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रूस की S-400 मिसाइल प्रणाली का इस्तेमाल युद्ध में कभी नहीं किया गया है फिर भी यह दुनिया भर में कलह का कारण बन रहा है। चीन परेशान हो रहा हैं क्योंकि पड़ोसी देश रूसी हार्डवेयर के साथ अपनी सैन्य पहुंच को बढ़ावा दे रहा है, भारत भी इस रेस में काफी आगे है।
प्रतिद्वंद्वियों सऊदी अरब और कतर के बीच तनाव बढ़ गया है क्योंकि दोनों देशों ने अपने संभावित सौदों पर मास्को के साथ बातचीत की है, जबकि NATO सदस्य तुर्की द्वारा S-400 खरीदने के हालिया फैसले ने उस पर भी अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे को बढ़ा दिया है।
रूसी सैन्य सूचना के एक प्रमुख प्रकाशक मॉस्को डिफेंस ब्रीफ के अनुसार, अल्जीरिया, बेलारूस, ईरान और वियतनाम के साथ भी इस एयर डिफेंस सिस्टम की डील होने की संभावना है, रूस अगले 12 से 15 वर्षों में इन डील से करीब 30 अरब डॉलर का सेल कर सकता है।
यह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की न केवल रूसी हथियार उद्योग का उपयोग करने की योजना का हिस्सा है बल्कि अरबों डॉलर कमाने और अमेरिका और उसके कुछ प्रमुख सहयोगियों के बीच कलह पैदा कराने के प्ल्पन का भी हिस्सा है।
S-500, अमेरिकी THAAD एंटी-बैलिस्टिक-मिसाइल सिस्टम की तुलना में एक अडवांस संस्करण है जो हाइपर्सोनिक क्रूज मिसाइलों को भी मार गिराने में सक्षम है, इसके साल 2022 तक उत्पादन में प्रवेश करने की उम्मीद है।
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