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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
विश्व-बंधुत्व की चौखट पर आकाशवाणी की दस्तक
विश्वस्तर पर चिकित्सा के क्षेत्र में ध्वनियों के उपयोग का अविष्कार होने के बाद दुनिया के दरवाजे पर पहली बार संगीत मे अपनी सम्पन्नता की दस्तक दी है। मनोरंजन तक सीमित रहने वाली कर्णप्रिय आवृतियां आधुनिकता की दिनचर्या में शामिल होने लगी है।
देश में तो प्रधानमंत्री तक ने नागरिकों से अपने ‘मन की बात’ करने के लिए रेडियो को ही माध्यम बनाया है। दूरदर्शन, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि की भीड में भी सुकून भरे स्वस्थ मनोरंजन की तलाश रेडियो के बहुआयामी कार्यक्रमों पर पहुंच कर ही पूरी होती है। दूसरी ओर रेडियो को भी इस नये परिवेश की सतरंगी मागों को पूरा करने की चुनौतियों से जूझना पड रहा है। विचार-मंथन चल ही रहा था फोन की घंटी बज उठी।
आकाशवाणी केन्द्र छतरपुर के निदेशक हीरालाल जी का फोन था। उन्होंने मिलने की इच्छा व्यक्त की। हम भी आकाशवाणी के विभिन्न पक्षों को जानने के इच्छुक थे, सो तत्काल मिलने की स्वीकृति दे दी। स्थान निर्धारित हुआ उनका कार्यालय और समय दोपहर का भोजनावकाश। निश्चित समय पर हम आमने-सामने थे। औपचारिकताओं के बाद कुशलक्षेम पूछने-बताने का क्रम पूरा हुआ।
हमने आधुनिक श्रोताओं की अत्याधुनिक मांगों और रेडियो की संकुचित सीमाओं को उजागर करते हुए प्रश्न दाग दिये। वे अतीत में कहीं डूबते चले गये। सन् 1982 का वो दिन उनके सामने खडा हो गया जब प्रसारण अधिशाषी के पद पर नियुक्ति के उपरान्त पहली बार आकाशवाणी में दायित्व सम्हाला था। प्रसारण की गुणवत्ता, तकनीकी नियंत्रण तथा श्रोताओं के प्रतिनिधि का संयुक्त दायित्वबोध उन्हें जकडे था।
उस समय मनोरंजन, शिक्षा और सूचना के मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संकल्पित इस संस्थान के कांधों पर देश की दिशा और दशा का अधिकांश हिस्सा टिका था। यादों के दायरे से बाहर लाते हुए हमने उन्हें वर्तमान का बोध कराया। स्मृतियों के ऊंची-नीची घाटियों में खो जाने के लिए क्षमा मांगते हुए उन्होंने कहा कि आकाशवाणी ने हमेशा ही देश की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को न केवल मंच देने का काम किया बल्कि नये प्रयोगों के माध्यम से नवीनता का बोध भी कराया।
इसकी लोकप्रियता को टेप रिकार्डर और कैसेट के आगमन के बाद धक्का लगा। लोगों ने 10 रुपये की कैसेट में मनमानी दिशा को कैद कर मनोरंजन का साधन बना लिया। फिर सीडी और अब पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड से लेकर इंटरनेट तक के अविष्कारों ने लोगों को निरंकुश रास्तों पर दौडने की छूट दे दी है। इच्छाओं से जुडा चिन्तन, चिन्तन से जुडी खोज, खोज से निर्मित आचरण और आचरण से जुडे व्यवहार ने पुरातन सामाजिक संरचना तक को तार-तार कर दिया है।
विभिन्न क्षेत्रों के विश्लेषण की पर केन्द्रित हो रहे उत्तर को हमने सीधी पटरी पर लाने की गरज से रेडियो के नये प्रयोगों की ओर उनका ध्यानाकर्षित किया। लोक संपदा संरक्षण परियोजना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय संस्कृति के अभिन्न अंग बनकर लम्बी पारी खेलने वाले कारकों को संरक्षित करने के लिए रेडियो को माध्यम बनाया गया है। परम्परागत गायकी, वाद्य-यंत्र, लय-ताल-बंदिश सहित विभिन्न विधाओं को संकलित करने के लिए सभी केन्द्रों को निर्देशित किया गया है। इस परियोजना में हमारी टीम दूर दराज के ग्रामीण अंचलों में जाकर हाशिये के पार पहुंच चुकी विधाओं की खोज करती है, रिकार्डिंग करती है, लिपिवद्ध करती है, अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करती है, संगीत की स्वर-लिपि तैयार करती है।
यह सब कुछ हमारे संग्रहालय में संरक्षित किया जा रहा है, ताकि गौरवशाली अतीत की सुखद स्मृतियों के मधुर स्पन्दन आने वाली पीढियों को भी रोमांचित कर सकें। संगीत की स्वर-लिपि को विस्तार में जानने की जिग्यासा हुई तो उन्होंने स्पष्ट किया कि इस माध्यम से बुंदेली विधा की फाग पर अंग्रेजी सहित विभिन्न भाषाओं के गीतों को गाया जा सकता है। पाण्डवानी पर बुंदेली गायकी सम्भव है। कुल मिलाकर स्वर-लिपि उपलब्ध होने से किसी भी विधा पर किसी भी भाषा को संयोजित किया जा सकता है।
इसे आप विश्व-बंधुत्व की चौखट पर आकाशवाणी की दस्तक भी कह सकते हैं। चर्चा चल ही रही थी कि नौकर ने आकर सेन्टर टेबिल पर चाय तथा स्वल्पाहार की प्लेटें सजाना शुरू कर दी। हमें भी आकाशवाणी की नई तैयारियों की जानकारी मिली और विश्व-बंधुत्व की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों की बानगी भी। विचार-मंथन काफी हद तक शान्त हो चुका था, सो पुनः इस विषय पर चर्चा का आश्वासन देकर वार्तालाप पर विराम लगाया और पहुंच गये चाय-स्वल्पाहार को सम्मान देने हेतु सेंटर टेबिल पर। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253
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