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नई दिल्ली: जहां एक ओर मोदी सरकार एक जुलाई को जीएसटी की पहली वर्ष गांठ को उत्सव की तरह मनाने की तैयारी में है. वहीं, दूसरी ओर व्यापारियों व टैक्स एक्सपर्ट्स के मन में जीएसटी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म( RCM ) का डर सता रहा है. आलम यह है कि रजिस्टर्ड डीलरों ने अनरजिस्टर्ड डीलरों के साथ व्यापार करना रोक दिया है.
वजह है सरकार की ओर से आरसीएम पर दी गई छूट की समय सीमा का समाप्त होना. दरअसल, आरसीएम पर दी गई छूट 30 जून को समाप्त हो रही है और एक जुलाई से यह लागू हो जाएगा तो टैक्स पेयर्स के लिए खानापूर्ती का काम ज्यादा बढ़ जाएगा. खासतौर से छोटे व्यापारियों के लिए यह दिक्कत की बात होगी, जो तकनीकी तौर पर ज्यादा मजबूत नहीं हैं.
चैम्बर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई) के कन्वीनर बृजेश गोयल और अध्यक्ष सुभाष खंडेलवाल का कहना है कि हमने आज केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली को रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म खत्म करने को लेकर पत्र लिखा है क्योंकि रिवर्स चार्ज मकेनिज्म 9(4) एक जुलाई से फिर से लागू होने जा रहा है. अगर पिछले वर्ष की बात करें तो जब जीएसटी लागू हुआ था तो तीन मुद्दों पर सबसे ज्यादा नाराजगी जताई गई थी. ये मुद्दे थे हाई टैक्स रेट्स, पेचिदा रिटर्न सिस्टम और रिवर्स चार्ज.
केंद्र सरकार ने तीनों ही मुद्दों पर विचार विमर्श कर देश के व्यापारियों को तीनों ही स्तर पर अपनी तरह से राहत दी थी. रिवर्स चार्ज की बात करें तो नाराजगी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 9(4) वाले रिवर्स चार्ज को 13 अक्टूबर 2017 को जारी एक आदेश के ज़रिये 31 मार्च 2018 तक के लिए सस्पेंड कर दिया था. इसके बाद दूसरा आदेश जारी करते हुए इस सस्पेंशन को 30 जून 2018 तक के लिए बढ़ा दिया गया लेकिन अब 30 जून नजदीक है और अभी तक सरकार की ओर से किसी तरह का कोई नया आदेश जारी नहीं किया गया है. संभावना है कि एक जुलाई से रिवर्स चार्ज मकेनिज्म लागू हो जाएगा.
इस बात को लेकर सभी वर्ग के व्यापारियों के बीच असमंजस की स्थिति है. कुछ स्तर पर रजिस्टर्ड व्यापारी अनरजिस्टर्ड व्यापारियों के साथ व्यापार करना भी टाल रहे हैं. बृजेश गोयल का कहना है कि रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म को किसी भी हाल में लागू नहीं करना चाहिए. इस संदर्भ में हम दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया से भी मिलकर यह अपील करेंगे कि वह भी जीएसटी काउंसिल से यह अपील करें कि आरसीएम को लागू न किया जाए. आरसीएम से सरकार को किसी तरह की कोई कमाई नहीं होती है. लेकिन टैक्स पेयर पर तकनीकी तौर पर बोझ जरुर पढ़ता है. खासतौर से छोटे डीलरों को जो इस काम के लिए टैक्स प्रफेशनल्स पर निर्भर है.
क्या है आरसीएम 9(4)
साधारण शब्दों में कहें तो जब कोई रजिस्टर्ड डीलर किसी अनरजिस्टर्ड डीलर से माल खरीदता है या सेवा लेता है, तो उस लेनदेन पर रजिस्टर्ड डीलर को रिवर्स चार्ज का जीसटी वाला इन्वॉइस बनाना होता है. उसका जीसटी भी जमा कराना होता है. जिसके बाद जमा किये हुए जीसटी का क्रेडिट फार्म 3बी की रिटर्न के माध्यम ले लिया जाता है. इस प्रक्रिया में टैक्स पेयर ने जो जीएसटी भरा होता है, वह उसे वापस मिल जाता है लेकिन उसे एक प्रक्रिया से गुजरना होता है. सरकार के खाते में किसी तरह की कोई आमदनी नहीं होती. हां यह जरुर होता है कि जो भी लेन देन हुआ, वह सब ऑन रिकार्ड हो जाता है.
साधारण शब्दों में कहें तो जब कोई रजिस्टर्ड डीलर किसी अनरजिस्टर्ड डीलर से माल खरीदता है या सेवा लेता है, तो उस लेनदेन पर रजिस्टर्ड डीलर को रिवर्स चार्ज का जीसटी वाला इन्वॉइस बनाना होता है. उसका जीसटी भी जमा कराना होता है. जिसके बाद जमा किये हुए जीसटी का क्रेडिट फार्म 3बी की रिटर्न के माध्यम ले लिया जाता है. इस प्रक्रिया में टैक्स पेयर ने जो जीएसटी भरा होता है, वह उसे वापस मिल जाता है लेकिन उसे एक प्रक्रिया से गुजरना होता है. सरकार के खाते में किसी तरह की कोई आमदनी नहीं होती. हां यह जरुर होता है कि जो भी लेन देन हुआ, वह सब ऑन रिकार्ड हो जाता है.
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