृष्ण आडवाणी के निवास पर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं की एक अहम बैठक हुई जिसमें यशवंत सिन्हा, मुरलीमनोहर जोशी जैसे आदि नेताओं ने भाग लिया, बैठक के बाद जो बयान जारी हुआ उस बयान के बाद जो राजनीति में हलचल मची जो धीरे-धीरे ज्वाला बनने का प्रयास कर रही है। ठीक इसी तरह की हलचल प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुरु सुंदरलाल पटवा ने एक समाचार पत्र में आलेख के माध्यम से अपने चेले को यह संदेश दिया था कि मत चूको चौहान?
हालांकि इस आलेख के प्रकाशित होने के बाद प्रदेश के राजनेताओं में थोड़ी हलचल हुई लेकिन प्रदेश का आम नागरिक यह समझ नहीं पाया कि यह मत चूको चौहान? के मायने आखिर क्या हैं, तो वहीं राजनीति के जानकार भी असमंजस की स्थिति में रहे। इस आलेख के छपने के बाद प्रदेश में जो राजनीतिक उठा-पटक हुई, उस उठा-पटक के बाद प्रदेश में सत्ता की कमान उनके चेले शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आई। हाल ही में आडवाणी सहित भाजपा के नेताओं के द्वारा जो मोदी-शाह के खिलाफ बगावती सुर उभरे हैं उसको लेकर भी लोग पटवा के मत चूको चौहान? से जोडऩे में लगे हुए हैं क्योंकि यह सर्वविदित है कि एक लम्बे अर्से से शिवराज सिंह चौहान भी दिल्ली की रेस में हैं,
ऐसा अनुमान राजनीतिज्ञ के जानकार मानकर चल रहे हैं, इन दिनों चल रही राजनीतिक हलचल के दौरान लोग अब यह सोचने में लगे हुए हैं कि कहीं बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद जो राजनीतिज्ञ हलचल का माहौल इन दिनों देश में चल रहा है कहीं उसके पीछे पटवा के उस आलेख मत चूको चौहान? का अगला पड़ाव तो नहीं है, जिस पड़ाव की रूपरेखा पटवा के साथ-साथ लालकृष्ण आडवाणी और अन्य भाजपा नेताओं ने रखी थी,
यह सर्वविदित है कि पटवा हालांकि अस्वस्थ्य हैं मगर राजनीति के दांव-पेंच में आज भी वह किसी से कम नहीं हैं, यदि वह किसी से कम नहीं हैं तो उनके चेले शिवराजसिंह चौहान की रणनीति का राज्य ही नहीं देश के कई राजनेता लोहा मानते हैं? उल्लेखनीय है कि १९९८ के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जब प्रदेश के प्रभारी के रूप में नरेन्द्र मोदी को बनाया गया था, तो उस समय पटवा और उनके समर्थकों द्वारा मोदी का असहयोग किया गया था,
राजनीति के जानकार और पटवा विरोधियों का यह मानना है कि यदि १९९८ में पटवा ने मोदी को असहयोग न किया होता तो राज्य में २००३ की बजाए १९९८ में भाजपा सत्ता में आ गई होती? अब मोदी के खिलाफ आडवाणी का नया विद्रोह क्या रंग लाएगा यह तो भविष्य ही बताएगा।
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राजनीति और क्रिकेट में कब क्या हो जाए यह कहा नहीं जा सकता ऐसा ही कुछ इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में होता दिखाई दे रहा है
कल तक नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की शान में कसीदे पडऩे वाले भाजपा के नेता अब बिहार चुनाव में हुई भाजपा की करारी हार के बाद मोदी और शाह के खिलाफ बयानबाजी करने लगे हैं, मजे की बात यह है कि जिन लालकृ ष्ण आडवाणी ने लोकसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र मोदी क ा नाम आने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्मयंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम को आगे बढ़ाते हुए पहल की लेकिन उस समय संघ और तमाम मोदी समर्थक नेताओं के दबाव के चलते आडवाणी की योजना को ग्रहण लग गया, लेकिन जैसे ही बिहार चुनाव के परिणामों के आते ही इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से जिस तरह से मोदी मंत्रीमण्डल के सहयोगी नरेन्द्र तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान सहित हर छोटे-बड़े नेता जो इन दिनों प्रदेश में होने वाले उप चुनाव में सक्रिय हैं। सभी के द्वारा पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में की जा रही आमसभा या चौक-चौपाल, नुक्कड़ सभाओं में जो भाषण इन दिनों दिये जा रहे हैं
उनमें नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का नाम लेने तक में परहेज किया जा रहा है, ठीक इसके कुछ ही घंटों बाद दिल्ली में पार्टी के लोह पुरुष और मोदी की उपेक्षा के शिकार लालकृष्ण आडवाणी के निवास पर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं की एक अहम बैठक हुई जिसमें यशवंत सिन्हा, मुरलीमनोहर जोशी जैसे आदि नेताओं ने भाग लिया, बैठक के बाद जो बयान जारी हुआ उस बयान के बाद जो राजनीति में हलचल मची जो धीरे-धीरे ज्वाला बनने का प्रयास कर रही है। ठीक इसी तरह की हलचल प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुरु सुंदरलाल पटवा ने एक समाचार पत्र में आलेख के माध्यम से अपने चेले को यह संदेश दिया था कि मत चूको चौहान?
हालांकि इस आलेख के प्रकाशित होने के बाद प्रदेश के राजनेताओं में थोड़ी हलचल हुई लेकिन प्रदेश का आम नागरिक यह समझ नहीं पाया कि यह मत चूको चौहान? के मायने आखिर क्या हैं, तो वहीं राजनीति के जानकार भी असमंजस की स्थिति में रहे। इस आलेख के छपने के बाद प्रदेश में जो राजनीतिक उठा-पटक हुई, उस उठा-पटक के बाद प्रदेश में सत्ता की कमान उनके चेले शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आई। हाल ही में आडवाणी सहित भाजपा के नेताओं के द्वारा जो मोदी-शाह के खिलाफ बगावती सुर उभरे हैं उसको लेकर भी लोग पटवा के मत चूको चौहान? से जोडऩे में लगे हुए हैं क्योंकि यह सर्वविदित है कि एक लम्बे अर्से से शिवराज सिंह चौहान भी दिल्ली की रेस में हैं,
ऐसा अनुमान राजनीतिज्ञ के जानकार मानकर चल रहे हैं, इन दिनों चल रही राजनीतिक हलचल के दौरान लोग अब यह सोचने में लगे हुए हैं कि कहीं बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद जो राजनीतिज्ञ हलचल का माहौल इन दिनों देश में चल रहा है कहीं उसके पीछे पटवा के उस आलेख मत चूको चौहान? का अगला पड़ाव तो नहीं है, जिस पड़ाव की रूपरेखा पटवा के साथ-साथ लालकृष्ण आडवाणी और अन्य भाजपा नेताओं ने रखी थी,
यह सर्वविदित है कि पटवा हालांकि अस्वस्थ्य हैं मगर राजनीति के दांव-पेंच में आज भी वह किसी से कम नहीं हैं, यदि वह किसी से कम नहीं हैं तो उनके चेले शिवराजसिंह चौहान की रणनीति का राज्य ही नहीं देश के कई राजनेता लोहा मानते हैं? उल्लेखनीय है कि १९९८ के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जब प्रदेश के प्रभारी के रूप में नरेन्द्र मोदी को बनाया गया था, तो उस समय पटवा और उनके समर्थकों द्वारा मोदी का असहयोग किया गया था,
राजनीति के जानकार और पटवा विरोधियों का यह मानना है कि यदि १९९८ में पटवा ने मोदी को असहयोग न किया होता तो राज्य में २००३ की बजाए १९९८ में भाजपा सत्ता में आ गई होती? अब मोदी के खिलाफ आडवाणी का नया विद्रोह क्या रंग लाएगा यह तो भविष्य ही बताएगा।
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