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भूमि के डायवर्सजन के लिये अब किसी को भी अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के न्यायालय से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। अब भूमि स्वामी अपनी भूमि का विधि-सम्मत जैसा चाहे, डायवर्सन कर सकेगा। उसे केवल डायवर्सन के अनुसार भूमि उपयोग के लिये देय भू-राजस्व एवं प्रीमियम की राशि की स्वयं गणना कर राशि जमा करानी होगी और इसकी सूचना अनुविभागीय अधिकारी को देनी होगी।
यह रसीद ही डायवर्सन का प्रमाण मानी जायेगी। अनुज्ञा लेने का प्रावधान अब समाप्त किया जा रहा है। राजस्व, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया है कि इस संबंध में विधानसभा में मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता (संशोधन) विधेयक-2018 पारित किया जा चुका है।
भू-राजस्व संहिता में अब तक हुए 58 संशोधन
श्री गुप्ता ने बताया कि मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता-1959 में अब तक 58 संशोधन किये जा चुके हैं। इसके बाद भी जन-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये जरूरी संशोधनों के सुझाव के लिये भूमि सुधार आयोग गठित किया गया था। आयोग के सुझावों के आधार पर भू-राजस्व संहिता में संशोधन किये गये हैं।
नामांतरण के बाद मिलेगी नि:शुल्क प्रति
नामांतरण का आदेश होने के बाद अब सभी संबंधित पक्षों को आदेश और सभी भू-अभिलेखों में दर्ज हो जाने के बाद उसकी नि:शुल्क प्रति दी जायेगी। यह प्रावधान भी किया गया है कि भूमि स्वामी जितनी चाहे, उतनी भूमि स्वयं के लिये रखकर शेष भूमि बाँट सकेगा।
निजी एजेंसी करेगी सीमांकन
सीमांकन के मामले जल्दी निपटाने के लिये अब निजी प्राधिकृत एजेंसी की मदद ली जायेगी। प्रत्येक जिले के लिये एजेंसी पहले से तय की जायेगी। यदि तहसीलदार द्वारा सीमांकन आदेश के बाद पक्षकार संतुष्ट नहीं है, तो वह अनुविभागीय अधिकारी को आवेदन कर सकेगा। अनुविभागीय अधिकारी द्वारा विशेषज्ञ कर्मचारियों की टीम से सीमांकन करवाया जायेगा। पहले यह मामले राजस्व मण्डल ग्वालियर में प्रस्तुत होते थे।
ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र में राजस्व सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त से संबंधित रहे भू-राजस्व संहिता के अध्याय-7 एवं 8 को हटाकर एक अध्याय-7 भू-सर्वेक्षण के रूप में रखा जा रहा है। अब राजस्व सर्वेक्षण के स्थान पर भू-सर्वेक्षण की कार्यवाही कलेक्टर के नियंत्रण में करवाई जायेगी। अब पूरे जिले को भू-सर्वेक्षण के लिये अधिसूचित करने की जरूरत नहीं रहेगी। अब तहसील अथवा तहसील से भी छोटे क्षेत्र को भी अधिसूचित किया जा सकेगा। खसरे में छोटे-छोटे मकानों के प्लाट का भी इंद्राज हो सकेगा।
पटवारी हल्के के स्थान पर होगा सेक्टर का नाम
भू-अभिलेखों के संधारण तथा शहरी भूमि प्रबंधन को अधिक व्यवस्थित बनाने के लिये शहरी क्षेत्रों में अब पटवारी हल्के के स्थान पर सेक्टर का नाम दिया जायेगा। आयुक्त भू-अभिलेख को सेक्टर पुनर्गठन के अधिकार होंगे।
भू-अभिलेख संधारण के मामलों में ऐसी भूमियाँ, जिनका कृषि भूमि में कृषि से भिन्न प्रयोजन के लिये डायवर्सन कर लिया जाता है, उन्हें नक्शों में ब्लाक के रूप में दर्शाया जायेगा। यदि अनेक भूखण्ड धारक हैं, तो उनके अलग-अलग भू-खण्ड दर्शाये जायेंगे।
अतिक्रमण पर एक लाख का जुर्माना
शासकीय भूमियों पर अतिक्रमण के मामलों में अब अधिकतम एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। निजी भूमियों के मामले में 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान होगा। इसके साथ ही जिस भूमि पर अतिक्रमण होगा, उसे अतिक्रामक से 10 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष के मान से मुआवजा भी दिलाया जा सकेगा। अभी अतिक्रमित भूमि के मूल्य के 20 प्रतिशत तक अर्थदण्ड के प्रावधान थे।
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