अवधेश पुरोहित
भोपाल. झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे में हुए हादसे जिसमें लगभग १०० से ज्यादा जानें गईं और सैंकड़ों घायल हुए उनमें से कईयों का इलाज अभी भी चल रहा है, लेकिन इस घटना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तत्परता से हादसे की जगह पर पहुंचकर लोगों के दुख दर्द में सहभागी होने और उनको हर संभव मदद पहुंचाने की जो तत्परता दिखाई वह लगता है अब धीमी पड़ गई और इस हादसे के मुख्य आरोपी राजेन्द्र कसावा को आज तक राज्य की पुलिस नही ढूंढ पाई कसावा के मामले में स्थिति यह है कि कभी जांच अधिकारी कहते हैं कि वह मर गया तो कभी कहते हैं कि वह दिल्ली और बाम्बे जैसे महानगरों में है, लेकिन आज तक उसे पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई।
तो वहीं दूसरी ओर पेटलावद में हुए जिलेटिन विस्फोटक मामले में भी सरकार की लचर कार्यवाही से जांच प्रभावित हो रही है, करीब एक पखवाड़े पहले न्यायालय की अनुमति के बावजूद मुख्य आरोपी राजेन्द्र कसावा के परिजनों एवं एक अन्य का नार्को ब्रेन मेपिंग टेस्ट शासन से पर्याप्त बजट न मिलने के कारण अधर में है। इधर गांधी नगर की जिस नार्क ो टेस्ट यूनिट में जांच होनी है उसके द्वारा नियमित अवधि बीत जाने के बावजूद भी जांच नहीं हो पा रही है। उसका मुख्य कारण है कि सरकार द्वारा इस जांच के
लिये जितनी राशि की आवश्यकता है उसे उपलब्ध नहीं करा पा रही है। इस तरह की जांच के १९ अक्टूबर को कोर्ट से अनुमति मिल गई थी इस टेस्ट में खर्च होने वाली राशि का बजट आज तक नहीं मिला वहीं गांधी नगर गुजरात की शासकीय नार्को टेस्ट यूनिट को दो से दस नवम्बर तक का समय नार्को, ब्रेन मेपिंग टेस्ट के लिये दिया गया जांच दल के अधिकारियों का कहना है कि प्रति व्यक्ति लगभग ५२ हजार रुपए इस जांच पर अनुमानित खर्च आना है
और यह राशि न मिलने के कारण यह जांच अटकी हुई है, यह उल्लेखनीय है कि जब यह हादसा हुआ था तो इसके बाद जो कसावा को लेकर जो खबरें आई थीं उसमें कहीं कसावा को भाजपा से जुड़ा बताया गया था तो यह भी खबर आई थी कि कसावा भाजपा के एक नेता के दोपहिया वाहन पर बैठकर गायब हो गया। लेकिन घटना के इतने समय बावजूद भी न तो जांच एजेंसी यह पुख्ता प्रमाण जुटा पाई कि आखिर कसावा कहां है?
भोपाल. झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे में हुए हादसे जिसमें लगभग १०० से ज्यादा जानें गईं और सैंकड़ों घायल हुए उनमें से कईयों का इलाज अभी भी चल रहा है, लेकिन इस घटना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तत्परता से हादसे की जगह पर पहुंचकर लोगों के दुख दर्द में सहभागी होने और उनको हर संभव मदद पहुंचाने की जो तत्परता दिखाई वह लगता है अब धीमी पड़ गई और इस हादसे के मुख्य आरोपी राजेन्द्र कसावा को आज तक राज्य की पुलिस नही ढूंढ पाई कसावा के मामले में स्थिति यह है कि कभी जांच अधिकारी कहते हैं कि वह मर गया तो कभी कहते हैं कि वह दिल्ली और बाम्बे जैसे महानगरों में है, लेकिन आज तक उसे पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई।
तो वहीं दूसरी ओर पेटलावद में हुए जिलेटिन विस्फोटक मामले में भी सरकार की लचर कार्यवाही से जांच प्रभावित हो रही है, करीब एक पखवाड़े पहले न्यायालय की अनुमति के बावजूद मुख्य आरोपी राजेन्द्र कसावा के परिजनों एवं एक अन्य का नार्को ब्रेन मेपिंग टेस्ट शासन से पर्याप्त बजट न मिलने के कारण अधर में है। इधर गांधी नगर की जिस नार्क ो टेस्ट यूनिट में जांच होनी है उसके द्वारा नियमित अवधि बीत जाने के बावजूद भी जांच नहीं हो पा रही है। उसका मुख्य कारण है कि सरकार द्वारा इस जांच के
लिये जितनी राशि की आवश्यकता है उसे उपलब्ध नहीं करा पा रही है। इस तरह की जांच के १९ अक्टूबर को कोर्ट से अनुमति मिल गई थी इस टेस्ट में खर्च होने वाली राशि का बजट आज तक नहीं मिला वहीं गांधी नगर गुजरात की शासकीय नार्को टेस्ट यूनिट को दो से दस नवम्बर तक का समय नार्को, ब्रेन मेपिंग टेस्ट के लिये दिया गया जांच दल के अधिकारियों का कहना है कि प्रति व्यक्ति लगभग ५२ हजार रुपए इस जांच पर अनुमानित खर्च आना है
और यह राशि न मिलने के कारण यह जांच अटकी हुई है, यह उल्लेखनीय है कि जब यह हादसा हुआ था तो इसके बाद जो कसावा को लेकर जो खबरें आई थीं उसमें कहीं कसावा को भाजपा से जुड़ा बताया गया था तो यह भी खबर आई थी कि कसावा भाजपा के एक नेता के दोपहिया वाहन पर बैठकर गायब हो गया। लेकिन घटना के इतने समय बावजूद भी न तो जांच एजेंसी यह पुख्ता प्रमाण जुटा पाई कि आखिर कसावा कहां है?
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