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इन दिनों टॉयलेट बाज़ार में सबसे ज़्यादा गर्म विषय चल रहा है। हर कोई इस पर चर्चा कर रहा है फिर चाहे प्रधानमंत्री हो, या बॉलीवुड के ख़िलाड़ी अक्षय कुमार हो सब बस टॉयलेट पर ही बात कर रहे हैं।
सरकार भी पीछे पड़ी है कि कैसे भी घर में टॉयलेट बनवालो चाहे इसके लिए पैसे हमसे ले लो। मगर सब कुछ हो जाने के बाद भी टॉयलेट को लेकर कुछ बातें बची रह गई हैं। जिनके बारे में कितना ही सोच लो मगर फिर भी बात समझ से ऊपर चली जाती है।
ऐसा ही एक सवाल है कि पब्लिक टॉयलेट्स में दरवाज़ा फर्श से कुछ इंच ऊपर क्यों खत्म हो जाता है। ऐसा लगता है मानों यह दरवाज़ा नहीं बल्कि खिड़की है। ऐसे टॉयलेट्स आपने ऑफिस, मल्टीप्लेक्स या मॉल में ज़रूर देखे होंगे। आज मैं आपको इसके पीछे की वजह बताता हूँ।
दरअसल होता यह है कि पब्लिक टॉयलेट्स दिन भर इस्तेमाल होते रहते हैं। जिसकी वजह से इनका फर्श लगातार खराब होता रहता है। चूँकि फर्श और दरवाज़े के बीच जगह होने से टॉयलेट में पोछा लगाना आसान हो जाता है, और इसकी वजह से वाइपर और मॉप घुमाने में आसानी रहती है।
ऐसे मामले भी हुए हैं जब टॉयलेट के अंदर मेडिकल इमरजेंसी हो गई और दरवाज़ा बंद होने से बाहर लोगों को मालूम ही नहीं चला कि अंदर किसी को मदद की ज़रूरत है। ऐसी स्थिति में ऊंचा दरवाज़ा हो तो किसी के अंदर फंस जाने पर बाहर वालों को मालूम चलने की संभावना बढ़ जाती है।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि छोटे बच्चे अंदर से टॉयलेट लॉक कर लेते हैं और उन्हें समझ नहीं आता कि लॉक खोलें कैसे। अगर बच्चे की मदद के लिए कोई न हो, तो बच्चे दरवाज़े के नीचे से बाहर निकल सकते हैं।
एक कारण ये भी है कि ऊंचे दरवाज़े से बाहर वाले को आपके पैर दिखते रहते हैं। इससे कोई भूल कर भी आपके काम में दखलंदाजी न कर सके।
अगर देखा जाए तो पब्लिक टॉयलेट्स में छोटे दरवाज़े लगाने का विचार सबसे पहले अमरीका में आया। वहां किसी के दिमाग में आइडिया आया कि छोटा दरवाज़ा लगाने से लकड़ी (या प्लाई) का बिल कम किया जा सकता है। अब आप सोचेंगे कुछ इंच लकड़ी बचाकर क्या कर लेंगे तो ऐसा है कि एक पब्लिक टॉयलेट के लिए कई दरवाज़ों की ज़रूरत पड़ती है। मॉल या एयरपोर्ट के मामले में इनकी संख्या दर्जनों तक पहुंच जाती है, तो दरवाज़ों में थोड़ा-थोड़ा करके काफी बचत हो सकती है।
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