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सुप्रीम कोर्ट ने दो अगस्त को इस पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. इस संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर कर रहे हैं. इस मसले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है.
नई दिल्ली: निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों में शामिल है या नहीं, इस बात का फैसला सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधिक खंडपीठ गुरुवार को करेगी. पैन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने मामले को 9 जजों की बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया.
अब इस मामले पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता में 9 जजों की खंडपीठ ने 19 जुलाई से इस मामले पर सुनवाई की. इससे पहले 18 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह तय करना जरूरी है कि संविधान के तहत निजता के अधिकार में क्या शामिल है और क्या नहीं. इसलिए इस मामले को 9 सदस्यों वाली पीठ के पास भेजा जाना चाहिए.
केंद्र सरकार सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सूचनात्मक निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के लेवल पर नहीं ले जाया जा सकता. वेणुगोपाल ने कहा कि संविधान बनाने वालों ने जानबूझकर निजता को मौलिक अधिकार के दायरे बाहर रखा था. आधार ऐक्ट के तहत निजता को संरक्षित करने का प्रावधान किया गया, इससे साफ है कि प्रत्येक निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. केंद्र ने कोर्ट सभी दलीलें पूरी कर ली हैं.
बता दें कि 1954 में 8 जजों की बेंच ने और फिर 1962 में 6 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया था कि निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार नहीं है. इन्हीं फैसलों के आधार पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मूलभूत अधिकारों के नाम पर आधार कार्ड को चुनौती देनी वाली किसी भी जनहित याचिका दाखिल नहीं होनी चाहिए.
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