शिक्षा माफियाओं के शिकंजे में बच्चे और अभिभावक, मान्यता के मापदंडों की उड़ा रहे धज्जिया |
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व्यूरो चीफ गाडरवारा // अरूण श्रीवास्तव : 8120754889
गाडरवारा / सालीचौका। देष में 6 से 14 आयुवर्ग के बच्चों के लिए षिक्षा को मैलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है, वहां षिक्षा बांधुआकरण के दौर से गुजर रही है षिक्षा माफियाओं की मनमानी से बच्चों और अभिभावकों का जीना दूभर हो गया है। नकली प्रचार-प्रसार कर सुविधाओं के वादे निजी स्कूलों में बच्चों के दाखिला लेने के बाद सच्चाई सामने आती है।
नगर समेत क्षेत्र में ऐसे कई निजी स्कूल संचालित हो रहे है, जो कि षिक्षा विभाग के मापदण्डों पर खरे नहीं है। फिर भी षिक्षा विभाग के अधिकारियों की कृपा दृष्टि से निजी स्कूल संचालक वे-रोकटोक अपनी दुकानदारी चला रहे है। सरकार मुफ्त षिक्षा का दम भर रही है, जबकि ड्रेस, किताबे, जूतों, बरसाती एवं अन्य इंतजाम करने में पालकों का दम फूल रहा है। निजी स्कूलों में जहां मनमानी का आलम हैं,
वहीं सरकारी स्कूलों में नये-नये प्रयोगों की भरमार यही वजह है, कि षिक्षा में गुणवत्ता की बात सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ा कर ही की जा रही है। षिक्षा विभाग के जिला में बैठे आला अधिकारी भी शासकीय स्कूलों की गुणवत्ता पर अनदेखी कर रहे है। स्कूल चलो अभियान फ्लिफ सावित हो रहा है, क्योकि जिस उद्येष्य से यह कार्यक्रम किया जा रहा है, वह बच्चो को स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित करना होता है। परन्तु ग्रामीण इलाको में आज भी बच्चे स्कूलों का मुह तक नहीं देख पाते।
देषभर में एकसमान षिक्षा की बात हो रही है, जबकि एक ही नगर एवं कस्वों षहर के स्कूलों की षिक्षा में एकरूपता नजर नहीं आ रही है सबकी किताबें अलग-अलग, सबकी परीक्षाएं अलग-अलग और परिणाम प्रतिवेदन में भी एकरूपता नहीं है, ऐसी स्थिति में षिक्षा, माफियाओं के चंगुल से कैसे मुक्त हो सकती है, हर साल फीस नियंत्रण, गणवेष और किताबों को कमीषनबाजी के चक्कर से बचाने के लिए सरकारी फरमान जारी किया जाता है, जो कि हर एक नए सत्र की परमपरा बन कर रह गया है। यह ज्ञात रहे कि संविधान के अनुच्छेद 21 के में संषोधन कर षिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 लागू किया गया है, जो 6 से 14 आयुवर्ग के बच्चों को एक समान गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक एवं निःषुल्क प्रारंभिक षिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
स्कूलों एवं दुकानदारों की कमीषन खोरी में लुट रहे है अभिभावक
निजी षिक्षण संस्थाओ द्वारा इंगलिष मीडियम पढ़ाई के नाम पर व विषेष व्यवस्थाये उपल्बध कराने हेतु संस्थाओ के बीच होड़ लगी हुई है, येसे में अभिभावक किसी अच्छी निजी संस्था में बच्चों का दाखिला करा देते है और निजी संस्थाओ की कमीषन वाली फिक्स दुकानों से खरीदी करने के लिए अभिभावको को बच्चों को अध्ययन सामग्र्री की लिस्ट थमा दी जाती है, जिसमें ड्रेस, किताबें, जूते, बरसाती, टिफिन, बैग इत्यादि खरीदने के लिए बच्चों और पालकों को बाध्य किया जाता है इस मनमानी पर अंकुष के लिए हर साल सरकार फरमान किया जाता है,
फिर भी यह गोरखधंधा बदस्तूर जारी है वहीं नगर में कुछेक दुकानों पर निजी संस्थाओ की किताबे कॉफीयाँ यहाँ तक की ड्रेस भी महगें दामो पर बेचीं जा रही है, जबकि अन्य जगहो पर वहीं सामग्री कम मूल्यों पर उपल्बध हो जाती है। अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि निजी संस्थाओ एवं दुकानदारों के बीच कमीषन खोरी का खेल चल रहा है। बेपरवाह है बच्चों की जान प्रति- अभिभावकों की जेब हलकी करने में माहिर षिक्षा माफिया बच्चों की जान के प्रति बेपरवाह है। हादसों के बाद भी स्कूलों की बस परिवहन व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही है।
यद्यपि पिछले दिनों हुए हादसे के बाद स्कूल बसों की सघन चेकिंग कर ली गई और फिर वही ढाक के तीन पात स्कूलो के पास अनफिट दर्जनो वाहन है। दिन में भेड़-बकरी की तरह स्कूली बच्चों को ढोया जा रहा है। देहाती इलाको से बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए मनमाना किराया लिया जाता है, कुछ बड़े प्राइवेट स्कूलो को छोड़कर अन्य में परिवहन के इंतजाम मौत को दावत देते प्रतीत हो रहे है। इन स्कूलो में दर्जनो भर वैन और आटो रिक्सा बच्चों को ढो रहे है, जिन स्कूलों के पास बसों का इंतजाम है, वे सुप्रीम कोर्ट के दिषा निर्देषों को सरेराह रौंदती फिर रही है।
कम जगह में संचालित हो रही है निजी संस्थाए खेल ग्राउण्ड नहीं
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सत्र 2018-19 में उसी स्कूल को मान्यता मिल सकेगी, जिसके पास एक एकड़ जमीन होगी, इसके पुराने नियम के तहत हाईस्कूल के 4000 वर्गफीट तथा हायरसेकडण्री के लिए 5600 वर्गफीट जमीन होना चाहिए, जबकि नगर एवं आस-पास के ग्रामो मेंं 600 से 1500 वर्गफीट जमीन पर स्कूल खोल दिए गए है और उन्हें जिम्मेदार अफसरों ने मान्यता भी प्रदान की है। कई स्कूल तो एक-दो कमरों में ही संचालित हो रहे हैं।
षर्ते जरूरी लेकिन अमल नहीं
षासन द्वारा जरूरी षर्ते भी लागू की गयी है, लेकिन निजी संस्थाये उन पर अमल नहीं करती मान्यता के लिए प्रत्येक स्कूल में अब एक संगीत षिक्षक, खेल षिक्षक, प्रयोगषाला सहायक और एक कार्यालय सहायक के साथ एक सलाहकार रखना भी जरूरी होगा, जो मनोविज्ञान मे स्नानतक हो इस षर्त का सही ढंग से पालन कर लिया जाए तो जिले भर के नब्बे फीसदी निजी स्कूल बंद हो जाएगें। ये स्कूल सरकारी कानूनी कायदों पर भले ही खरे न उतर रहे हों, मगर सरकार से अपनी बात जरूर मनवा लेते है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलो में अकसर हिन्दी माध्यम से पास हुये षिक्षक नियुक्त किये जाते है। इसलिए छात्रों के वौध्दिक विकास में भी कमी है।
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